PURAANIC SUBJECT INDEX (From Mahaan to Mlechchha ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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II ए लीला सुपने में भई है II अति मंजुल अद्भुत अनूप है II
श्री राधाबल्लभ पद कमल विमल भरें मकरंद । प्रथम बन्दौं उर लाइकैं पाऊँ परमानंद । १ ।। तिहि बल श्री हरिवंश के चरन कमल सुखधाम । बंदौं नित चित लाइकैं जिनकौं बंदत श्याम । २ ।। सोई कृपा प्रताप ते सुपनौं भयो रसाल । सो अपनौं सपनौं लिखौं अद्भुत रसमय हाल ।। ३ ।। रंग रंग मणि कनक सौं खच्यौ महा अभिराम । ४ ।। अगनित मंदिर जगमगे तिहि मंदिर के मॉहिं । तिनकी शोभा झलक कल कहत बनत कछु नॉहिं । ५ ।। जमुना सेवाकुंज के बहत निकट 1 चहुँ ओर । तिनमें रँग रँग कमल कल शोभित नाँहीं थोर ।। ६ ।। रंग रंग वर रतन सौं खचे सु दोऊ कूल । झलमल झलमल होत मृदु रवि शशि गन 2 नहिं तूल ।। ७ ।। शोभा रचना कह कहौं मोपे कहत बनै न । सो अनूप झलकानि छवि जानत मो मन नैन । ८ ।। तब यह सुपनों भयो कल गई अर्द्ध जब रैन । देख्यो सेवाकुंज में मंजुल अद्भुत ऐन । ९ ।। इकली सपने में तहाँ ठाढ़ी मंदिर मॉहिं । चौंधि कौंधि के तेज सौं शोभा दीसत नॉहिं II१० II १ पाठा० हि ढिंग २ समूह देखत फिरौं तिहि सदन में पायौ नाँही ओर | | तिहि मंदिर में झलमलैं और ऐन नहिं थोर ॥ ११ ॥ एक एक ते सरस कल झलमल चौक विशाल । शोभा रचना नवल नव चित्र विचित्र रसाल II १२ ॥ चोंधि कौंधि के जाल में अरुझे चख १ चपलॉइ | ज्यौं के त्यौं दरसैं नहीं दरसन कौं अकुलाँइ ॥ १३ ॥ | इतने में इक सहज ही मेरे करतल मॉहिं । मैना बैठी आइकैं ताकी २ उपमा नॉहिं ॥ १४ ॥ | पीरी निर्मल मुकर सी तिनकी बानि अनूप । तिनके तन में आपनौं देखति हौं कल रूप II १५ ॥ मैना अरु अपु रूप कौं देखौं अचिरज मान । चकित थकित रही दरसिकैं कहत न बनैं सु बानि ॥ १६ ॥ | मैना करतल में लिये डोलौं मंदिर मॉहिं । - रही भूलि शोभा निरखि मोकौं सुधि कछु नॉहिं ॥ १७ ॥ कितते आई कौन हों कौन ठोर यह आइ । कहाँ जाउँ करनौं कहा कछु नहिं जानी जाइ ॥ १८ ॥ देखौं तो ठाढ़े तहाँ श्री राधाबल्लभलाल । बतबतात हितसखी सौं बैना मधुर रसाल ॥ १९ ॥ चौंधि कौंधिं आगे कछू रूप सु दीसत नॉहिं । - देखनि कौं दृग तरफरे बढ़ी चाह मन मॉहिं ॥ २० ॥ अनन्यअली मोकौं कही अलकलड़ी ने टेरि । लीनी निकट बुलाइकैं मैना की छवि हेरि ॥ २१ ॥ १ नेत्र २ पाठा० तिनकी अनन्यअली तुव हाथ में मैना कल चपलाइ । महा मनोहर मोहिनी नवल विमल सुखदाइ ॥ २२ ॥ कबहुँ न हम देखी सुनी ऐसी मैना पीत । याकी१ उपमा को कहे मो छवि लीनो जीत ।। २३ ॥ कौन सु विद्या गुननि में मैना अधिक प्रवीन । जानति विद्या गुन सबै तिनमें एक नवीन ॥ २४ ॥ मो मैना कौं लीजिये अपने करतल मॉहिं | भृंग विहंग कुरंग कल पिय कौं करै नचाहि ।। २५ ॥ अलकलड़ी ने हँसि लई मेना करतल मॉहिं । चुंबति मुख हिय लावहीं आनॅद उर न समाहिं ।। २६ ।। मैना बैना श्याम सौं कहत कहावत रंग | सुख में सुख उपजावही आनँद उठत तरंग । २७ ॥ तब मैना ने श्याम सौं कही सुनहु नवरंग । कहौ सु मैना लाड़िले मैना कह्यो उमंग ॥ २८ ॥ श्याम श्याम मैना भये २ रटत सु राधे नाम । देखत अचरज मानहीं छैल छवीली भाम ॥ २९ ॥ चितै चितै मम ओर प्रिय हँसति लसति लड़काइ । हँसनि लसनि छवि चंद्रिका फैलत कल झलकाइ ॥ ३० ॥ वंशी के करतलनि में करतल कल पटकंत । बिच बिच मो तन हँसि चिते हितसखि पर लटकंत || ३१ । । मोसौं पुनि हँसिकैं कही ज्यौं के त्यौं क्यौं३ होइ । - जो जो तुम प्रिय कहौगी मैना करै जु सोई।।३२।। प्यारी के गुन गननि छवि गावति मैना श्याम । सुनि सुनि सरसति लाड़िली उपजत नव नव काम ॥३३ । । तब बोली मैना मधुर उठि हो सुंदर श्याम । तिहि छिन ज्यौं कौ त्यौं भयो अलकलडी सुख धाम ॥ ३४ ॥ देखौ कौतिक हितसखी इहि मैना के जोर । गुन विद्या की सागरी मोकौं दै झकझोर ॥ ३५ ॥ पुनि मैना ने कही तब कहौ सॉवरे मोर । मोर मोर तू आवरे आनँद मेघ न थोर ॥ ३६ ॥ ऐसी जब पिय ने कही भयौ सॉवरौ मोर । प्रिय आगे नाँचन लग्यो आनँद बढ़्यौ न थोर ॥ ३७ ॥ | निर्त कला विस्तारहीं औरै और नवीन ! | हाव भाव दरसावहीं मंजुल मोर प्रवीन ॥ ३८ ॥ | । पुनि मैना ने कही तब उठहु सॉवरे लाल । ज्यों कौ त्यौं तबही भयौ मंजुल श्याम रसाल ॥ ३९ ॥ पुनि पुनि मैना कही तब कहिये पिक नवरंग । | कोकिल तू अब आवरे गावैं केलि अनंग II ४० II | ऐसें कही जब लाल ने भयौ कोकिला श्याम । मधुर मधुर कल बोलहीं कहत कहानी काम । ४१ II | सुनि सुनि श्यामा हितसखी रहीं चकित सी भूल । बड़ौ अचंभौ १ मानहीं उमड़त अँग अँग फूल ॥ ४२ ॥ | तब पुनि मैना ने कही उठहु लाड़िले श्याम । - ज्यौं कौ त्यौं तबही भयो श्याम काम सुखधाम ॥ ४३ ॥ ৭ पाठा० बड अचरज मन तब पुनि मैना ने कही कहौ लाड़िले कीर । अहो श्याम शुक आव तू गावौ प्रिय जस भीर ॥ ४४ ॥ गावत रस जस बाल के बैठ्यो करतल मॉहिं II ४५ II मधुर मधुर कल गावहीं प्रिय के सुरनि मिलाइ । रीझी बाल उगाल दै आनॅद उर न समाइ II ४६ ॥ अहो कीर खंजन कहौ लहै चपलता भाइ | खंजन तू अब आवरे प्रिय चख सौं मिलि आइ ॥ ४७ ॥ खंजन खंजन रटत ही खंजन भयौ किशोर । प्रिय करतल में चपलही कोतिक करत न थोर II ४८ II अलकलडी के नैन कल चपल होत जिहि भाँति । तिहि विधि खंजन नाचही करतल में लड़कॉति II ४९ II वारी बदि बदि नॉचहीं खंजन अरु प्रिय नैन । तिनके कौतिक अमित हैं रंचहु कहत बनै न ॥ ५० ॥ रसना पै कहत न बनैं जानत मो मन नैन । भूलि रही मनमोहनी देखि देखि यह चैन II ५१ ॥ भूलि रही वंशी सखी टक टक१ कौतिक जोइ । - सुने भने देखे नहीं कौतिक नव नव होइ ॥ ५२ ॥ उठो छवीले सॉवरे मैना कही लड़Tइ | ज्यौं कौ त्यौं भयो २ सॉवरौ सुनत वचन सुखदाइ ॥ ५३ ॥ हंस हंस अब कहो। पिय अहो। मराल मराल | हंस हंस जबही कह्यौ भयौ मराल सु लाल ॥ ५४ ॥ १ अपलक दृष्टि से २ पाठा० ह्वै नवल नेह उपजावहीं चलत छवीली चाल । देखि देखि इहि बानि कौं पुलकति कुलकति बाल ॥ ५५ ॥ कहौ कुरंग मराल तुम मृग मृग कह्यो उचार । - कहत भयो मृग सॉवरौ शोभित विविध सिंगार ॥ ५६ ॥ करत निर्त नव नवल कल हाव भाव विस्तार । गावत मानौं मधुर मृदु भूषन की झनकार ॥ ५७ ॥ तब पुनि मैना ने कही उठहु छवीले छैल । तिहि छिन अलकलड़ौ भयौ भूल्यौ छल बल फैल ॥ ५८ ॥ कहौ भृंग तुम सॉवरे अहो आव तू भृंग । भयौ भृंग नवरंग पिय गुंजत प्रेम प्रसंग ।। ५९ ।। प्यारी के मुख-कमल कौ मंजुल सौरभ सार । सो सौरभ के पान हित आयौ अलि गुंजार ॥ ६० ॥ | गोरी भोरी डरपि तब वंशी सौं लपटाइ | अंग अंग चख चपल भये १ सो छवि कही न जाइ II ६१ ॥ कुच-कमलनि पर भृंग जब गुंजत गुंजत आइ । रही लपटि हितसखी उर अंगनि अंग समाइ II ६२ II मनौं छवीली दामिनी दुरी छवि दामिनि मॉहिं। चपलत चमकत गौर तन कहत बनत कछु नॉहिं ॥ ६३ ॥ उठहु सु लंपट सॉवरे कहतहि भयौ किशोर । कहौ चकोर सु लाडिले अहो चकोर चकोर ॥ ६४ ॥ प्रिय करतल कल विमल में बैठ्यौ श्याम चकोर । रूप सुधा रस पान की तृष्णा बढी न थोर ॥ ६५ ॥ १ पाठा० ह्वै रूप चंद मुख बाल कौ रूप सुधा बरसंत । ज्यौं ज्यौं पान चकोर करि त्यौं त्यौं अति तरसंत || ६६ || उठो वेगि हो लाड़िले परम रसिक शिरमौर । उठि बैठ्यौ वच सुनत ही करत सु कौतिक और ॥ ६७ ॥ अब तुम पिय चात्रिक कहौ वरषत मेह सनेह । अब चत्रिक तू आवरे मन मान्यो जल लेह ॥ ६८ ॥ ऐसें रटतहि ह्वै गयौ मंजुल चात्रिक श्याम । अधर स्वॉति रस लैन कौं रटत बाल के नाम II ६९ ॥ बाल उगाल रसाल दियौ१ मुख सौं मुख सुख जोर । तऊ पपीहा तरसहीं रुचि कौ ओर न छोर II ७० || उठौ रसिक पिय सॉवरे उठ्यो सुनत ही श्याम । अब कहिये सखि साँवरी लहौ टहल सुख धाम ॥ ७१ ॥ आवहु सखी जु सॉवरी पावहु टहल नवेलि । ऐसें कहतहि छिनहि में ह्र गई शयाम सहेलि II ७२ ॥ तब हँसि लागी कंठ सौं आनॅद उर न समात । मानौं आनँद घटा में छवि दामिनि चमकात || ७३ || मैना ने किये २ शयाम कौं रंग विहंग अपार । मो मति गति अति थोर पै कहे न जॉइ विस्तार II ७४ ॥ तब पुनि मैना ने कही कहो सखी तुम श्याम । भयौ सॉवरौ कहत हो उपजे अगनित काम II ७५ ॥ लपटि रहे सुख सेज पर करत सुरत संग्राम । लजित बलित गुन होत री अद्भुत कामिनि काम ॥ ७६ ॥ अनन्यअली तोसौं कहौं सुनि लै मेरी गाथ । या मैना कौं लिये कर सदा रहौ मम साथ II ७७ || १ पाठा० दै २ पाठा० करि बहुत भली बलि जाइहौं रहौं निरंतर पास । अनन्यअली इतनी चहै और जाहु सब आस ॥ ७८ ॥ | | यह कौतिक वर सुपन में देखत खुलि गये नैन । - जागि परयो अति भयो दुख सो सुख कहत बनै न ॥ ७९ ॥ डेढ़ पहर लौं सुपन में देख्यो कौतिक एह । रही भूलि सी देखिकैं सुधि बुधि रही न देह ॥ ८० ॥ पंद्रह दिन लौं रह्यो अति याकौ १ रस आवेश । भूलत नहिं छिन एक हू सुमिरन यहै सुदेश ॥ ८१ ॥ | | जैसौ देख्यौ सुपन में तैसी कह्यो न जाइ । जागत ही भूल्यौ सबै कछु कछु कह्यौ बनाइ ॥ ८२ ॥ मैना मंत्र सु मोहनी इहि लीला कौ नाम । जै नित पढैं हित चित दये ते पावैं सुख धाम ॥ ८३ ॥ संवत सत्रह सौ परे साठ अठारह चार । - भादौं की निशि त्र्योदसी कृष्ण पक्ष शुभ वार II ८४ ॥ | यह सुपनौं तबही भयौ गई अर्द्ध जब रैन । - यह कौतिक देखत बनैं रंचहु कहत बनै न ॥ ८५ ॥ जानत परम सुजान विवि जिन पर बीते हाल । अनन्यअली के उर बसो सदा लाड़िली लाल II ८६ ॥ दोहा सब मिलिकें भये सरसठ ऊपर बीस | अनन्यअली के उर बसौ श्री वृन्दावन ईश ॥ ८७ ॥ - इति लीला मैना मंत्र मोहनी संपूर्ण की जय जय श्री हरिवंश II ५९ II ৭ पाठा० इनकी
अनन्यअली जी की वाणी सम्पादक – डा. जयेश खण्डेलवाल रस भारती संस्थान, वृन्दावन, १०४, सेवाकुञ्ज गली, वृन्दावन २८११२१ - |