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पुराण विषय अनुक्रमणिका

PURAANIC SUBJECT INDEX

(From Paksha to Pitara  )

Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar

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Paksha - Panchami  ( words like Paksha / side, Pakshee / Pakshi / bird, Panchachuudaa, Panchajana, Panchanada, Panchamee / Panchami / 5th day etc. )

Panchamudraa - Patanga ( Pancharaatra, Panchashikha, Panchaagni, Panchaala, Patanga etc. )

Patanjali - Pada ( Patanjali, Pataakaa / flag, Pati / husband, Pativrataa / chaste woman, Patnee / Patni / wife, Patnivrataa / chaste man, Patra / leaf, Pada / level etc.)

Padma - Padmabhuu (  Padma / lotus, Padmanaabha etc.)

Padmamaalini - Pannaga ( Padmaraaga, Padmaa, Padmaavati, Padminee / Padmini, Panasa etc. )

Pannama - Parashunaabha  ( Pampaa, Payah / juice, Para, Paramaartha, Parameshthi, Parashu etc. )

Parashuraama - Paraashara( Parashuraama, Paraa / higher, Paraavasu, Paraashara etc)

Parikampa - Parnaashaa  ( Parigha, Parimala, Parivaha, Pareekshita / Parikshita, Parjanya, Parna / leaf, Parnaashaa etc.)

Parnini - Pallava (  Parva / junctions, Parvata / mountain, Palaasha etc.)

Palli - Pashchima (Pavana / air, Pavamaana, Pavitra / pious, Pashu / animal, Pashupati, Pashupaala etc.)

Pahlava - Paatha (Pahlava, Paaka, Paakashaasana, Paakhanda, Paanchajanya, Paanchaala, Paatala, Paataliputra, Paatha etc.)

Paani - Paatra  (Paani / hand, Paanini, Paandava, Paandu, Pandura, Paandya, Paataala, Paataalaketu, Paatra / vessel etc. )

Paada - Paapa (Paada / foot / step, Paadukaa / sandals, Paapa / sin etc. )

 Paayasa - Paarvati ( Paara, Paarada / mercury, Paaramitaa, Paaraavata, Paarijaata, Paariyaatra, Paarvati / Parvati etc.)

Paarshva - Paasha (  Paarshnigraha, Paalaka, Paavaka / fire, Paasha / trap etc.)

Paashupata - Pichindila ( Paashupata, Paashaana / stone, Pinga, Pingala, Pingalaa, Pingaaksha etc.)

Pichu - Pitara ( Pinda, Pindaaraka, Pitara / manes etc. )

 

 

पर्वत

टिप्पणी वैदिक निघण्टु में पर्वत की परिगणना मेघ नामों के अन्तर्गत की गई है। यास्काचार्य द्वारा निरुक्त 1.20 में पर्वत की निरुक्ति इस प्रकार की है गिरिः पर्वतः। समुद्गीर्णो भवति। पर्ववान्पर्वतः। पर्व पुनः पृणातेः। प्रीणातेर्वा। अर्धमास - पर्व। देवानस्मिन्प्रीणन्तीति। तत्प्रकृतीतरत्सन्धिसामान्यात्।

सायणाचार्य द्वारा ऋग्वेद 6.49.14 ऋचा(तन्नो अहिर्बुध्न्यो अद्भिरर्कैस्तत्पर्वतस्तत्सविता चनो धात्) की व्याख्या करते समय पर्वत शब्द की निरुक्ति इस प्रकार की है पर्वतः पूरयिता। पर्व पूरणे इति धातुः। यद्वा पर्ववद्वज्रं पर्वतः। तद्वान्। पर्वतस्य गिरेः शत्रुरिति वा पर्वतः। वर्तमान संदर्भ में यास्काचार्य की निरुक्ति पर्ववान् पर्वतः, अर्थात् जो पर्व से युक्त है, वह पर्वत है, उपयुक्त प्रतीत होती है। ऋग्वेद 1.57.6 के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है कि साधना की प्रथम स्थिति में ज्योति का पर्वत पर्ववान् नहीं होता, वह केवल मात्र ज्योति पुञ्ज होता है। उसे काट कर उसे पर्वयुक्त बनाना पडता है

त्वं तमिन्द्र पर्वतं महामुरुं वज्रेण वज्रिन् पर्वशश्चकर्तिथ।

अवासृजो निवृताः सर्तवा अपः सत्रा विश्वं दधिषे केवलं सहः।।

 

 पुराणों में पर्व क्या हो सकते हैं, इसकी व्याख्या में संवत्सर के पर्वों अहोरात्र, दर्श पूर्णमास, अयन आदि को गिना दिया गया है। पर्वों को सन्धियां कहा गया है। पर्वतों के संदर्भ में न सही, पुराणों ने पर्व की व्याख्या मरुतों के संदर्भ में कर दी है। पुराणों में सार्वत्रिक आख्यान आता है कि इन्द्र ने दिति के गर्भ के 7 और फिर 7-7, इस प्रकार 49 टुकडे/पर्व कर दिए। बाद में दिति के वरदानस्वरूप यह टुकडे मरुत नाम से इन्द्र के सखा बन गए। अतः पर्वतों के रहस्य को समझने के लिए मरुतों के रहस्य को भी समझना होगा कि क्या मरुतों का रहस्य पर्वतों के रहस्य पर भी कोई प्रकाश डाल सकता है। ऋग्वेद 1.64.3 में मरुतों को पर्वताः इव कहा गया है

युवानो रुद्रा अजरा अभोग्घनो ववक्षुरध्रिगावः पर्वता इव।

ऋग्वेद 10.36.1 में भी मरुत शब्द के साथ ही पर्वतान् शब्द प्रकट हुआ है लेकिन यह ज्ञात नहीं है कि यह मरुतों की ही संज्ञा है अथवा कोई पृथक् संज्ञा है

इन्द्रं हुवे मरुतः पर्वताँ अप आदित्यान् द्यावापृथिवी अपः स्वः।।

अग्नि पुराण 219.28, गरुड पुराण 1.6.58, ब्रह्माण्ड पुराण 2.3.5.79 आदि में 49 मरुतों के नाम प्रकट हुए हैं। लेकिन इन नामों के क्रम में बहुत अन्तर है। वाजसनेयि संहिता 17.85 में मरुतों के 7 गणों के नाम प्रकट हुए हैं जो इस प्रकार हैं स्वतवां, प्रघासी, सान्तपन, गृहमेधी, क्रीडी, शाकी, उज्जेषी। ब्रह्माण्ड पुराण 2.3.5.79 में मरुतों के गणों की व्याख्या की गई है । पहला गण आवह वायु के अन्तर्गत है जिसका विस्तार पृथिवी से लेकर मेघों तक है। दूसरा गण प्रवह वायु के अन्तर्गत है जिसका विस्तार मेघों से लेकर भास्कर तक है। तीसरा गण उद्वह वायु के अन्तर्गत है जिसका विस्तार भास्कर से लेकर सोम तक है। चौथा गण संवह वायु के अन्तर्गत है जिसका विस्तार सोम से लेकर ज्योतिषगण तक है। पांचवां गण विवह वायु के अन्तर्गत है जिसका विस्तार ज्योतिषगण से लेकर ग्रहों तक है। छठां गण अनुवह वायु के अन्तर्गत है जिसका विस्तार ग्रहों से लेकर सप्तर्षिमण्डल तक है। सातवां गण परिवह वायु के अन्तर्गत है जिसका विस्तार सप्तर्षिमण्डल से लेकर ध्रुव तक है।

अग्नि पुराण 219.28, गरुड पुराण 1.6.58, ब्रह्माण्ड पुराण 2.3.5.79 आदि में 49 मरुतों के नाम प्रकट हुए हैं। लेकिन इन नामों के क्रम में बहुत अन्तर है। यह अन्तर किस कारण से है, इसको ढूढने के लिए, वेद संहिताओं का आश्रय लिया गया । माध्यन्दिन वाजसनेयि संहिता 17.84, तैत्तिरीय संहिता 4.6.5.6, मैत्रायणी संहिता 2.11.1, काठक संहिता 18.6, मानव श्रौत सूत्र 6.2.5 आदि में अग्निचयन के संदर्भ में मरुतों के नाम आए हैं, लेकिन इन सभी में क्रम भिन्न भिन्न हैं। इतना ही नहीं, मरुतों के केवल साढे पांच गणों के नाम ही दिए गए हैं, सात के नहीं। अतः पुराणों के मरुतों के क्रम में अन्तर होना न्यायोचित ही है। अब देखना यह है कि मरुतों के जो नाम प्रकट हुए हैं,  उनका कोई साम्य जम्बू, प्लक्ष, शाल्मलि, क्रौञ्च, कुश, शाक व पुष्कर द्वीपों के अन्तर्गत वर्णित 7 7 पर्वतों से बैठता है या नहीं। पुराण कथा में कहा गया है कि राजा प्रियव्रत ने देखा कि सूर्य आधी पृथिवी को तो प्रकाशित करता है, आधी अन्धकारयुक्त रह जाती है। उन्होंने अपने रथ में बैठकर पृथिवी की सात परिक्रमाएं की जिससे उनके रथ की परिधि से पृथिवी में सात द्वीप बन गए। यह उन्होंने अपने 7 पुत्रों और उनके पुत्रों में विभाजित कर दिए। इसका वैदिक रूपान्तर शतपथ ब्राह्मण 10.1.4 के अनुसार यह है कि प्रजापति ने 6 मर्त्य स्तरों को 7 अमर्त्य स्तरों के बीच स्थापित कर दिया जिससे वह भी अमर हो जाएं।

मरुतों के नाम(ब्रह्माण्ड पुराण 2.3.5.79) -

1.     शक्रज्योति, सत्य, सत्यज्योति, चित्रज्योति, ज्योतिष्मान्, सुतपा, चैत्य।

2.     ऋतजित्, सत्यजित्, सुषेण, सेनजित्, सुतमित्र, अमित्र, सुरमित्र।

3.     धातु, धनद, उग्र, भीम, वरुण,

4.     अभियुक्, ताक्षिक, साद्राय

5.     ईदृक्, अन्यदृक्, ससरित्, द्रुम वृक्ष, मित, संमित

6.     ईदृक्, पुरुष, नान्यादृक, समचेतन, संमितः, समवृति, प्रतिहर्ता

   7. ?

मरुतों के नाम(गरुड पुराण 1.6.58)

1.एकज्योति, द्विज्योति, त्रिज्योति, चतुर्ज्योति, एकशुक्र, द्विशुक्र, त्रिशुक्र।

2.ईदृक्, अन्यदृक्, सदृक, प्रतिसदृक्, मित, समित, सुमित।

3.ऋतजित्, सत्यजित्, सुषेण, सेनजित्, अतिमित्र, अमित्र, दूरमित्र, अजित।

4.ऋत, ऋतधर्मा, विहर्ता, वरुण, ध्रुव, विधारण।

5. ईदृक्ष, सदृक्ष, एतादृक्ष, मिताशन, एतनः, प्रसदृक्ष, सुरत।

6.तादृक्, उग्र, ध्वनि, भास, विमुक्त, विक्षिप, सद्द।

7. द्युति, वसु, बलाधृष्य, लाभ, काम, जयी, विराट्।

 

शाक अधिपति हव्य/ भव्य/मेधातिथि के पुत्र/वर्ष

लिङ्ग

१.४६.२५

विष्णु

2.4.59

वराह

74.8

 

मत्स्य

122.

भागवत

5.20.25

 

जलद

जलद

 

1.उदय/गतभय

पुरोजव

 

कुमार

कुमार

 

2.सुकुमार/शैशिर

मनोजव

 

सुकुमार

सुकुमार

 

3.कौमार/सुखोदय

पवमान

 

मणीचक

मरीचक

 

4.अनीचक्र/आनन्दक

धूम्रानीक

 

कुसुमोत्तर

कुसुमोद

 

5.कुसुमोत्कर/असित

चित्ररेफ

 

मोदाकी

मोदाकि

 

6.मैनाक/क्षेमक

बहुरूप

 

महाद्रुम

महाद्रुम

 

7.ध्रुव

विश्वधार

 

शाक द्वीप के पर्वत

लिङ्ग

विष्णु

2.4.61

वराह

86.2

मत्स्य

122.8

भागवत

5.20.26

 

उदय

उदय

1.मेरु/उदय

ईशान

 

जलाधार

जलधार/

चन्द्र

2.जलधार/चन्द्र

उरुशृङ्ग

 

रैवतक

 

श्वेतक/शाक

 

3.नारद/दुर्गशैल

बलभद्र

 

श्याम

आम्बिकेय/

विभ्राज

4.श्याम/दुन्दुभि

शतकेसर

 

अस्त

केसरी

5.अस्त/सोमक

सहस्रस्रोत

 

आम्बिकेय

 

6.आम्बिकेय/सुमना

देवपाल

 

केसरी

 

7.विभ्राज/केशव

महानस

शाक द्वीप की नदियां

लिङ्ग

विष्णु

2.4.64

वराह

86.3

मत्स्य

122.29

भागवत

5.20.26

 

सुकुमारी

सुकुमारी

सुकुमारी/मुनितप्ता

अनघा

 

कुमारी

कुमारी

तपःसिद्धा/सती

आयुर्दा

 

नलिनी

नन्दा

नन्दा/पावनी

उभयस्पृष्टि

 

धेनुका

वेणिका

शिबिका/द्विविधा

अपराजिता

 

इक्षु

धेनु

इक्षु/कुहू

पञ्चपदी

 

वेणुका

इक्षुमती

वेणुका/अमृता

सहस्रस्रुति

 

गभस्ती

गभस्ति

सुकृता/गभस्ती

निजधृति

 

क्रौञ्च(अधिपति द्युतिमान/घृतपृष्ठ) के वर्ष/देश

लिङ्ग

1.46.30

विष्णु

2.4.47

वराह

88.3

मत्स्य

122.84

भागवत

5.20.21

कुशल

कुशल

कुशल/माधव

कुशल

आम

मनुग

मल्लग

मनोनुग/संवर्तक/मनुगव्य

मनोनुग

मधुरुह

उष्ण

उष्ण

उष्णवान्/सप्रकाशः

उष्ण

मेघपृष्ठ

पीवर

पीवर

पावक/सुदर्शन

पावनक

सुधामा

अन्धकारक

अन्धकारक

अन्धकार/संमोह

अन्धकारक

भ्राजिष्ठ

मुनि

मुनि

मुनि/प्रकाशः

मुनि

लोहितार्ण

दुन्दुभि

दुन्दुभि

दुन्दुभि/अनर्थ

दुन्दुभिस्वनः

वनस्पति

क्रौञ्च द्वीप के पर्वत

लिङ्ग

विष्णु

2.4.49

वराह

88.1

मत्स्य

122.80

भागवत

5.20.21

 

क्रौञ्च

क्रौञ्च/विद्युल्लतः रैवत

देवन

शुक्ल

 

वामन

मानस/पावक

गोविन्द

वर्धमान

 

अन्धकारक

अन्धकार/अच्छोदक

क्रौञ्च

भोजन

 

रत्नशैल

देवावृत/सुराप

पावनक

उपबर्हिण

 

दिवावृत्

देविष्ठ/कांचनशृङ्ग

अन्धकारक

नन्द

 

पुण्डरीकवान्

गोविन्द/द्विविन्द

देवावृत्

नन्दन

 

दुन्दुभि

पुण्डरीक/तोयासह

पुण्डरीक

सर्वतोभद्र

क्रौञ्च द्वीप की नदियां

लिङ्ग

विष्णु

2.4.55

वराह

88.4

मत्स्य

122.88

भागवत

5.20.21

 

गौरी

गौरी

गौरी

अभया

 

कुमुद्वती

कुमुद्वती

कुमुद्वती

अमृतौघा

 

सन्ध्या

सन्ध्या

सन्ध्या

आर्यका

 

रात्रि

रात्रि

रात्रि

तीर्थवती

 

मनोजवा

मनोजवा

मनोजवा

वृत्तिरूपवती

 

क्षान्ति

ख्याति

ख्याती

पवित्रवती

 

पुण्डरीका

पुण्डरीका

पुण्डरीका

शुक्ला

 

 कुश अधिपति ज्योतिष्मान्/हिरण्यरेता के पुत्र/वर्ष

लिङ्ग

1.46.34

विष्णु

2.4.35

वराह

74.8

मत्स्य

122.65

भागवत

5.20.14

उद्भिद

उद्भिद

उद्भिद

1.श्वेत/उन्नत

वसु

वेणुमान्

वेणुमान

वेणुमान

2.लोहित/वेणुमण्डल

वसुदान

द्वैरथ

वैरथ

रथपाल

3.जीमूत/स्वैरथाकार

दृढरुचि

लवण

लम्बन

मन

4.हरिक/लवण

नाभिगुप्त

धृतिमान्

धृति

धृति

5.ककुद/धृतिमं

स्तुत्यव्रत

प्रभाकर

प्रभाकर

प्रभाकर

6.महिष/प्रभाकर

विविक्त

कपिल

कपिल

कपिल

7.कपिल

वामदेव

कुश द्वीप के पर्वत

लिङ्ग

विष्णु

2.4.41

वराह

87.1

मत्स्य

122.52

भागवत

5.20.15

 

विद्रुम

कुमुद/विद्रुम

1.कुमुद/विद्रुमोच्चय

चक्र

 

हेमशैल

उन्नत/हेम

2.उन्नत/हेमपर्वत

चतुःशृङ्ग

 

द्युतिमान

द्रोण

3.बलाहक/द्युतिमान्

कपिल

 

पुष्पवान्

पुष्पवान्/कङ्क

4.द्रोण/पुष्पवान्

चित्रकूट

 

कुशेशय

कुशेशय/अग्निमान्

5.कङ्क/कुशेशय

देवानीक

 

हरि

महिष/हरि

6.महिष/हरि

ऊर्ध्वरोमा

 

मन्दराचल

ककुध्र/मन्दर

7.ककुद्मान्/मन्दर

द्रविण

कुश द्वीप की नदियां

लिङ्ग

विष्णु

2.4.43

वराह

87.3

मत्स्य

122.71

भागवत

5.20.15

 

धूतपापा

प्रतोया/प्रवेशा

धूतपापा/योनि

रसकुल्या

 

शिवा

शिवा/यशोदा

सीता/निशा

मधुकुल्या

 

पवित्रा

चित्रा/कृष्णा

पवित्रा/वितृष्णा

मित्रविन्दा

 

सम्मति

ह्रादिनी/चन्द्रा

ह्रादिनी/चन्द्रभा

श्रुतविन्दा

 

विद्युत

विद्युल्लता/शुक्ला

विद्युत/शुक्ला

देवगर्भा

 

अम्भा

वर्णा/विभावरी

पुण्ड्रा/विभावरी

घृतच्युता

 

मही

महती/धृति

महती/धृति

मन्त्रमाला

 

 शाल्मलि(अधिपति वपुष्मान्/यज्ञबाहु) के वर्ष/देश

लिङ्ग

1.46.38

विष्णु

2.4.23

वराह

मत्स्य

122.

भागवत

5.20.9

श्वेत

श्वेत

 

कुशल

सुरोचन

हरित

हरित

 

 

सौमनस्य

जीमूत

जीमूत

 

रोहिण

रमणक

रोहित

रोहित

 

 

देववर्ष

वैद्युत

वैद्युत

 

 

पारिभद्र

मानस

मानस

 

 

आप्यायन

सुप्रभ

सुप्रभ

 

 

अविज्ञात

 

शाल्मलि द्वीप के पर्वत

लिङ्ग

विष्णु

2.4.25

वराह

89.3

मत्स्य

122.94

भागवत

5.20.10

 

कुमुद

सुमहान्

सुमना

स्वरस

 

उन्नत

पीत

पीत

शतशृङ्ग

 

बलाहक

शातकौम्भ

रोहित

वामदेव

 

द्रोण

सर्वगुण

 

कुन्द

 

कङ्क

सौवर्ण

 

मुकुन्द

 

महिष

रोहित

 

पुष्पवर्ष

 

ककुद्मान्

सुमनस

 

सहस्रश्रुति

 

 

कुशल

 

 

 

 

जाम्बूनद

 

 

 

 

वैद्युत

 

 

 

शाल्मलि द्वीप की नदियां

लिङ्ग

विष्णु

2.4.28

वराह

मत्स्य

भागवत

5.20.10

 

योनि

 

 

अनुमति

 

तोया

 

 

सिनीवाली

 

वितृष्णा

 

 

सरस्वती

 

चन्द्रा

 

 

कुहू

 

मुक्ता

 

 

रजनी

 

विमोचनी

 

 

नन्दा

 

निवृत्ति

 

 

राका

 

 

प्लक्ष(अधिपति मेधातिथि/इध्मजिह्व) के वर्ष

लिङ्ग

1.46.42

विष्णु

2.4.3

वराह

मत्स्य

भागवत

5.20.3

शांतभय

शान्तहय

 

 

शिव

शिशिर

शिशिर

 

 

यवस

सुखोदय

सुखोदय

 

 

सुभद्र

आनन्द

आनन्द

 

 

शान्त

शिव

शिव

 

 

क्षेम

क्षेमक

क्षेमक

 

 

अमृत

ध्रुव

ध्रुव

 

 

अभय

प्लक्ष द्वीप के पर्वत

लिङ्ग

विष्णु

2.4.6

वराह

मत्स्य

भागवत

5.20.4

 

गोमेद

 

 

मणिकूट

 

चन्द्र

 

 

वज्रकूट

 

नारद

 

 

इन्द्रसेन

 

दुन्दुभि

 

 

ज्योतिष्मान्

 

सोमक

 

 

सुपर्ण

 

सुमना

 

 

हिरण्यष्ठीव

 

वैभ्राज

 

 

मेघमाल

 

प्लक्ष द्वीप की नदियां

लिङ्ग

विष्णु

2.4.10

वराह

मत्स्य

भागवत

5.20.4

 

अनुतप्ता

 

 

अरुणा

 

शिखी

 

 

नृम्णा

 

विपाशा

 

 

आंगिरसी

 

त्रिदिवा

 

 

सावित्री

 

क्लम

 

 

सुप्रभाता

 

अमृता

 

 

ऋतम्भरा

 

सुकृता

 

 

सत्यम्भरा

 

 

गोमेद(अधिपति हव्य) के पुत्र

लिङ्ग

विष्णु

वराह

मत्स्य

123.5

भागवत

 

 

 

धातकी

 

 

 

 

कुमुद

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

गोमेद के पर्वत

लिङ्ग

विष्णु

वराह

मत्स्य

123.2

भागवत

 

 

 

सुमना

 

 

 

 

कुमुद

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

जम्बू अधिपति आग्नीध्र के पुत्र तथा वर्ष

लिङ्ग

1.47.1

 

विष्णु

2.1.15

 

वराह

नाभि

हेम

नाभि

हिम

 

किम्पुरुष

हेमकूट

किम्पुरुष

हेमकूट

 

हरिवर्ष

नैषध

हरिवर्ष

नैषध

 

इलावृत

मेरु

इलावृत

मेरु

 

रम्य

नीलाचल

रम्य

नीलाचल

 

हिरण्मान्

श्वेत

हिरण्वान्

श्वेत

 

कुरु

शृङ्ग

कुरु

उत्तरशृङ्ग

 

भद्राश्व

माल्यवान्

भद्राश्व

 

 

केतुमाल

गन्धमादन

केतुमाल

गन्धमादन

 

 

भविष्य पुराण 4.195.42 में धान्य, लवण, गुड, सुवर्ण, तिल, कार्पास, घृत, रत्न, रौप्य व शर्करा शैलों के दान के माहात्म्य का वर्णन है । अन्य पुराण में इन्हें दश धेनु नाम दिया गया है। इन दस शैलों की एक व्याख्या सायणाचार्य महोदय द्वारा शतपथ ब्राह्मण की अपनी टीका के प्रत्येक अध्याय के अन्त में की है जो निम्नलिखित है

धान्याद्रिं धन्यजन्मा तिलभवमतुलः स्वर्णजं वर्णमुख्यः, कार्पासीयं कृपावान्गुडकृतमजडो राजतं राजपूज्यः। आज्योत्थं प्राज्यजन्मा लवणजमनृणः शार्करं चार्कतेजा, रत्नाढ्यो रत्नरूपं गिरिमकृत मुदा पात्रसात्सिङ्गणार्यः।।

प्रथम लेखन 5-1-2011(पौष शुक्ल प्रतिपदा, विक्रम संवत् 2067)

This page was last updated on 12/27/20.