PURAANIC SUBJECT INDEX (From Mahaan to Mlechchha ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Mekhalaa, Megha / cloud, Meghanaada etc. are given here. मृत्युञ्जय अग्नि ३२३.२४(महामृत्युञ्जय मन्त्र), गरुड १.१८(मृत्युञ्जय की अर्चना की विधि), नारद १.९१.१०९(मृत्युञ्जय मन्त्र का वर्णन), लिङ्ग २.५३+ (मृत्युञ्जय मन्त्र का वर्णन), स्कन्द ३.१.४९.५२(वरुण द्वारा मृत्युञ्जय की स्तुति), ३.३.१२.२०(मृत्युञ्जय से सर्वकाल में रक्षा की प्रार्थना), ७.१.७.१३(विरञ्चि नामक प्रथम ब्रह्मा के समय सोमनाथ का नाम), ७.१.९५(मृत्युञ्जय रुद्र का माहात्म्य, नन्दी द्वारा मृत्युञ्जय की पूजा ) mrityunjaya
मृदा अग्नि २१८.१२(अभिषेक में विभिन्न प्रकार की मृदाओं के उपयोग - पर्वताग्रमृदा तावन्मूर्द्धानं शोधयेन्नृपः ।। वल्मीकाग्रमृदा कर्णौ वदनं केशवालयात् ।…..), भविष्य ४.३१.११(मृदा मन्त्र), योगवासिष्ठ ६.२.१५८.१९(व्याध की देह के महामेद से मृदा की उत्पत्ति का कथन), वराह १८३(मृदा से निर्मित प्रतिमा के प्रतिष्ठापन की विधि), विष्णु ४.१४.९(मृदामृद : उपमद्गु? के पुत्रों में से एक, अनमित्र वंश), विष्णुधर्मोत्तर २.२१.२(अभिषेक में विभिन्न प्रकार की मृदाओं का उपयोग), स्कन्द ५.३.२०९.११९(मृदा ग्रहण मन्त्र ) mridaa
मृदु भागवत ९.२४.१६(मृदुर व मृदुविद् : श्वफल्क व गान्दिनी के १२ पुत्रों में से २), वायु ९६.११०/२.३४.११०(मृदुर : श्वफल्क व गान्दिनी के पुत्रों में से एक), १०६.३४/२.४४.३४(गया में ब्रह्मा के यज्ञ के मानस ऋत्विजों में से एक ) mridu
मृलिक वायु ३१.९(स्वायम्भुव मन्वन्तर में सोमपायी त्विषिमन्त गण के १२ देवों में से एक )
मृषा भागवत ४.८.१(अधर्म - पत्नी, दम्भ व माया - माता )
मृष्ट विष्णु ४.१५.२१(मार्ष्टि : सारण के पुत्रों में से एक )
मेकल पद्म २.१०५.२७(हुण्ड दैत्य की सैरन्ध्री मेकला को नहुष बालक की हत्या का आदेश, सैरन्ध्री द्वारा आदेश की गुप्त रूप से अवहेलना - मेकलां तु समाहूय सैरंध्रीं वाक्यमब्रवीत् ॥ जह्येनं बालकं दुष्टं मेकलेऽद्य महानसे।), ब्रह्माण्ड १.२.१६.६३(विन्ध्यवासियों के जनपदों में से एक), २.३.७४.१८८(मेकला में भविष्य में ७? पुष्पमित्र संज्ञक राजा होने का उल्लेख), मत्स्य ११४.५२(विन्ध्यपृष्ठ निवासियों के जनपदों में से एक), वायु ९९.३७६/२.३७.३६९(मेकला में ७? पुष्पमित्र राजा होने का उल्लेख - मेकलायां नृपाः सप्त भविष्यन्ति च सत्तमाः। कोमलायान्तु राजानो भविष्यन्ति महाबलाः ।। ) mekala
मेखला गर्ग ४.१९.२६(यमुना सहस्रनामों में से एक - मेखलाऽमेखला काञ्ची काञ्चीनी काञ्चनामयी ।), पद्म ६.१८५.१६( मेघंकर नगर में मेखला तीर्थ की महिमा - यस्मिन्पुरे महातीर्थं विद्यते मेखलाभिधम् । यत्र स्नात्वा नरैर्नित्यं प्राप्यते वैष्णवं पदम्॥.), ब्रह्माण्ड ३.४.३६.७६ (त्रैलोक्यमोहन चक्र में स्थित ८ शक्तियों में से एक - कुसुमा मेखला चैव मदना मदनातुरा । रेखा वेगिन्यङ्कुशा च मालिन्यष्टौ च शक्तयः ॥), मत्स्य २२.४१(मेघकर तीर्थ में शार्ङ्गधर विष्णु के मेखला में स्थित होने का उल्लेख - तीर्थं मेघकरं नाम स्वयमेव जनार्दनः।। यत्र शार्ङ्गधरो विष्णुर्मेखलायामवस्थितः।), वामन ८९.४५ (भरद्वाज द्वारा वामन को मेखला प्रदान का उल्लेख - यज्ञोपवीतं पुलहस्त्वहं च सितवाससी। मृगाजिनं कुम्भयोनिर्भरद्वाजस्तु मेखलाम्।। ), स्कन्द ५.२.४५.९१(शिव द्वारा गंगापन्नगों का मेखला रूप में धारण - लिंगादेव हि निर्गत्य गंगापन्नगमेखलः ।। प्रत्युवाच ततः कन्या विभुरुत्तिष्ठतेति सः ।। ), महाभारत कर्ण ४४.४४/३७.५५(महोलूखलमेखला वाली राक्षसी द्वारा आरट्ट व वाहीक देशों की निन्दा - आरट्टा नाम ते देशा बाह्लीकं नाम तद्वनम्। वसातिसिन्धुसौवीरा इति प्रायोऽतिकुत्सिताः।।), अनुशासन २३.४०(तीन वर्णों के लिए रशना/मेखला के द्रव्यों का कथन), वा.रामायण ४.३०.४९(वापियों के लिए हंसों की मेखला का उल्लेख - प्रकीर्ण हंसाकुल मेखलानाम् प्रबुद्ध पद्मोत्पल मालिनीनाम् ।), ४.३०.५४(नदियों के लिए मीन रूपी मेखला का उल्लेख - मीनोप संदर्शित मेखलानाम् नदी वधूनाम् गतयो अद्य मंदाः । ), द्र. उदूखलमेखला mekhalaa मेघ गर्ग ३.३.२(इन्द्र की आज्ञा से संवर्तक मेघों द्वारा गोवर्धन पर्वत पर वृष्टि, मेघों के विभिन्न वर्ण), पद्म २.२२.२१(कर्म रूपी अम्बुद/मेघ की उपमा - कर्मांबुदे महति गर्जतिवर्षतीव विद्युल्लतोल्लसतिपातकसंचयैर्मे), ३.१७.३(गर्जन तीर्थ में मेघ की उपस्थिति, तीर्थ के प्रभाव से इन्द्रजित् नाम धारण- गर्जनं तु ततो गच्छेद्यत्र मेघ उपस्थितः। इंद्रजिन्नाम संप्राप्तं तस्य तीर्थप्रभावतः।।), ६.१८५.५(गीता के ११वें अध्याय के माहात्म्य के संदर्भ में मेघङ्कर नगर की शोभा का वर्णन, मेघङ्कर नगर में सुनन्द ब्राह्मण का वास), ब्रह्म १.८०(यज्ञ विनाश से कुपित इन्द्र द्वारा संवर्तक मेघों को गोकुल विनाश की आज्ञा, गोकुल रक्षार्थ कृष्ण द्वारा गोवर्धन धारण - संवर्तकं नाम गणं तोयदानामथाब्रवीत्।। भो भो मेघा निशम्यैतद्वदतो वचनं मम।), ब्रह्म २.७२.४(राहु - पुत्र मेघहास द्वारा तप द्वारा राहु को ग्रहों में प्रतिष्ठा दिलाना, स्वयं नैर्ऋत अधिपति बनना - अमृते तु समुत्पन्ने सैहिकेये च भेदिते।। तस्य पुत्रो महादैत्यो मेघहास इति श्रुतः।), ब्रह्माण्ड १.२.२०.२२(सुतल नामक द्वितीय तल में मेघ राक्षस के भवन की स्थिति का उल्लेख), १.२.२२.३१(गुण अनुसार मेघों के नाम), १.२.२२.४६(अण्ड कपाल का रूप - यस्मिन्ब्रह्मा समुत्पन्नश्चतुर्वक्त्रः स्वयंप्रभुः । तान्येवांडकपालानि सर्वे मेघाः प्रकीर्त्तिताः ।।), २.३.७४.१८९ (कोमला में ९ मेघ संज्ञक राजाओं द्वारा राज्य करने का उल्लेख), भविष्य ३.४.८.१३(मेघशर्मा द्वारा शन्तनु के राज्य में वृष्टि कराना), भागवत २.१.३४(विराट् पुरुष के केशों के मेघ रूप होने का उल्लेख - ईशस्य केशान्न् विदुरम्बुवाहान् वासस्तु सन्ध्यां कुरुवर्य भूम्नः ।), ८.१०.२१(मेघदुन्दुभि : देवासुर संग्राम में बलि के सहायक असुरों में से एक - हयग्रीवः शङ्कुशिराः कपिलो मेघदुन्दुभिः।), मत्स्य २.८(प्रलय काल उपस्थित होने पर संवर्त, भीमनाद प्रभृति ७ प्रलयकारक मेघों द्वारा घोर वृष्टि - संवर्तो भीमनादश्च द्रोणश्चण्डो बलाहकः। विद्युत्पताकः शोणस्तु सप्तैते लयवारिदाः।।), २२.४०(मेघकर तीर्थ में शार्ङ्गधर विष्णु के मेखला में स्थित होने का उल्लेख - तीर्थं मेघकरं नाम स्वयमेव जनार्दनः।। यत्र शार्ङ्गधरो विष्णुर्मेखलायामवस्थितः।), २४.५०(मेघजाति : नहुष के ७ पुत्रों में से एक), १२५.३५(मेघ शब्द की निरुक्ति - मेहनाच्च मिहेर्धातोर्मेघत्वं व्यञ्जयन्ति च। न भ्रश्यन्ते ततो ह्यापस्तस्मादभ्रस्य वै स्थितः।।), १४८.५१(मेघ असुर के रथ का प्रकार - मेघस्य द्वीपिभिर्भीमैः कुञ्जरैः कालनेमिनः।), १६३.८१(पर्वतों में से एक), लिङ्ग १.५४.३८(धूम्रों से निर्मित मेघों के प्रकार), वायु ४३.२६(मेघा : भद्राश्व वर्ष की नदियों में से एक), ५०.२२(सुतल नामक द्वितीय तल में मेघ राक्षस के भवन की स्थिति का उल्लेख), ५०.३६(महामेघ : पांचवें तल में महामेघ राक्षस के निवास का उल्लेख), ५१.२८(मेघों के प्रकारों का वर्णन), ९९.३७६/२.३७.३६९(कोमला में ९ मेघ संज्ञक राजाओं द्वारा राज्य करने का उल्लेख), विष्णु ६.३.३०(प्रलयकालिक संवर्तक मेघ के स्वरूप का कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.२४८.३१(गरुडों के कुल में से एक), शिव ५.२६.४०(कांस्य प्रभृति ९ प्रकार के घोषों/नादों में से एक मेघगर्जन का उल्लेख - दुन्दुभिं ७ शंखशब्दं ८ तु नवमं मेघगर्जितम् ९ ।। नव शब्दान्परित्यज्य तुंकारं तु समभ्यसेत् ।।), ५.२६.५१(मेघनाद से योगी को विपत्ति की अप्राप्ति), स्कन्द १.२.१६.२७(शुम्भ के कालमुञ्च महामेघ वाहन का उल्लेख - कालमुंचं महामेघमारूढः शुम्भदानवः॥ ), ४.१.१३.२१(शिव के केशों के जलद होने का उल्लेख - केशास्ते जलदाः प्रभो ।), ५.२.४४.२१(नवग्रहों से मेघों को पीडा के कारण अतिवृष्टि और अनावृष्टि, उत्तर मेघ द्वारा उत्तरेश की स्थापना), ५.२.४४.१४(गज, गवय, शरभ, उत्तर आदि मेघों की पूर्वादि दिशाओं में नियुक्ति का कथन), ५.२.७४.२७(राजा रिपुञ्जय के राज्य में देवों के अमर्ष के कारण अनावृष्टि होने पर राजा का मेघ रूप होकर वृष्टि करना), ५.३.१८.२(अग्नि द्वारा जगत संहरण के पश्चात् प्रकट हुए संवर्तक मेघ के स्वरूप का कथन), ५.३.१०३.६०(ब्रह्मा के वर्षा काल रूप और मेघ रूप होने, विष्णु के हेमन्तकाल रूप तथा रुद्र के ग्रीष्मकालरूप होने का कथन - प्रावृट्कालो ह्यहं ब्रह्मा आपश्चैव प्रकीर्तिताः । मेघरूपो ह्यहं प्रोक्तो वर्षयामि च भूतले ॥), ६.२५२.२६(चातुर्मास में मेघों की जम्बू वृक्ष में स्थिति का उल्लेख - जंबूर्मेघैः परिवृतः कृष्णवर्णोऽघनाशनः ॥ कृष्णस्य सदृशो वर्णस्तेन जंबू नगोत्तमः ॥), ७.१.२२६(मेघेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), हरिवंश २.१८(गोवर्धन प्रसंग में संवर्तक मेघ द्वारा इन्द्र आज्ञा से व्रज में भारी वर्षा करना), महाभारत शान्ति २७१(कुण्डधार जलधर द्वारा स्वभक्त ब्राह्मण के लिए धन की अपेक्षा तप व धर्म की प्राप्ति की कथा), योगवासिष्ठ १.१५.१४(मन रूपी महागज की गर्जन करने वाले मेघों से तुलना - अहंकारमहाविन्ध्ये मनोमत्तमहागजः । विस्फूर्जति घनास्फोटैः स्तनितैरिव वारिदः ।।), १.१७.३३(मेघ की तृष्णा से उपमा - प्रयच्छति परं जाड्यं परमालोकरोधिनी । मोहनीहारगहना तृष्णा जलदमालिका ।।), १.३१.३(मोह रूपी मेघ- वासनावातवलिते कदाशातडिति स्फुटे । मोहोग्रमिहिकामेघे घनं स्फूर्जति गर्जति ।।), ५.१४.२४(मत्त मेघों द्वारा शरभ के नाश का उल्लेख - शरभो नाशमायाति मत्तमेघविलङ्घने ।। मेघा वातैर्विधूयन्ते वायवो गिरिभिर्जिताः ।), लक्ष्मीनारायण १.३१९.९(जोष्ट्री व ब्रह्मा की पुत्री मेघा की वृक्ष वल्लियों में स्थिति का उल्लेख - वृक्षवल्लीषु तां मेघां पुत्रीं प्रसूय सन्दधे ।), १.३१९.११४(मेघा संज्ञक पत्नी के लक्षणों का कथन - मेहति वर्षते पत्यौ प्रेम वर्षयति प्रभौ । मयि स्नेहं करोत्येव मेघा सा मत्प्रिया मता ।।), १.४४१.८७(वृक्ष रूप धारी श्रीहरि के दर्शन हेतु मेघों के जम्बू वृक्ष बनने का उल्लेख - जम्बूवृक्षास्तदा मेघा अशोका विद्युतोऽभवन् ।।), २.११५.८३(मेघों द्वारा श्रीहरि हेतु दिव्य प्रेङ्खा/दोला प्रदान करने का कथन), ३.१६.५९(कच्छप के वाहन मेघ व मेघ के वाहन वायु का उल्लेख - कच्छपा मेघवाहाश्च मेघाश्च वायुवाहनाः ।। पर्वताः पक्षवाहाश्च विद्युतो मेघवाहिताः ।), कथासरित् ८.३.९०(मेघों से गिरे हुए काले नाग के रूप में सूर्यप्रभ को धनुष - रत्न तथा धनुष डोरी की सिद्धि), १०.६.६(मेघवर्ण : काकों का राजा, काक - उलूक कथा प्रसंग), १२.४.७२(मेघमाली : विदिशा नगरी का राजा, हंसावली - पिता ), द्र. कालमेघ, जीमूत, तालमेघ, नलमेघ megha
मेघ- ब्रह्माण्ड ३.४.३२.२९(मेघयन्त्रिका : वर्षा ऋतु की १२ शक्तियों में से एक), भागवत ५.२०.२१(मेघपृष्ठ : क्रौञ्च द्वीप के स्वामी घृतपृष्ठ के ७ पुत्रों में से एक), मत्स्य ६.१८(मेघवान् : दनु व कश्यप के प्रधान दानव पुत्रों में से एक), १६२.८१(मेघवासा : हिरण्यकशिपु की सभा के असुरों में से एक), वायु ३६.३२(मेघशैल : महाभद्र सरोवर के उत्तर में स्थित पर्वतों में से एक), ६९.१५६/२.८.१५१(मेघपूर्ण : पुण्यजनी व मणिभद्र के २४ पुत्रों में से एक ) megha-
मेघनाद नारद १.६६.१३६(मेघनाद गणेश की शक्ति सुभगा का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.२९.११६(भण्डासुर के संदर्भ में लक्ष्मण द्वारा मेघनाद के वध का उल्लेख), ३.४.४४.७०(५१ वर्णों के गणेशों में से एक), मत्स्य १९०.४(मेघनाद तीर्थ में मेघनाद गण द्वारा परम गणता को प्राप्त होने का उल्लेख), वामन ५७.८५(कुटिला द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण का नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.२२२.३१(मेघनाद द्वारा शक्र का बन्धन), स्कन्द ५.२.२३(मेघों द्वारा स्थापित मेघनादेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, देवों द्वारा मेघनादेश्वर की आराधना), ५.३.३५(मन्दोदरी व रावण - पुत्र, जन्म समय में नाद की उत्पत्ति, तप से मेघनाद तीर्थ की स्थापना), ७.२.१५.२(रैवतक पर्वत पर क्षेत्रपाल का नाम), वा.रामायण ७.२५.४(मेघनाद द्वारा सात यज्ञों द्वारा सिद्धि प्राप्ति), ७.२८.७(मेघनाद का जयन्त से युद्ध), ७.२९+ (मेघनाद द्वारा इन्द्र का बन्धन करने से इन्द्रजित् नाम की प्राप्ति), लक्ष्मीनारायण १.५७४.२९(मेघनाथ द्वारा शिव की अर्चना से स्थापित मेघनाथ क्षेत्र का कथन ) meghanaada/ meghanada
मेघपाली भविष्य ४.१७(मेघपाली लता, मेघपाली तृतीया व्रत का माहात्म्य )
मेघपुष्प भविष्य ३.३.१०.४७(पपीहक व हरिणी - पुत्र मेघपुष्प अश्व का बिन्दुल रूप में अवतार), भागवत १०.५३.५(कृष्ण के रथ के ४ अश्वों में से एक), १०.८९.४९(वही) meghapushpa
मेघबल कथासरित् १२.२.१९(मृगाङ्कदत्त के १० मन्त्रियों में से एक), १२.३४.१४(मृगाङ्कदत्त के ४ सचिवों में से एक),
मेघमाली भागवत ५.२०.४(मेघमाल : प्लक्ष द्वीप के ७ मर्यादा पर्वतों में से एक), वायु ६९.१२/२.८.१२(प्रचेता व सुयशा के यक्ष गण पुत्रों में से एक), कथासरित् १२.४.७२(विदिशा नगरी का राजा, हंसावली - पिता ) meghamaalee/ meghamali
मेघवर्ण ब्रह्माण्ड २.३.७.१२४(मणिभद्र व पुण्यजनी के २४ पुत्रों में से एक), कथासरित् १०.६.६(काकों का राजा, काक - उलूक कथा ) meghavarna
मेघवाहन लिङ्ग १.३७.१७(मेघवाहन कल्प का कथन : जनार्दन द्वारा मेघ होकर शिव का वहन), २.८(धुन्धुमूक द्विज द्वारा मेघ बनकर शिव का वहन, शिव को वहन करने से अति भार के कारण मेघवाहन की खिन्नता, धुन्धुमूक के दुष्ट पुत्र का वृत्तान्त), वायु २१.५०(२२वें कल्प का नाम व लक्षण), शिव ३.४.३०(मेघवाह : सप्तम द्वापर में जैगीषव्य शिवावतार के चार पुत्रों में से एक), स्कन्द ६.९३.२६(अम्बरीष - पुत्र सुवर्चा का पूर्व जन्म में नाम, मेघवाहन द्वारा ब्राह्मण - हत्या के कारण जन्मान्तर में कुष्ठ प्राप्ति), ७.१.८४.२(मेघवाहन दैत्य द्वारा ऋषियों को पीडा, आदिनारायण विष्णु द्वारा पादुका से मेघवाहन के ह्रदय में ताडन), लक्ष्मीनारायण १.५३८.३२(मेघवाहन दैत्य का पादुका से वध का कथन ) meghavaahana/ meghavahana
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