PURAANIC SUBJECT INDEX (From Mahaan to Mlechchha ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Maarjaara / cat, Maartanda / sun, Maalati, Maalava, Maalaa / garland etc. are given here. मार्जन अग्नि ७७.१८(सम्मार्जनी पूजा की विधि), विष्णुधर्मोत्तर १.१६९(देवालय मार्जन का फल), स्कन्द १.१.७.४९(पतङ्गी द्वारा अनायास शिव मन्दिर का मार्जन करने से काशिराज - सुता सुन्दरी बनना ), द्र. अपामार्जन maarjana/marjana
मार्जार गणेश २.१२६.१९(चक्रपाणि द्वारा स्थापित गणेश के पञ्चायतन मन्दिर में पूर्व दिशा में मन्मथ सहित मार्जारी देवी की स्थापना), गरुड १.२१७.२५(अन्न हरण से मार्जार योनि प्राप्ति का उल्लेख), २.४६.१५(बहुतर्जक के मार्जार बनने का उल्लेख), २.४६.२५(अग्नि को पद से स्पर्श करने पर मार्जार बनने का उल्लेख), गर्ग ७.२५.५(गणेश को युद्ध - विमुख करने के लिए अनिरुद्ध द्वारा धारित रूप), पद्म ६.३०.८३(दीप प्रबोधन से मार्जार का सुधर्मा राजा बनना), ब्रह्म २.१४(केसरी की दो भार्याओं में से एक, अद्रिका का रूप, निर्ऋति से पुत्र उत्पन्न करना), ब्रह्माण्ड २.३.७.१७७(हरि व पुलह के पुत्रों के गणों में से एक), २.३.७.३०३(ऋक्षराज जाम्बवन्त के पुत्रों में से एक, मार्जार गण का पिता), २.३.७.३१९(मार्जारलौह : वानरों की ११ जातियों में से एक), भागवत ९.२२.४६(मार्जारि : सहदेव - पुत्र, श्रुतश्रवा - पिता, मगध के भविष्य के राजाओं में से एक), मार्कण्डेय १५.२०(अन्न हरण के फलस्वरूप मार्जार योनि की प्राप्ति का उल्लेख), ७६.७/७३.७(राजा अनमित्र के जातिस्मर पुत्र द्वारा स्वयं को भक्षण करने को उत्सुक मार्जारी का उल्लेख), वामन ५७.७७(कौशिकी नदी द्वारा कुमार को प्रदत्त गण), स्कन्द २.४.७(मार्जार द्वारा दीप के लिए गृध्र पर आक्रमण, मृत्यु, पूर्व जन्म में दुष्ट चरित्र देवशर्मा), ४.१.४५.४१(मार्जारी : ६४ योगिनियों में से एक), ५.३.१५९.१५(वितर्जक? को मार्जार योनि प्राप्ति का उल्लेख), ५.३.१५९.२६(पैर से अग्नि का स्पर्श करने पर मार्जार योनि प्राप्ति तथा कुपण्डित के मार्जार होने का उल्लेख), महाभारत उद्योग १६०.१६(दुर्योधन द्वारा तप का ढोंग करने वाले मार्जार द्वारा मूषकों के भक्षण के आख्यान का कथन), शान्ति १३८.१८(स्वार्थसिद्धि हेतु मार्जार व मूषक की मित्रता का वृत्तान्त), योगवासिष्ठ १.१४.१९(मूषक रूपी जीव के लिए मार्जार की मृत्यु से उपमा), १.१८.११(शरीर में जीव / आत्मा की मार्जार से उपमा), १.२२.२५(जरा मार्जारी, यौवन आखु / मूषक), १.३१.५(यम रूपी मार्जार द्वारा प्राणी रूपी मूषकों का भक्षण), ६.१.७.२१ (मार्जारी : यौवन रूपी आखु की भक्षक जरावस्था का रूप), लक्ष्मीनारायण २.२६.८८(दम्भार्थ जपादि करने वाले की मार्जार संज्ञा का कथन,आखु का भी कथन), २.९८.४२(उर्वशी द्वारा सनत्सुजात.सनत्कुमार मुनि को बिडाली होने का शाप), २.९९(नारायण द्वारा कुम्भकार की तप्त भ्राष्ट} के नीचे मार्जारी के अपत्यों की रक्षा, मार्जारी द्वारा पूर्व जीवन की स्मृति प्राप्त करके मुक्त होना), ३.९२.८८ (मार्जारी के गुप्तता धर्म का उल्लेख), ४.६७.११(गोदुग्ध की चोरी से गोपालक का मार्जार बनना, कथा के उच्छिष्ट भक्षण से मुक्ति का वृत्तान्त), कथासरित् ३.३.१४०(इन्द्र व अहल्या आख्यान में गौतम मुनि के भय से इन्द्र द्वारा मार्जार रूप धारण), ६.७.१०७(नकुल व उलूक के भय से मूषक की मार्जार के साथ क्षणिक मित्रता की कथा), १०.६.५१(शश व कपिञ्जल द्वारा कपट वेष धारी मार्जार से न्याय हेतु प्रार्थना, मार्जार द्वारा दोनों की हत्या), १०.९.१५८(मार्जार मूर्ख की कथा में मूर्खों द्वारा ब्रह्मचारी बटु का मार्जार रूप से ग्रहण तथा चूहों के भक्षण हेतु मठ में स्थापन ) maarjaara/ marjara
मार्जालीय मार्जालीय वायु २१.३७(१७वें कल्प का नाम), २९.२९(मार्जालीय अग्नि, व्यरत्नि उपनाम ) maarjaaleeya/marjaliya मार्तण्ड नारद १.११६.५५(मार्तण्ड व्रत), ब्रह्म १.३०.४०(अदिति के गर्भ से मार्तण्ड की उत्पत्ति, मार्तण्ड द्वारा असुरों का पराभव), ब्रह्मवैवर्त्त ३.१९.२६(मार्तण्ड सूर्य से कर्ण की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड २.३.७.२८०(मार्तण्ड की उत्पत्ति), २.३.५९.२५(मार्तण्ड शब्द की निरुक्ति), भविष्य १.६१.२६(भोजन करते समय मार्तण्ड सूर्य के स्मरण का निर्देश), १.१०९(मार्तण्ड सप्तमी व्रत का माहात्म्य), मत्स्य २.३६(मृत अण्ड से उत्पन्न होने के कारण मार्तण्ड नाम धारण), १५.१६(मार्तण्ड मण्डल में मरीचिगर्भ नामक लोकों में हविष्मन्त पितरों की स्थिति का उल्लेख), मार्कण्डेय १०१(मार्तण्ड की उत्पत्ति), १०५(मार्तण्ड की अण्ड से उत्पत्ति), वराह २०(कश्यप - पुत्र मार्तण्ड की संज्ञा पत्नी से यम व यमुना, छाया से शनि व तपती तथा अश्व रूप धारी संज्ञा से अश्विनीकुमारों का जन्म), वायु ६१.२१(मार्तण्ड द्वारा अश्वरूप याज्ञवल्क्य हेतु यजु मन्त्र प्रदान का उल्लेख), ८४.२५/२.२२.२५(मार्तण्ड शब्द की निरुक्ति व विवस्वान् मार्तण्ड की ७ सन्तानों के नाम), स्कन्द ४.१.१७.७२(सूर्य द्वारा मार्तण्ड नाम प्राप्ति के कारण का कथन), लक्ष्मीनारायण २.१२.२४(दमनक दैत्य के प्रमुख सैनिकों में से एक ) maartanda/martanda
माल- मत्स्य १९५.२६(मालायनि : भार्गव कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक),वायु ४५.१२२(पूर्व के जनपदों में मालदा, मालवर्ती, माला आदि का उल्लेख )
मालती नारद १.६७.६१(मालती पुष्प को शिव को अर्पण करने का निषेध), पद्म ६.१०४.२५( मालती के सतोगुणी होने का उल्लेख?), ६.१०५.१(मा/लक्ष्मी से मालती की उत्पत्ति का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त १.२४.१७(ब्रह्मा द्वारा नारद पुत्र को पूर्व जन्म की पत्नी मालती से विवाह का निर्देश), ३.४.५८(हास्य सौन्दर्य हेतु मालती पुष्प वृन्दावनेश को प्रदान करने का उल्लेख), ४.९४(मालती द्वारा राधा को सांत्वना), ४.१०४.८९(मालती देवी द्वारा उग्रसेन के राज्याभिषेक में हार भेंट करने का उल्लेख), भविष्य १.५७.१६(अप्सराओं हेतु मालती पुष्प की बलि का उल्लेख), २०८.१०(अश्वपति राजा की पत्नी मालती द्वारा सावित्री कन्या को जन्म देने का उल्लेख, सावित्री - सत्यवान् प्रसंग), २१३.१६(अश्वपति - पत्नी मालवी से मालव संज्ञक पुत्रों के जन्म का उल्लेख), वराह १७२.४५(पुष्प देवी मालती का गोकर्ण से वार्तालाप), स्कन्द २.२.४४.४(विष्णु के १२ रूपों की १२ मासों में भिन्न - भिन्न पुष्पों से पूजा के अन्तर्गत मालती पुष्प से सप्तम मास की पूजा का उल्लेख), २.४.२३.१(प्रक्षिप्त बीजों से तीन वनस्पतियों - धात्री, मालती व तुलसी की उत्पत्ति), २.४.३२.४५(भीष्मपञ्चक व्रत के अन्तर्गत विष्णु के शीर्ष की मालती पुष्प से पूजा का उल्लेख), ४.२.६८.६८(मालतीश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.१.१७.११२(मालती पुष्प की महिमा), वा.रामायण ०.३(शूद्र, काली - पति, रामायण श्रवण से वैभव की प्राप्ति, सुमति राजा बनना), लक्ष्मीनारायण १.३८५.३३(मालती का कार्य), १.४४१.९४(वृक्ष रूप धारी श्रीहरि के दर्शन हेतु लक्ष्मी के मालती वृक्ष बनने का उल्लेख), ३.८६.५३(राजा चित्रकेतु द्वारा स्वपत्नी मालती को स्वयं के राजा बनने के कारण का वर्णन : पूर्व जन्म में साधु सेवा आदि), ४.१०१.११५(कृष्ण व मालती के पुत्र तन्तुधृक् व पुत्री सन्तानिका का उल्लेख ) maalatee/malati
मालव गर्ग ७.६.२४(मालव नरेश जयसेन द्वारा प्रद्युम्न को भेंट), पद्म २.९१.४(इन्द्र द्वारा ब्रह्महत्या के त्याग / अभिषेक का स्थान), ६.२१८.६(मालव विप्र द्वारा धन दान, स्व भागिनेय पुण्डरीक को उपदेश), ब्रह्म २.२६(मालव देश की इन्द्र के अभिषेक से उत्पन्न मल से उत्पत्ति), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.९५(५१ वर्णों के न्यास हेतु ५१ पीठों में से एक), मत्स्य ११४.४४(प्राच्य देशों में से एक), ११४.५२(विन्ध्य पृष्ठ निवासियों के जनपदों में से एक), २१३.१६(अश्वपति - भार्या व सावित्री - माता मालवी द्वारा मालव संज्ञक पुत्रों को जन्म देने का उल्लेख), लिङ्ग २.१.१८ (कौशिक विप्र के शिष्य मालव वैश्य द्वारा हरि - गान से दिव्य लोक की प्राप्ति), वामन १७.४४(मालवा यक्ष की रम्भ - करम्भ पर कृपा ), वायु ४५.१३२ (विन्ध्यपृष्ठ निवासियों के जनपदों में से एक), स्कन्द १.१.१७.२७६(मालवा की वृत्र के शरीर से उत्पत्ति), लक्ष्मीनारायण ३.५८.१६, ३.५८.५६(भक्त कौशिक के शिष्य मालव द्वारा दीपमाला प्रस्तुत करने का उल्लेख), ३.१८८.१(अपजापक नामक राज कोषाध्यक्ष का मृत्यु पश्चात् मालव्य नगर में शङ्कुधर नामक चोर बनने तथा तापस की कृपा से शङ्कुधर के मोक्ष का वृत्तान्त), ३.१९२.४(युद्धपुर के राजा मालवसिंह व उसके मित्र धनिष्ठकोष की यज्ञ में मृत्यु से रक्षा का वृत्तान्त), ४.३५(मालव ग्राम में मालवानी चाण्डाली द्वारा दान के प्रभाव से मोक्ष प्राप्ति का वृत्तान्त), कथासरित् २.२.६(मालव देशस्थ यज्ञसेन ब्राह्मण के पौत्र श्रीदत्त की कथा), ३.६.१६८(सुन्दरक द्वारा मूलियों का विक्रय, दुष्ट राजसेवकों द्वारा मूलियों को मालवीय बताकर ग्रहण करना), ४.१.१०६(मालव देशस्थ अग्निदत्त नामक ब्राह्मण की ज्येष्ठ पुत्रवधू पिङ्गलिका की कथा), १०.२.८०(मालव देशस्थ वज्रसार - पत्नी की कथा), १०.६.१७२(मालव देशस्थ दो ब्राह्मण बन्धुओं द्वारा पैतृक धन के बंटवारे में पिता की दासी की हत्या), १०.७.६(मालव देशस्थ श्रीधर नामक ब्राह्मण के यशोधर और लक्ष्मीधर नामक पुत्रों की कथा), १०.१०.७८(मालव देशस्थ गृहस्थ की एकादशमारिका कन्या की कथा), १२.६.२३८(पद्मिष्ठा, श्रीदर्शन और मुखरक का मालव की ओर प्रस्थान), १२.११.८(मालव देश से आए हुए वीरवर नामक ब्राह्मण की राजा शूद्रक की सेवा में नियुक्ति), १२.३१.६(धर्म नामक राजा द्वारा मालव - कन्या चन्द्रावती से विवाह), १६.१.२५(मालव देशस्थ सुषेणा एवं उसके पति शूरसेन के परस्पर प्रेम की कथा ) maalava/ malava
माला अग्नि २५.१५(वनमाला पूजा हेतु बीज मन्त्र), ३२७(कामना अनुसार माला द्रव्य ; माला जप विधि), गणेश २.१०.३१(सागर द्वारा महोत्कट गणेश का मालाधर नामकरण), देवीभागवत ७.३०.२८(दक्ष द्वारा दुर्वासा - प्रदत्त दिव्य माला के तिरस्कार से सती व शिव से द्वेष की प्राप्ति), पद्म १.५९.११९(माला के लक्षण), ६.१४८.१(चित्राङ्गवदन तीर्थ में मालार्क की स्थिति का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१०.१५०(नारायण द्वारा सरस्वती को वनमाला देने का उल्लेख), ४.७२.३७(कृष्ण द्वारा मालाकार को वरदान), ब्रह्माण्ड ३.४.१५.११ (ललिता देवी द्वारा पति वरण हेतु माला को आकाश में फेंकने का उद्योग), ३.४.१५.२२(कुबेर द्वारा ललिता देवी को चिन्तामणि माला भेंट), भविष्य १.५७.१४(यम हेतु वैकङ्कत स्रज बलि का उल्लेख), दुर्गासप्तशती ५.९६(समुद्र द्वारा प्रदत्त किञ्जल्किनी माला का उल्लेख), वामन ९०.६१(वृषाकपि - पत्नी, निशाकर द्वारा पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन), वायु ३५.३८(अश्वत्थ वृक्ष के केतु पर इन्द्र - प्रदत्त माला की विराजमानता से द्वीप का केतुमाल नाम धारण), विष्णु १.९.५(दुर्वासा द्वारा विद्याधरों से दिव्य माला की याचना, विद्याधरों से प्राप्त माला इन्द्र को प्रदान करना, इन्द्र द्वारा तिरस्कार करने पर दुर्वासा द्वारा इन्द्र को श्रीहीन होने का शाप), १.२२.७२(वैजयन्ती माला : पञ्च तन्मात्राओं व पञ्च भूतों का संघात), ५.१९.१७(मथुरा में मालाकार पर कृष्ण की कृपा), शिव ७.२.१४.३७(माला जप विधान के अन्तर्गत भिन्न - भिन्न संख्या के माला जप से भिन्न - भिन्न फलों की प्राप्ति, कामना अनुसार माला के अक्षों की संख्या), स्कन्द २.२.३८.११७(दमनक दैत्य विनाश के समय भगवान् के कर स्पर्श से तृण का सुगन्धित होना, दमन के नाम से ही भगवान् द्वारा माला रूप में धारण करना), २.५.४(तुलसीकाष्ठ, तुलसीदल तथा धात्रीफल से निर्मित माला के धारण का माहात्म्य), ७.१.९.५(मुण्ड माला का रहस्य), योगवासिष्ठ १.१५.१६(तृष्णा रूपी तन्तु - प्रोत बहु जन्म परम्परा रूपी माला), वा.रामायण ४.२२.१६(वाली को पिता ऋक्षरजा से दिव्य माला की प्राप्ति, वाली द्वारा सुग्रीव को देना), लक्ष्मीनारायण १.१०६.३६(इन्द्र द्वारा दुर्वासा - प्रदत्त पारिजात पुष्प माला का तिरस्कार, माला से ऐरावत की मूर्द्धा का पवित्र होना और ऐरावत के शिर का गणेश में योजन), २.२५.९३(फाल्गुन दोला महोत्सव के संदर्भ में श्रीहरि द्वारा मीन रूप धारी सालमाल दैत्य का वध), २.७७.६७(राजा द्वारा कृष्ण माला प्रदान से क्रूर प्रच्छन्न पातक के निवर्तन का उल्लेख), २.२११.२३( श्रीहरि के राजा रायबालेश्वर के द्वैपायन द्वीप में मालावन ऋषि के साथ आगमन, उपदेश आदि का कथन), ३.१३०.५१(३ प्रकार के चक्रों में माला रूपी चक्र के महत्त्व का वर्णन), ४.१८(मालियान व मल्लिकाश्री मालाकार युगल द्वारा भगवान् की पुष्प माला आदि द्वारा अर्चना से ब्रह्म रस प्राप्ति आदि का वर्णन), कथासरित् २.१.८१(वसुनेमि नामक नाग द्वारा उदयन को स्वरक्षा के बदले में अम्लान माला, वीणा और पान लता प्रदान), ४.२.१३८(चित्राङ्गद नामक विद्याधर की पुष्पमाला का गङ्गा में गोता लगाने वाले नारद की पीठ पर गिरना, क्रुद्ध नारद द्वारा विद्याधर को शाप), ८.७.१३७(विभिन्न दिव्य मालाओं के गुण), १२.५.२७८(मालाधर नामक ब्राह्मण कुमार की धैर्यपारमिता की कथा), १२.२.१४२(हंसी द्वारा सरोवर तट पर रखी रत्नमाला की सहायता से अपने पति हंस को जाल से मुक्त करना ), द्र. कपालमालाभरण, कीर्तिमाला, कृतमाला, केतुमाला, रत्नमाला, रुद्रमाल, सालमाल, हार maalaa/ mala |