PURAANIC SUBJECT INDEX (From Mahaan to Mlechchha ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Medhaa / intellect, Medhaatithi, Medhaavi, Menakaa etc. are given here. मेघस्वाति भागवत १२.१.२४(चिबिलक - पुत्र, अटमान - पिता), मत्स्य २७३.५(आपीतक - पुत्र, स्वाति - पिता, १८ वर्ष राज्य करने का उल्लेख), विष्णु ४.२४.४५(पिलक - पुत्र, पटुमान् - पिता ) meghaswaati/ meghaswati
मेढी भागवत ४.१२.३९(ध्रुव की मेढी से उपमा )
मेढ्र भागवत ३.१२.२६(ब्रह्मा के मेढ्र से निर्ऋति की उत्पत्ति का उल्लेख), ८.५.३९(पुरुष/परमात्मा के मेढ्र से क:/प्रजापति की उत्पत्ति का उल्लेख ), द्र. पञ्चमेढ्र medhra
मेद पद्म ६.६.२६(बल असुर के मेद से मरकत की उत्पत्ति का उल्लेख), ६.६.२९(बल असुर के मेद से स्फटिक की उत्पत्ति का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.७.९४(मेदाश : पौरुषेय राक्षस के ५ पुत्रों में से एक), भागवत १२.१.२७(मेद:शिरा : पुरीमान् - पुत्र, शिवस्कन्द - पिता, भविष्य के राजाओं में से एक), मत्स्य १८४.३३(अविमुक्त के सिवाय भूमि के मेद से लिप्त होने का उल्लेख), योगवासिष्ठ ६.२.१५८.१९(व्याध की देह के मेद का मृदा में परिवर्तन), लक्ष्मीनारायण ३.१६३.१०५(बलासुर के मेद रूप बीज से स्फटिक की उत्पत्ति का कथन ), द्र. धनमेद meda
मेदिनी वामन ९०.३८(मेदिनी में विष्णु का चक्रपाणि नाम), वायु ६३.२/२.२.२(मधु - कैटभ के मेद से लिप्त होने के कारण पृथिवी के मेदिनी नाम की सार्थकता ) medinee/ medini
मेध द्र. नरमेध, वसुमेध
मेधा गरुड १.२१.३(सद्योजात शिव की ८ कलाओं में से एक), देवीभागवत ७.३०.७७(काश्मीर पीठ में देवी की मेधा नाम से स्थिति का उल्लेख), १२.६.१२७(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.६६.८८(श्रीधर/विष्णु की शक्ति मेधा का उल्लेख), १.९१.८४(सद्योजात शिव की पञ्चमी कला का नाम), पद्म २.१२.९२(दुर्वासा के समक्ष प्रकट मेधा का रूप), ब्रह्मवैवर्त्त १.९.३४(मङ्गल - पत्नी, घण्टेश्वर व व्रणदाता - माता), २.६२(राजा सुरथ व समाधि वैश्य का मेधा ऋषि के पास गमन का आख्यान), ब्रह्माण्ड १.२.९.४९(दक्ष की कन्याओं में से एक, धर्म की १३ पत्नियों में से एक), १.२.९.५९(श्रुत - माता), १.२.१३.१०४(स्वायम्भुव मनु के १० पुत्रों में से एक), १.२.१४.९(प्रियव्रत व काम्या के १० पुत्रों में से एक), १.२.३६.५८(स्वारोचिष मन्वन्तर के सुमेधस नामक देवगण में मेधा, मेधातिथि, सत्यमेधा, पृश्निमेधा, अल्पमेधा, भूयोमेधा, दीप्तिमेधा आदि का उल्लेख), ३.४.३५.९४(ब्रह्मा की कलाओं में से एक), ३.४.४४.७२(५१ वर्णों के गणेशों की शक्तियों में से एक), भागवत ४.१.५१(दक्ष - पुत्री, धर्म की पत्नियों में से एक, स्मृति - माता), मत्स्य ९.५(स्वायम्भुव मनु के १० पुत्रों में से एक), १३.४७(काश्मीर मण्डल में देवी की मेधा नाम से स्थिति का उल्लेख), २४६.६२(वामन के विराट् रूप में मेधा इत्यादि की कटि में स्थिति का उल्लेख), मार्कण्डेय ८१.९/७८.९(सुरथ - समाधि - सुमेधा आख्यान का आरम्भ), लिङ्ग १.८१.३५(कर्णिकार कुसुम पर मेधा की स्थिति का उल्लेख), वायु १०.२५(धर्म की १३ पत्नियों में से एक, दक्ष - कन्या), १०.३५(श्रुत - माता), ३१.१७(स्वायम्भुव मनु के १० पुत्रों में से एक), ३३.९(प्रियव्रत व वीरा के १० पुत्रों में से एक, अपर नाम मेधातिथि), ३९.४८(सुमेध पर्वत पर आदित्यों, रुद्रों व वसुओं - गन्धर्वों आदि के वास का कथन), ५३.२१(मेध्या : सूर्य की चन्द्र रश्मियों में से एक), विष्णु १.७.२९(धर्म - पत्नी मेधा द्वारा श्रुत को जन्म), २.१.७(प्रियव्रत व कर्दम - कन्या के १० पुत्रों में से एक, योगपरायण व जातिस्मर होने का उल्लेख), ३.६.१०(अथर्ववेदाचार्य देवदर्श के ४ शिष्यों में से एक), शिव ५.४५.४१+ (सुरथ राजा व समाधि वैश्य के मेधा ऋषि के पास गमन का आख्यान), स्कन्द ३.३.९.९१(सुमेध : सुमेध तथा सामवन्त नामक द्विजपुत्रों का वृत्तान्त), ५.३.१९८.८४(काश्मीर मण्डल में देवी की मेधा नाम से स्थिति), लक्ष्मीनारायण ३.३१.८४(ऋषि के शाप से अश्व बने वर्मधर नृप की मुक्ति के लिए मेध नारायण तथा मेधावती लक्ष्मी का अवतार), कथासरित् ८.५.५५(मेधावर : दुन्दुभि पर्वतराज, श्रुतशर्मा नामक विद्याधर के ८ महारथियों में से एक ), वास्तुसूत्रोपनिषद ६.२१टीका(सावित्री मेधा रूपा, गायत्री ज्ञानरूपा, सरस्वती प्रज्ञारूपा), द्र. दक्ष - कन्याएं, प्रमेधा, सुमेधा medhaa
मेधातिथि अग्नि १०७(प्रियव्रत के १० पुत्रों में से एक), ११९(प्लक्ष द्वीप का स्वामी, ७ पुत्रों के नाम), गरुड १.५६(प्लक्ष द्वीप का स्वामी, ७ पुत्रों के नाम), देवीभागवत १.३.३०(१७वें द्वापर में व्यास), ८.४.५(प्रियव्रत व बर्हिष्मती के १० पुत्रों में से एक, शाकद्वीप का स्वामी), ८.१३.१९(मेधातिथि के ७ पुत्रों के नाम), ब्रह्माण्ड १.२.१३.१०४(स्वायम्भुव मनु के १० पुत्रों में से एक), १.२.१४.९(प्रियव्रत व काम्या के १० पुत्रों में से एक, प्लक्ष द्वीप का अधिपति), १.२.१४.३५(प्लक्ष द्वीप के स्वामी मेधातिथि के ७ पुत्रों के नाम), १.२.३०.३९(तप से स्वर्ग प्राप्त करने वालों में से एक), १.२.३६.५८(सुमेधा गण के देवों में से एक), ३.४.१.६२ (रोहित मन्वन्तर के सप्तर्षियों में पौलस्त्य मेधातिथि का उल्लेख), भागवत ५.१.२५(प्रियव्रत व बर्हिष्मती के १० पुत्रों में से एक, अग्नि के नामों में से एक), ५.२०.२५(शाकद्वीप का स्वामी, ७ वर्षों के अधिपति ७ पुत्रों के नाम), ९.२०.७(कण्व - पुत्र, प्रस्कण्व आदि द्विजातियों के पिता), मत्स्य ९.५(स्वायम्भुव मनु के १० पुत्रों में से एक), ४९.४७(कण्व - पुत्र मेधातिथि से काण्वायन ब्राह्मणों की उत्पत्ति), १४३.३८(तप से स्वर्ग प्राप्त करने वाले राजर्षियों में से एक), वराह १८९.२६(राजा, अनुचित श्राद्ध से पितरों को कष्ट), वायु ९९.१३०/२.३७.१२७(कण्ठ - पुत्र, काण्ठायन द्विजों का मूल पुरुष), ९९.१६९/२.३७.१६५(कण्ठ - पुत्र, कण्ठायन द्विजों का मूल पुरुष), विष्णु २.१.७(प्रियव्रत के १० पुत्रों में से एक, प्लक्ष द्वीप का अधिपति), ३.२.२३(दक्ष सावर्णि संज्ञक नवम मनु के काल में सप्तर्षियों में से एक), ४.१९.६(कण्व - पुत्र, कण्वायन द्विजों का मूल पुरुष), शिव २.२.५.९(सन्ध्या द्वारा मेधातिथि - पुत्री अरुन्धती बनकर वसिष्ठ को प्राप्त करने का कथन), २.२.६.५०(सन्ध्या द्वारा मेधातिथि की यज्ञ की अग्नि में शरीर त्याग कर मेधातिथि - पुत्री बनने का कथन), २.२.७.१(सन्ध्या द्वारा मेधातिथि की यज्ञाग्नि में शरीर त्याग कर मेधातिथि की पुत्री बनने का वृत्तान्त), स्कन्द १.२.६.१११(मेधातिथि गौतम : चिरकारी - पिता, भार्या के वध के प्रयास का प्रसंग), लक्ष्मीनारायण १.१९८.६३(ब्रह्मा - पुत्री सन्ध्या द्वारा तप करके स्वतनु का त्याग, मेधातिथि की पुत्री बनकर वसिष्ठ को पति रूप में प्राप्त करने का कथन), १.३१४.१०९(कामदोष से विकृत सन्ध्या का मेधातिथि के यज्ञ की सूक्ष्म अग्नि में प्रविष्ट होकर शुद्ध होना तथा अनेक रूप धारण करना, एक रूप में मेधातिथि की पालिता पुत्री होकर वसिष्ठ - पत्नी अरुन्धती बनना), १.३५६.२८(कुपात्र को श्राद्धान्न देने के कुपरिणाम के संदर्भ में राजा मेधातिथि द्वारा पापी ब्राह्मण को श्राद्धान्न देने से पितरों के पतन का दृष्टान्त ), द्र. मन्वन्तर medhaatithi/ medhatithi
मेधावी गर्ग ६.१४(गौतम - पुत्र, ऋषि के शाप से श्रीशैल - पुत्र बनना, रैवतक नाम की प्राप्ति), ७.१०.१(कोङ्कण देश के राजा मेधावी का प्रद्युम्न - सेनानी गद से युद्ध व पराजय), पद्म ६.४६(च्यवन - पुत्र, मञ्जुघोषा अप्सरा पर आसक्ति से पाप की प्राप्ति), भविष्य ३.२.१८.१६(काश्मीरस्थ ब्राह्मण मेधावी द्वारा मोहिनी की प्रहेलिका का उत्तर देने पर मोहिनी को गर्भ प्रदान करके स्वर्ण ग्रहण), ३.४.८.५८(मेधावी मुनि व मञ्जुघोषा वेश्या से भगशर्मा की उत्पत्ति), भागवत ९.२२.४२(सुनय - पुत्र, नृपञ्जय - पिता, परीक्षित् वंश), वायु ९९.२७६/ २.३७.२७२ (सुनय - पुत्र, दण्डपाणि - पिता, भविष्य के राजाओं में से एक), विष्णु ४.२१.१२(सुनय - पुत्र, रिपुञ्जय - पिता, भविष्य के राजाओं में से एक), स्कन्द २.४.२टीका(गौतम - शिष्य, गुरु की सेवा से अमरता की प्राप्ति ), महाभारत शान्ति २७७(मेधावी नामक पुत्र का मेधावी पिता के साथ संसार की अनित्यता विषयक वार्तालाप), लक्ष्मीनारायण १.२४६.५३(चैत्र कृष्ण पापमोचनिका एकादशी माहात्म्य के संदर्भ में मञ्जुघोषा अप्सरा व मेधावी ऋषि का आख्यान), १.३२०.४५(श्री- सुता सुदुघा का मेधावी विप्र की कन्या के रूप में जन्म ) medhaavee/ medhavi
मेनका देवीभागवत २.८.४५(मेनका अप्सरा द्वारा विश्वावसु से धारित गर्भ का स्थूलकेश के आश्रम में विसर्जन, प्रमद्वरा नामक कन्या का जन्म, स्थूलकेश द्वारा पालन), पद्म २.३(विष्णुशर्मा के इन्द्रलोक के प्रति गमन करने पर भयभीत इन्द्र द्वारा विघ्न उपस्थित करने हेतु मेनका का प्रेषण, मेनका की पराजय), २.८१(इन्द्र द्वारा ययाति को स्वर्ग में लाने के लिए ययाति के पास मेनका का प्रेषण), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१७.३६(पितरों की तीन मानसी कन्याओं में से एक, हिमालय - भार्या, पार्वती - माता), ब्रह्माण्ड १.२.२३.६(शुचि व शुक्र मासों में सूर्य रथ पर सहजन्या व मेनका की स्थिति का उल्लेख), २.३.७.१४(१४ ब्रह्मवादिनी अप्सराओं के गण में से एक, मेन - पुत्री), भविष्य ३.२.४.१८(मदनमञ्जरी नामक मेना/मेनका को राजा द्वारा चूडामणि शुक के साथ विवाह का परामर्श, मेनका द्वारा पुरुषों के दोषों का कथन करते हुए विवाह की अस्वीकृति), भागवत ९.२०.१३(मेनका व विश्वामित्र - कन्या शकुन्तला का प्रसंग, मेनका द्वारा त्याग पर कण्व द्वारा शकुन्तला का पालन), १२.११.३५(शुक्र/ज्येष्ठ मास में सूर्य रथ पर मेनका अप्सरा की स्थिति का उल्लेख), मत्स्य ५०.७(विन्ध्याश्व - भार्या, दिवोदास व अहल्या - माता, पूरु वंश), १२६.७(शुचि व शुक्र मासों में सूर्य रथ पर मेनका व सहजन्या अप्सराओं की स्थिति का उल्लेख), १७९.२०(अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), वायु ५२.७(शुचि व शुक्र मासों में सूर्य रथ पर मेनका व सहजन्या की स्थिति का उल्लेख), ९९.२००/२.३७.१९५(बध्यश्व व मेनका से दिवोदास व अहल्या की उत्पत्ति का उल्लेख), स्कन्द ५.१.११(विद्याधर द्वारा मेनका के नृत्य में विघ्न पर शक्र द्वारा विद्याधर को शाप), ६.४२+ (मेनका द्वारा विश्वामित्र से प्रणय की याचना, अस्वीकृति पर जरा प्राप्ति का शाप - प्रतिशाप, कुण्ड में स्नान से मुक्ति), ७.४.१७.१३(भगवत्परिचारक वर्ग के अन्तर्गत पूर्व दिशा के रक्षकों में से एक), हरिवंश १.३२.३१(वध्यश्व व मेनका से दिवोदास व अहल्या का जन्म), वा.रामायण १.६३(मेनका द्वारा पश्चिम् दिशा में तपोरत विश्वामित्र के तप में विघ्न), लक्ष्मीनारायण १.४८६.२(मृगी द्वारा नागमती नदी में प्राण त्याग से मेनका अप्सरा बनना, विश्वामित्र द्वारा मेनका को धर्मोपदेश, विश्वामित्र द्वारा मेनका की कामभोग की याचना की अस्वीकृति पर परस्पर शाप आदि), २.१११.६०(श्याम देश में गङ्गा के मेनकाङ्गा नाम से निवास का उल्लेख, पितरों की कन्याओं में से एक ?), कथासरित् २.६.७७(किसी विद्याधर व मेनका अप्सरा से प्रमद्वरा कन्या की उत्पत्ति), ६.६.१००(तपोरत मङ्कणक ऋषि द्वारा मेनका के दर्शन, वीर्यक्षरण से कदलीगर्भा नामक कन्या की उत्पत्ति), १२.२७.३३(राजा चन्द्रावलोक द्वारा कण्व व मेनका - पुत्री इन्दीवरप्रभा का दर्शन, कण्व से कन्या प्राप्ति की याचना, कण्व द्वारा प्रदान ) menakaa
मेना ब्रह्म १.३२.८१(हिमवान् द्वारा तप, ब्रह्मा द्वारा वर प्रदान, वर स्वरूप मेना में अपर्णा, एकपर्णा तथा एकपाटला की उत्पत्ति), ब्रह्मवैवर्त्त ४.३९.१४(मेना द्वारा शिव का सत्कार, शिव का सुन्दर रूप देखकर तुष्टि, यत्र तत्र मेना का मेनका नाम), ब्रह्माण्ड १.२.१३.३०(अग्निष्वात्त पितरों की मानसी कन्या, हिमवान् - पत्नी, मैनाक व गङ्गा - माता), २.३.९.२(मेना कन्या के पितरों की प्रकृति के सम्बन्ध में प्रश्न), २.३.१०.६(वैराज पितरों की कन्या मेना की ३ कन्याओं अपर्णा आदि तथा पुत्र मैनाक का प्रसंग), भविष्य ३.४.१४.३१(अर्यमा - कन्या, हिमवान् को प्रदान), मत्स्य १३.८(अमूर्त्त पितरों की मानसी कन्या, हिमवान् - भार्या, मैनाक तथा उमा, एकपर्णा व अपर्णा - माता), १५४.१३१(हिमवान् - भार्या, नारद मुनि का सत्कार, पार्वती के भविष्य के विषय में प्रश्न), वामन २१(अग्निष्वात्त पितरों की कन्या), ५१(हिमवान् - भार्या, रागिनी, कुटिला तथा काली/उमा नामक तीन कन्याओं और सुनाभ नामक एक पुत्र की माता), वायु ३०.२९(अग्निष्वात्त पितरों की कन्या, हिमवान् - पत्नी), ७२.७(वैराज पितरों की कन्या, हिमवान् - पत्नी ; मैनाक, अपर्णा, एकपर्णा आदि की माता), विष्णु १.१०.१९(स्वधा व पितरों की २ ब्रह्मवादिनी कन्याओं में से एक), शिव २.३.१(पितरों की कन्या, हिमालय से विवाह, पार्वती की माता), २.३.२(मेना आदि पितर - कन्याओं को सनकादि का शाप, पुन: शाप का मोचन), ७.१.१७.४९(, स्कन्द १.१.२०(मेना द्वारा गर्भ में गौरी को धारण करना), १.२.२२.४५(ब्रह्मा की प्रार्थना पर विभावरी देवी का मेना के नेत्रों में प्रवेश, जगदम्बा का जन्म), हरिवंश १.१८(पितरों की कन्या, हिमालय - पत्नी, तीन पुत्रियों के नाम), लक्ष्मीनारायण १.१७९.१७(पितरों व स्वधा की तीन कन्याओं में से एक, सनत्कुमार से शाप प्राप्ति, हिमालय की पत्नी बनकर काली आदि ४ सन्तानों की माता बनना), १.१८०.३२(हिमालय व मेनका द्वारा तप, मेनका द्वारा पार्वती से १०० पुत्रों तथा ३ पुत्रियों की माता बनने के वर की प्राप्ति, मैनाक आदि पुत्रों तथा काली आदि कन्याओं को जन्म देना), १.१८८.५५(शिव द्वारा विप्र रूप धारण कर हिमालय व मेना के समक्ष शिव के अवगुणों का व्याख्यान करना, अवगुण सुनकर हिमालय व मेना द्वारा पार्वती का शिव से विवाह न करने का निश्चय), १.२९८(पितरों की मेना आदि ३ कन्याओं द्वारा विष्णु को जामाता रूप में प्राप्त करने का निश्चय, मेना द्वारा शिव को जामाता रूप में प्राप्त करना), १.३७९(मेना द्वारा विवाह के पश्चात् पार्वती को पति सेवा रूपी धर्म का उपदेश ), १.३८५.४४(मेना का कार्य : कर्ण भूषण), menaa |