PURAANIC SUBJECT INDEX (From Mahaan to Mlechchha ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Mohini, Mauna / silence, Maurya, Mlechchha etc. are given here. मोहम्मद ब्रह्माण्ड २.३.७.१२८ (महामुद : देवजनी व मणिवर के यक्ष पुत्रों में से एक), भविष्य ३.३.२.५( महामद : म्लेच्छ, भोजराज समकालिक, शिव के कथनानुसार बलि - प्रेषित त्रिपुरासुर, अयोनिज तथा दैत्य संवर्धक ), ३.३.३.१७(वाहीक देशस्थ महामद की म्लेच्छ धर्म में मति), ३.३.२८.६२ (शोभा वेश्या द्वारा महामद पिशाच की आराधना व सहायता प्राप्ति का वर्णन), ३.४.२३.११९(कलि के अंश राहु के वंश में महमद नामक मत की सत्ता ) mohammada
मोहिनी अग्नि ३.१२(अमृत वितरण हेतु विष्णु द्वारा मोहिनी रूप धारण, रुद्र की मोहिनी पर आसक्ति व वीर्यपात आदि), गणेश २.३९.२०(भस्मासुर द्वारा शिव को मारने की चेष्टा पर विष्णु का मोहिनी रूप में प्रकट होना), गरुड १.२१.४(वामदेव शिव की १३ कलाओं में से एक), गर्ग १०.१७.२०(राजा नारीपाल की पत्नी, नारीपाल का वृत्तान्त), १०.१७.४६(रानी सुरूपा को पूर्व जन्म का स्मरण : मोहिनी अप्सरा द्वारा तप से सुरूपा रूप में जन्म), नारद १.६६.१२७(निरञ्जन की शक्ति मोहिनी का उल्लेख), १.९१.८०(वामदेव शिव की १२वीं कला), २.७(राजा रुक्माङ्गद को धर्मपथ से विचलित करने के लिए ब्रह्मा द्वारा मोहिनी की उत्पत्ति), २.२३(मोहिनी द्वारा रुक्माङ्गद राजा से एकादशी व्रत न करने का दुराग्रह), २.३२+ (मोहिनी द्वारा रुक्माङ्गद से पुत्र धर्माङ्गद के मस्तक की मांग), २.३५+ (देवताओं द्वारा मोहिनी को वरदान की चेष्टा, रुक्माङ्गद - पुरोहित के शाप से मोहिनी का भस्म होना, यम लोक में यातनाएं, दशमी के अन्त भाग में स्थान की प्राप्ति, पुन: शरीर प्राप्ति), २.८२(वसु ब्राह्मण के उपदेश से मोहिनी द्वारा तीर्थ यात्रा का उद्योग, दशमी तिथि के अन्त भाग में स्थित होना), पद्म २.३४.३९(सखियों द्वारा सुनीथा को पुरुष विमोहिनी विद्या का उपदेश), २.११८(विष्णु द्वारा मोहिनी रूप धारण कर विहुण्ड के विमोहन का वृत्तान्त), ४.१०(समुद्रमन्थन से अमृत उत्पन्न होने पर विष्णु का मोहिनी रूप धारण कर दैत्यों का विमोहन और देवों को अमृत प्रदान), ६.४९(वैशाख शुक्ल मोहिनी एकादशी व्रत का माहात्म्य : धनपाल वैश्य के दुष्ट पुत्र धृष्टबुद्धि की मुक्ति), ६.२२०(मोहिनी वेश्या की प्रयाग जल से मुक्ति, जन्मान्तर में हेमाङ्गी रानी बनना), ब्रह्मवैवर्त्त ४.३१+ (मोहिनी का रम्भा से संवाद, काम स्तोत्र, ब्रह्मा से संवाद, ब्रह्मा को शाप), ब्रह्माण्ड २.३.४.१०(अमृत वितरणार्थ विष्णु द्वारा धारित मोहिनी रूप पर शिव की आसक्ति), ३.४.१०.२७(मोहिनी अवतार द्वारा देवों को अमृतपान कराने का वर्णन, मोहिनी दर्शन से शिव का वीर्यपात), ३.४.१९.६५(कामदेव की ५ बाण शक्तियों में से एक), ३.४.१९.७४ (गीतिचक्र रथेन्द्र के पञ्चम पर्व पर स्थित १६ शक्तियों में से एक), भविष्य ३.२.१८(गौरीदत्त व धनवती - पुत्री, शूली आरोपित चोर से विवाह, प्रहेलिका का अर्थ बताने वाले पण्डित से गर्भ धारण आदि), भागवत १.३.१७(विष्णु के २१ अवतारों में १३वें मोहिनी अवतार का उल्लेख), ८.८+ (मोहिनी द्वारा अमृत वितरण का आख्यान), ८.१२(मोहिनी की क्रीडा का वर्णन, मोहिनी द्वारा शिव का मोहन), मत्स्य २५१.७(मोहिनी अवतार द्वारा असुरों के मोहन व देवों को अमृत प्रदान का कथन), वायु २५.४८(मधु - कैटभ से पीडित होने पर ब्रह्मा के समक्ष मोहिनी माया के प्रकट होने का कथन, ब्रह्मा द्वारा मोहिनी माया के नामकरण, मधु - कैटभ द्वारा मोहिनी से पुत्रत्व वर की प्राप्ति), २५.५० (महाव्याहृति : ब्रह्मा द्वारा मोहिनी माया को महाव्याहृति नाम प्रदान), शिव ३.२०(मोहिनी के रूप से शिव के वीर्य की च्युति, हनुमान का जन्म), स्कन्द १.१.१२(मोहिनी रूपी विष्णु द्वारा दैत्यों की अमृतपान से वंचना), लक्ष्मीनारायण १.९२(मोहिनी रूप धारी विष्णु द्वारा अमृत के वितरण की कथा), १.१६२.४२(मधु - कैटभ वध हेतु विष्णु द्वारा महामाया की सहायता से मोहिनी रूप धारण), १.१८४.५८(शिव को समाधि से बाहर लाने के लिए कृष्ण द्वारा मोहिनी रूप धारण, मोहिनी के दर्शन से ब्रह्मा, काम आदि के वीर्य का पतन, कामदेव की सहायता से मोहिनी द्वारा शिव को मोहित करना आदि), १.१९९.१६(शिव द्वारा दानवों को मोहित करने वाली मोहिनी के रूप के दर्शन की इच्छा, मोहिनी के दर्शन से वीर्यपात आदि का वृत्तान्त), १.२८६.१५(ब्रह्मा द्वारा राजा रुक्माङ्गद के व्रत को भङ्ग करने के लिए मोहिनी का सृजन तथा रुक्माङ्गद के प्रति प्रेषण), १.२८७-२९२(रुक्माङ्गद - मोहिनी आख्यान), १.५१५.३(ब्रह्मा की मानसी कन्या मोहिनी द्वारा ब्रह्मा के सेवन का हठ, ब्रह्मा द्वारा उपेक्षा पर ब्रह्मा तथा ऋषियों को अपूज्यत्व तथा षण्ढत्व का शाप, षण्ढत्व नाश हेतु मोहिनी की अर्चना का कथन), २.५७.७८(निद्रा देवी का अपर नाम), २.२४६.९०(अज्ञानमूलक वृक्ष के रूपक में मोहिनी के रसतृष्णा होने का उल्लेख), ३.१६.८५(व्याघ्रानल असुर के वध हेतु लक्ष्मी द्वारा मोहिनी रूप धारण करना, व्याघ्रानल असुर का मोहिनी को देख जडीभूत होना आदि), ३.१७०.१९(विष्णु के ३३वें धाम के रूप में मोहिनी का उल्लेख), कथासरित् ८.३.११८(याज्ञवल्क्य ऋषि द्वारा सूर्यप्रभ को मोहिनी विद्या प्रदान करना ), वास्तुसूत्रोपनिषद ६.२१टीका(रुद्र की २ आकर्षण शक्तियों में से एक), द्र. कुसुममोहिनी mohinee/ mohini
मोहेरकपुर स्कन्द ३.२.३५+ (मोहेरकपुर की धर्मारण्य में स्थिति, कुम्भीपाल द्वारा ब्राह्मणों की राम प्रदत्त वृत्ति की समाप्ति), ३.२.४०.६७(कलियुग में धर्मारण्य का नाम)
मौक्तिकेशी लक्ष्मीनारायण ३.२१८(कृष्ण द्वारा मौक्तिकेशी नामक भक्त खनित्र तथा उसके कर्मकारों की जलप्लावन से रक्षा का वृत्तान्त )
मौदाकि द्र. भूगोल
मौद्गल्य ब्रह्म २.६६(मुद्गल व भागीरथी - पुत्र, जाबाला - पति, भार्या के अनुरोध पर विष्णु से दारिद्र्य नाश का अनुरोध ), द्र. मुद्गल maudgalya
मौन अग्नि १६६.१८(प्रचार, मैथुनादि ६ क्रियाओं में मौन रखने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१४.२६( मौनि : क्रौञ्च द्वीप के ७ जनपदों में से एक, मुनि अधिपति), २.३.७४.१७३(११ मौन राजाओं द्वारा भविष्य में राज्य करने का उल्लेख), वायु ४५.१२७( मौनिक : दाक्षिणात्य देशों में से एक), ५९.४१(तप के ४ लक्षणों में से एक), ९९.३६०/२.३७.३५४(भविष्य में १८ मौन संज्ञक राजाओं के अस्तित्व का उल्लेख), विष्णु ४.२४.५३(११ मौन राजाओं द्वारा ३०० वर्ष राज्य करने का उल्लेख), स्कन्द ७.४.१७.१८( मौनप्रिय : भगवत्परिचारक वर्ग के अन्तर्गत दक्षिण द्वार के रक्षकों में से एक), महाभारत उद्योग ४३.१( मौन की परिभाषा), योगवासिष्ठ ६.१.६८(वसिष्ठ द्वारा राम को सुषुप्त मौन रूप महा मौन का उपदेश ) mauna
मौनेय ब्रह्माण्ड २.३.७.१(गन्धर्व व अप्सरा गण का नाम), वायु ६९.१/२.८.१( मौनेय गन्धर्व व अप्सरा का नाम), विष्णु ४.३.४(गन्धर्वों का नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.१२९(१० मौनेया अप्सराओं द्वारा नर - नारायण को मोहित करने का प्रयास ) mauneya
मौर्य ब्रह्माण्ड २.३.७४.१४४(चन्द्रगुप्त आदि ९ मौर्यवंशी राजाओं के नाम व राज्यकाल), भागवत १२.१.१२(नन्द वंश के पश्चात् चन्द्रगुप्त आदि १० मौर्य राजाओं के नाम, १३७ वर्ष राज्य करने का उल्लेख), मत्स्य २७२.२१(कौटिल्य के पश्चात् १० मौर्य राजाओं के नाम व राज्यकाल), वायु ९९.३३६/२.३७.३३० (चन्द्रगुप्त आदि ९ मौर्यवंशी राजाओं के नाम व राज्यकाल), विष्णु ४.२४.२७ (चन्द्रगुप्त आदि १० मौर्यवंशी राजाओं के नाम ) maurya
मौर्वी स्कन्द १.२.५९.५६(मुर - पुत्री, कामकटंकटा नाम, कृष्ण द्वारा मौर्वी को हिडिम्बा - पुत्र को पति रूप में प्राप्त करने का आश्वासन ) maurvee/ maurvi
मौलि गर्ग ७.१०.१४(कुटक देश के अधिपति मौलि को साम्ब द्वारा आधीन करना), ७.३९.४४( मौलेन्द्र : प्रद्युम्न के शंख का नाम), पद्म ६.१७४.३०( मौलिस्तान/मुलतान में हारीत ब्राह्मण द्वारा नृसिंह की पुत्र रूप में प्राप्ति), ब्रह्माण्ड १.२.१६.५८( मौलिक : दाक्षिणात्य देशों में से एक), मत्स्य १९६.३३ (आङ्गिरस वंश के त्रिप्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वायु ६९.१५६/२.८.१५१ (पुण्यजनी व मणिभद्र के २४ पुत्रों में से एक ), द्र. पार्श्व मौलि mauli
म्लेच्छ पद्म १.४७.६७ (विभिन्न दिशाओं में म्लेच्छों के लक्षण, गरुड द्वारा म्लेच्छों का भक्षण व उद्वमन), ब्रह्माण्ड १.२.१८.४३(बिन्दुसरोवर से प्रसूत ७ नदियों द्वारा म्लेच्छप्राय देशों को प्लावित करने का उल्लेख), भविष्य ३.१.३.९६(म्लेच्छों द्वारा क्षेमक का वध होने पर क्षेमक - पुत्र प्रद्योत द्वारा नारद के उपदेश से म्लेच्छ यज्ञ करके म्लेच्छों का हनन), ३.१.४.५(प्रद्योत - कृत म्लेच्छ यज्ञ का वर्णन), ३.१.४.४१(आचार, विवेक आदि से युक्त मनुष्य के म्लेच्छ होने? का कथन ; म्लेच्छ वंश का कथन), ३.३.२.२०(शालिवाहन नृप द्वारा आर्यों व म्लेच्छों की मर्यादा की स्थापना, सिन्धु स्थान की आर्यों के लिए और सिन्धु से परे म्लेच्छों के लिए स्थापना, म्लेच्छ देश में ईशामसीह की स्थापना), ३.३.३.१७(वाहीक देशस्थ महामद की म्लेच्छ धर्म में मति), भागवत ९.१६.३३(विश्वामित्र द्वारा पुत्र मधुच्छन्दा के अग्रजों को म्लेच्छ होने का शाप), ९.२०.३०(दुष्यन्त - पुत्र भरत द्वारा म्लेच्छों के हनन का उल्लेख), ९.२३.१६(द्रुह्यु के वंशज १०० प्राचेतसों के म्लेच्छाधिपति होने का उल्लेख), मत्स्य १०.७(वेन के शरीर के माता के अंश से म्लेच्छ जातियों की उत्पत्ति का कथन), १६.१६(श्राद्ध में म्लेच्छ देश के निवासियों के वर्जन का निर्देश), ३३.१४(ययाति द्वारा पुत्र तुर्वसु को पापी म्लेच्छों में जन्म? लेने का शाप), ११४.११(भारतवर्ष के अन्तों में म्लेच्छों के निवास का उल्लेख), १२१.४३(बिन्दु सरोवर से प्रसूत ७ नदियों द्वारा म्लेच्छप्राय देशों को प्लावित करने का कथन, म्लेच्छ देशों के नाम), १४४.५१(प्रमति/कल्कि अवतार द्वारा म्लेच्छों के वध का उल्लेख), १८१.१९(अविमुक्त क्षेत्र में मृत्यु पर म्लेच्छ आदियों की मुक्ति का उल्लेख), २७३.२५(आर्य व म्लेच्छ जनपदों के धार्मिक यवनों से मिश्रित होने तथा कल्कि अवतार द्वारा अधार्मिक आर्यों व म्लेच्छों को नष्ट करने का कथन), महाभारत कर्ण ४५.३६(म्लेच्छों की स्वसंज्ञानियत विशेषता का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.३७.६८(डफ्फर/दिक्फर जातीय म्लेच्छों का सौराष्ट} में उपद्रव, श्रीहरि द्वारा सुदर्शन चक्र से म्लेच्छों का निग्रह), २.५०-५४(अबि|क्त देश के म्लेच्छों द्वारा दिव्य विमान और उसमें आसीन दिव्य कन्याओं को प्राप्त करने का यत्न, विमानवासी देवों व म्लेच्छों का युद्ध, म्लेच्छों का नाश आदि ) mlechchha |