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VEDA STUDY - COW

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Puraanic contexts

BEEF EATING IN INDIAN MYTHOLOGY VS SPRITUAL ASPECT

RELATION OF COW WITH DEMON VALA, COW VERSUS HORSE,COW VS DAWN IN INDIAN MYTHOLOGY

COW VS BITCH SARMA, COW VS COWSHED, COW VS CALF IN INDIAN MYTHOLOGY

COW VS WISDOM AND BARLEY IN INDIAN MYTHOLOGY

QUOTATIONS FROM RIGVEDA

QUOTATIONS FROM ATHARVAVEDA

QUOTATIONS FROM BRAAHMANA TEXTS

QUOTATIONS FROM UPANISHADIC TEXTS

QUOTATIONS FROM OTHER VEDAANGA TEXTS

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SARMAA AND COW

In Indian mythology, a divine bitch called Sarmaa is deputed to trace the cows which have been stolen by demons called Panis. Panis try to bribe Sarma. It seems irrevalent to put this narrative in mythology but it is not so. Neither vedic nor puraanic literature has left any thread to understand nature of Sarma. Her nature can be understood from the details of a sacrifice called Gavaamayana. In this yaga, there are two types of sacrifices - one which is called jumping, by which gods make quick progress. The other is of slow progress for those who can not take a jump. It seems that Sarma chose the path of quick jump by ignoring the temptations of worldly pleasures of second type of yaga. In first type of yaga, only cow and horse are involved in details of yaga, while in second type of yaga, cow, horse, goat, sheep, rice and barley are involved. Regarding the nature of demons Panis who steal the cows, it is proposed that these demons try to maintain the demonical part of one's individuality through food obtained from cows, just like the leaves of a tree create food from sunrays for the whole tree.

सरमा और गौ

          ऋग्वेद १०.१०८ सूक्त सरमा देवऋषिका का है इसके अतिरिक्त ऋग्वेद .१६. .४५.- में भी सरमा का उल्लेख आया है ब्राह्मणों पुराणों में देवशुनी सरमा की पूरी कथा प्राप्त होती है कि किस प्रकार देवों ने नष्ट हुई गायों की खोज के लिए सरमा को भेजा, कैसे सरमा ने सा समुद्र को पार किया किया, कैसे पणियों ने सरमा को गौ - भाग देकर अपनी ओर मिलाना चाहा आदि सरमा तत्त्व को समझे बिना गौ के संदर्भ में सरमा का आख्यान अनर्गल सा लगता है लेकिन  कठिनाई यह है कि सरमा को समझने के लिए प्रत्यक्ष रूप से तो पुराणों ने और ही ब्राह्मणों ने कोई प्रमाण छोडा है लेकिन सोमयाग/गवामयन यज्ञ की प्रक्रिया द्वारा सरमा की व्याख्या करना संभव  हो सकता है

           ऋग्वेद १०.१०८., जैमिनीय ब्राह्मण .४४० .४४१ में प्रश्न उठाया गया है कि सरमा ने सा के जलों को कैसे पार किया ( पणि संज्ञक असुरों तक पहुंचने के लिए ) इसका उत्तर कहीं नहीं दिया गया है लगता है कि इसका उत्तर स्वयं सरमा शब्द में निहित है जो रस का उल्टा सर है गवामयन संज्ञक याग में एक मास में चार अभिप्लव षडह याग और अन्त में एक पृष्ठ्य षडह याग होते हैं प्रत्येक याग - दिन का होता है और इस प्रकार यागों से मास के ३० दिन पूरे होते हैं अभिप्लव के बारे में कहा जाता है कि इसके द्वारा देवगण प्लवन करके, छलांग लगाकर, अथवा तैरकर स्वर्ग तक पहुंच गए लेकिन अङ्गिरस गण पीछे रह गए उनके लिए धीमी प्रगति करने वाला पृष्ठ्य षडह याग बनाया गया सरमा द्वारा सा समुद्र को प्लवन द्वारा पार करना इसका संकेत है कि यह अभिप्लव की ओर निर्देश है सरमा को शुनी, कुतिया कहा गया है वैदिक साहित्य में शुनः का प्रयोग ऊर्ध्वमुखी साधना के लिए किया जाता है जहां सब रसों का त्याग किया जाता है उदाहरण के लिए, शुनासीर यज्ञ की व्याख्या में शुनः श्री अभिप्लव षडह के छह दिनों की संज्ञा क्रमशः रथन्तर, बृहत्, रथन्तर, बृहत्, रथन्तर, बृहत् होती है जबकि पृष्ठ्य षडह के दिनों की संज्ञा क्रमशः रथन्तर, बृहत्, वैरूप, वैराज, शक्वरी रेवती होती है जैमिनीय ब्राह्मण .३४ के अनुसार गौ रथन्तर से, अश्व बृहत् से, अजा वैरूप से, अवि वैराज से, व्रीहि शक्वरी से और यव रैवत से सम्बद्ध हैं रथन्तर और बृहत् के बारे में भ्रम की स्थिति रहती है कि  यह क्या हैं ऐतरेय ब्राह्मण .२७ का कथन है कि रथन्तर द्वारा पृथिवी द्युलोक को प्रसन्न करती है, प्रभावित करती है जबकि बृहत् द्वारा द्युलोक पृथिवी को

          सरमा के संदर्भ में बहुत कम पौराणिक सूचनाएं उपलब्ध हैं सीता के अशोक वन में निवास के समय विभीषण - पत्नी सरमा राक्षसी के सीता के सान्निध्य का उल्लेख आता है सरमा को शैलूष गन्धर्व की कन्या कहा गया है लक्ष्मीनारायण संहिता ही एकमात्र ऐसा ग्रन्थ है जहां सरमा को द्युमेय की पतिव्रता पत्नी कहा गया है

          सरमा द्वारा पणियों गायों की खोज की कथा के संदर्भ में यह प्रश्न उठता है कि पणि क्या हैं पणियों द्वारा गायों के हरण के उल्लेख ऋग्वेद में भी आते हैं संभावना यह है कि पणि पर्णि, पत्तों वाले से सम्बद्ध हैं वृक्ष के पत्ते सूर्य की किरणों का अवशोषण करके उनसे वृक्ष के लिए भोजन का निर्माण करते हैं वैदिक साहित्य में वृक्ष को समाधि से व्युत्थान की अवस्था माना जाता है अथवा यह कहा जा सकता है कि समाधि वृक्ष का मूल है और सम्पूर्ण वृक्ष व्युत्थान की अवस्था सारी गायों/अपने अन्दर के सूर्य की किरणों का उपयोग पूरे व्यक्तित्व के पालने के लिए हो रहा है उसमें देवपक्ष और असुरपक्ष दोनों हैं प्रयास यह है कि गायों द्वारा असुर पक्ष के पोषण को समाप्त कर दिया जाए

 

DIVINE COWSHED VRAJA AND COW

Some rigvedic mantras refer to cowsheds solely devoted to cows, while in some mantras there is mention of cow and horse types, just as in case of Ushaa. Some mantras refer to opening of cowsheds like the sunset. The word used for sunset in Sanskrit is Asta,which closely resembles with English word Astable, the place for horses. The esoteric meaning of Asta is where the fruits of actions have ceased to exist. Vedic and puraanic literature mentions that cows can be made to sit collectively only in Vraja, the divine cowshed, a place where there no longer exist the fruits of actions or karmaphala. There is one place in puraanas where word Vraja has been interpreted and this tally with the above concept.

    There are so many efforts in modern sciences to make a dense beam of sunrays. It will be interesting to investigate how mythology and modern sciences can help each other in this regard.

व्रज और गौ

          ऋग्वेद .१३०. आदि बहुत सी ऋचाओं में गायों के व्रज/गोष्ठ के उल्लेख आते हैं दूसरी ओर, कुछेक ऋचाओं जैसे .३२., .१०८., १०.६२. आदि में व्रज को गोमन्त और आश्विन् कहा गया है, वैसे ही जैसे उषा को अश्वावती और गोमती कहा गया है ऋग्वेद ..१५, .१६., १०.४५. आदि में व्रज को गोमन्त कहा गया है ऋग्वेद .३१.१३ में व्रजों को अस्त की भांति खोलने की प्रार्थना की गई है ऋग्वेद .६६.१० तथा .६६.१२ में गाएं व्रज में नहीं, अस्त में प्रवेश करती हैं अथवा यह कह सकते हैं कि अस्त शब्द व्रज का पर्यायवाची है अन्यथा, लौकिक भाषा में अस्त शब्द का प्रयोग अश्व के रहने के स्थान के लिए किया जाता है - जैसे अंग्रेजी में अस्तबल या एस्टेबल जैसा कि योगवासिष्ठ के आधार पर अन्यत्र उल्लेख किया जा चुका है, अस्त शब्द कर्मों के फलों से सम्बन्धित है यदि बीज को भून दिया जाए तो वह अंकुरित नहीं होता, इसी प्रकार यह संभव है कि कर्म रूपी बीज के फल उत्पन्न हों यह अस्त अवस्था कहलाती है वैदिक पौराणिक साहित्य व्रज के माध्यम से यह संकेत करता है कि गायों को एकत्र वहीं किया जा सकता है जहां व्रज की, अस्त की स्थिति उत्पन्न कर ली गई हो

          स्कन्द पुराण ...१९ में शाण्डिल्य द्वारा व्रज शब्द की निरुक्ति व्याप्ति के अर्थ में, गुणातीत परब्रह्म के व्यापक होने के रूप में की गई है यह उल्लेखनीय है कि शाण्डिल्य शब्द पापों को जला देने से सम्बन्धित है, ण्, नपुंसक बनने से सम्बन्धित है

          आधुनिक विज्ञान में सूर्य की किरणों के केन्द्रीकरण के बहुत से प्रयास चल रहे हैं पुरातन आधुनिक विज्ञान एक दूसरे की किस प्रकार सहायता कर सकते हैं, यह अन्वेषणीय है

 

CALF AND COW

There are mantras in Rigveda which mention of a cow running after her calf. In a particular type of sacrifice called Pravargya, a calf is deprived of his mother's milk and the milk is used for sacrifice. This seems to be a cruel act. But the riddle is solved when one understands the symbolism behind calf. One Upanishadic text refers to cow as symbolic of memory. In Vedic literature, there are two types of voices - one Shruti which is the purest form. But this can not be heard all the time and by all people. At mortal stage, this is converted into Smriti, or one which is repeated from memory. In puraanic texts, there seem to be several symbolisms for Smriti, like sage Durvaasaa, the tenth day of a fortnight etc. Even barley has been found to be a combination of Shruti and Smriti, because it is connected in the middle.

वत्स गौ

ऋग्वेद .४५.२८, .१२., १०.१४५. आदि में उल्लेख आते हैं कि जैसे गौ अपने वत्स के पीछे भागती है, इसी प्रकार हमारी वाक्/गिरा/मन इन्द्र रूपी वत्स की ओर भागे जिससे इन्द्र को सोमपान कराया जा सके इसके अतिरिक्त, सोमयाग से पूर्व प्रवर्ग्य याग में गौ का दुग्ध पान करते हुए वत्स को पलाश शाखा द्वारा हटाकर यज्ञ कार्य हेतु गौ का क्षीर दोहन किया जाता है आभासी रूप में यह एक क्रूर कर्म है लेकिन वत्स की प्रतीकात्मकता को समझ लेने पर यह भ्रम दूर हो जाता है  बृहज्जाबालोपनिषद . में वत्स को स्मृति का प्रतीक कहा गया है इस प्रकार श्रुति रूपी गौ वत्स रूपी स्मृति को पुष्ट करने के लिए व्याकुल रहती है पौराणिक साहित्य में लगता है कि स्मृति का सीधा उल्लेख कर उसका प्रतीक दुर्वासा ऋषि, दशमी तिथि आदि को बनाया गया है

          पृष्ठ्य षडह के छठे दिन का साम रैवत साम? कहलाता है और इस दिन का लक्षण यव है इससे पहले पांच दिनों के लक्षण गौ, अश्व, अज, अवि व्रीहि हैं ( जैमिनीय ब्राह्मण .३४) यह जिज्ञासा होती है कि रैवत साम क्या होता है तैत्तिरीय ब्राह्मण में रेवती नक्षत्र के लक्षण के रूप में कहा गया है - गाव: परस्तात् वत्सा अवस्तात् यह लक्षण रैवत साम और यव की प्रकृति को स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है