पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Paksha to Pitara ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Paada / foot / step, Paadukaa / sandals, Paapa / sin etc. are given here. पाद गर्ग २.१८.२१/२.२१.२१( कृष्ण व राधा के पादों के चिह्नों का कथन ), नारद १.६३.१३( चतुष्पाद तन्त्र के भोग, मोक्ष आदि ४ पादों का उल्लेख; पादार्थ के पशुपति होने का उल्लेख ), २.३२.५२( ब्राह्मण रूप धारी विष्णु द्वारा विरोचन - पत्नी विशालाक्षी को पादोदक दान के बदले दम्पत्ति के जीवनहरण का वृत्तान्त ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.५४( पाद सौन्दर्य हेतु पद्मनेत्र को एक लाख शतपत्रस्थल अब्ज दान का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.३७.५२( ललिता देवी के मञ्चरत्न के ४ पादों के रूप में ब्रह्मा, विष्णु, महेश व ईश्वर का कथन ), भविष्य ३.४.८.९३(वृषभ के तीन पादों के रूप में भूत, भव्य व भव का उल्लेख), भागवत १.१७.२४(धर्म के तीन पादों तप, शौच व दया को नष्ट करने वाले स्मय, संग व मद), २.५.४१(पादतल में पाताल की स्थिति का उल्लेख), लिङ्ग १.४९.२६( मेरु के चारों दिशाओं में चार पाद रूपी पर्वतों के नाम ), वायु ८४.११/२.२२.११( कलि व निकृति - पुत्र विधम के एकपाद होने का उल्लेख ), शिव २.५.८.१८( शिव रथ में दिशाओं व उपदिशाओं रूपी पादों का उल्लेख ), ७.२.१०.३०( ज्ञान, क्रिया, चर्या व योग नामक धर्म के ४ पादों की व्याख्या ), ७.२.२९.२१( रक्त पद्म दल का पाणि, पादतल व अधरों से साम्य ), स्कन्द १.२.६२.२७( नीलपाद : क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक ), २.७.१९.३७( पादों में जयन्त की स्थिति ), ३.१.२३.४८(छिन्नपाद हरिहर विप्र द्वारा चक्र तीर्थ में पुनः पाद प्राप्ति), ३.२.६.७( वेदमयी गौ के वर्ण पाद होने का उल्लेख), ४.२.५८.१८( पादोदक तीर्थ के माहात्म्य का कथन ), ४.२.७५.७५( पादोदक कूप का संक्षिप्त माहात्म्य : उदक पान से पुनर्जन्म से मुक्ति ), ४.२.८४.३( पादोदक तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ),५.१.६३.१३०( एकपाद, द्विपाद, बहुपाद आदि : विष्णु सहस्रनामों में ९ नाम ), ५.२.११.२३( सिद्धेश्वर लिङ्ग के दर्शन से अनूरु द्वारा पादलेप रसायन प्राप्त करने का उल्लेख ), ६.२७(चतुर्युगों के स्वरूप का वर्णन, युगों में धर्म के पाद), ६.२०८.१७( राम के पाद स्पर्श से शिला रूप गौतम - पत्नी अहल्या के शुद्ध होने का पूर्वकथन ), ७.४.१७.२५( एकपाद : द्वारका के पश्चिम् द्वार की रक्षा करने वालों में एक ), हरिवंश ३.१७.३०( धर्म के ४ पादों के ब्रह्मचर्य, गृहस्थ आदि नाम ), महाभारत उद्योग ४४.१०(ब्रह्मचर्य के ४ पादों का कथन), योगवासिष्ठ ६.१.१२८.१०( पादों का विष्णु में न्यास ), वा.रामायण ५.१७.१३( हनुमान द्वारा अशोक वाटिका में हस्तिपादा, महापादा आदि राक्षसियों को देखना ), लक्ष्मीनारायण १.३७२.११७(धर्म के पूर्व, वर्त्तमान व भविष्य के चार - चार पादों के नाम), २.१८.२२( कुबेर - कन्याओं द्वारा कृष्ण को समर्पित पादपीठ के स्वरूप का कथन ) , २.५७.४०(मर्क व मदानक असुरों का यमदूत शृङ्गवान् से युद्ध, यमदूत द्वारा हस्त - पादों का कर्तन), २.७९.४६( कृष्ण के पादों में स्थित चिह्नों का कथन ), २.१०९.९७( पन्नाम देश के राजा पादसह द्वारा शम्भु से युद्ध का उल्लेख ), ३.७१( भगवान् के त्रिपाद् विभूति विस्तार का वर्णन? ), ३.१८३.४३( राजा द्वारा सागर नामक भक्त भृत्य के पादों को भङ्ग करना, भगवान् द्वारा भिषक् रूप में पादों को नीरोगी करना, सागर द्वारा पूर्व जन्म में हस्ती के पाद भङ्ग करने का वर्णन ), ३.२१५.६३( देह में पादमूल की ब्रह्माण्ड में पाताल से समता ), द्र. उत्तानपाद, एकपाद, कल्माषपाद, जालपाद, त्रिपाद, पद, रोमपाद, व्याघ्रपाद paada
पादप मत्स्य ५९( पादप उद्यापन विधि का वर्णन ), २३२( पादपों के रोने, हंसने, रस स्राव करने आदि के फलों का कथन ), स्कन्द ५.१.५.३९( कुशस्थली में शिव द्वारा पादपों को वरदान देने का वृत्तान्त ) paadapa
पादुका गरुड १.२५.१( पादुका पूजन मन्त्र ), गर्ग ७.२.२७( पृथिवी द्वारा प्रद्युम्न को पादुका भेंट ), नारद १.६५.५४( श्रीपादुका मन्त्र का कथन? ), ब्रह्मवैवर्त्त २.२७.११( पादुका दान से वायु लोक की प्राप्ति ), ब्रह्माण्ड ३.४.३७.२९( योगनाथों द्वारा पादुकात्मक लोकों की सृष्टि का उल्लेख ), भागवत ४.१५.१८( भू द्वारा पृथु को योगमयी पादुका देने का उल्लेख ), मत्स्य ५९.१४( पादप दान के अन्तर्गत दान योग्य उपस्करों में से एक ), ७०.४८( अनङ्ग दान व्रत के अन्तर्गत दान योग्य उपस्करों में से एक ), २७५.२५( हिरण्यगर्भ दान व्रत के अन्तर्गत दान योग्य वस्तुओं में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर ३३.३०१.३३( पादुका प्रतिग्रह की संक्षिप्त विधि ), स्कन्द ५.२.११.२२( सिद्धेश्वर लिङ्ग के दर्शन से कार्तवीर्य अर्जुन द्वारा पादुका गमन सिद्धि प्राप्ति का उल्लेख ), ५.२.५९.५३( महासिद्धियों में से एक ), ६.८९( अम्बा - वृद्धा द्वारा मातृकाओं के अनुशासनार्थ पादुकाओं की स्थापना, शिव से उत्पन्न कन्याओं द्वारा पादुका पूजन ), ६.१९४( कुमारियों द्वारा ब्रह्मज्ञान प्राप्ति हेतु स्थापित पादुका तीर्थ ), ७.१.८४( आदिनारायण द्वारा पादुका से मेघवाहन दैत्य का वध ), ७.३.२२( श्रीमाता देवी द्वारा कलिङ्ग दानव के ऊपर पादुकाओं की स्थापना ), हरिवंश २.७८.२७( व्रत, उपवास आदि में तृण आदि से पादुका निर्माण का निर्देश ), लक्ष्मीनारायण १.५३८.३२( मेघवाहन दैत्य का पादुका से वध ), २.१०६.९६( श्रीकृष्ण को भेंट की गई पादुकाओं के स्वरूप का कथन ), २.२२५.९१( मुक्त पुरुषों को पादुका दान का उल्लेख ), ३.४९.९४( गुर्वी की पादुका में गङ्गा की स्थिति का उल्लेख ), कथासरित् १.३.५२( राजा पुत्रक द्वारा दिव्य पादुकाओं का उपयोग करने का वृत्तान्त ) paadukaa/ paduka
पाद्य अग्नि ३४.१९( पाद्य के अङ्गभूत ४ द्रव्यों का कथन ), गरुड ३.११.२६(वृत्ति रूप परम ज्ञान के पाद्य अर्घ्य होने का उल्लेख)
पान गरुड ३.२९.६१(पान काल में नृसिंह के स्मरण का निर्देश), भागवत १.१७.३८( कलि द्वारा परीक्षित् से निवास हेतु प्राप्त स्थानों में से एक ), मत्स्य २२०.८( राजा के पान का निषेध ), वायु ४९.४१( पानी : शाल्मलि द्वीप में कुमुद? पर्वत से नि:सृत नदी ), विष्णुधर्मोत्तर १.१००.१( ग्रहों, नक्षत्रों के लिए देय पान ), लक्ष्मीनारायण २.१८९.६७( श्रीहरि का राजा मुद्राण्ड के सुपान नगर में आगमन हेतु प्रस्थान ) paana
पाप अग्नि ३१( पाप मार्जन हेतु अपामार्जन विधान व स्तोत्र ), १६८+ ( महापातकों व प्रायश्चित्तों का वर्णन ), १७२( पाप नाशक विष्णु स्तोत्र ), २०३.६( विभिन्न पापों के अनुसार नरक की यातनाओं के नाम ), ३७१.३०( पाप अनुसार योनि की प्राप्ति ), कूर्म २.३२+ ( पापों के प्रायश्चित्त की विधि ), २.४२.९( धौतपाप तीर्थ का माहात्म्य ), गणेश १.९.१०( राजा सोमकान्त के शरीर से पाप पुरुष का निकलना, पापपुरुष के स्पर्श से आम्र वृक्ष का भस्म होना आदि ), गरुड १.५२( पाप हेतु प्रायश्चित्तों का कथन ), १.१०४( पापों के अनुसार प्राप्त योनियां ), १.१०५( पापों के अनुसार प्रायश्चित्त ), नारद १.१४( अशुचि कर्मों के प्रायश्चित्तों का वर्णन ), १.१५.४६( प्रायश्चित्त विहीन पापों का वर्णन ), १.३०( पापों के प्रायश्चित्त का विधान ), १.११९.३१( सार्वभौम दशमी व्रत में पाप का १० दिशाओं में विन्यास व नाश ), १.१२०.८०( पापमोचनिका एकादशी व्रत की विधि ), पद्म २.११( पाप रूप वृक्ष का वर्णन ), २.१५( पापियों की मरण भूमि, यमदूतों के लक्षण, मरणशील पापी की चेष्टाओं आदि लक्षणों का वर्णन ), २.१६( पापियों द्वारा यम मार्ग में प्राप्त कष्टों, यम के स्वरूप व पुनर्जन्म में प्राप्त योनियों का कथन ), ५.९४.१५ ( विभिन्न पापों के कारण पांच पुरुषों के पांच प्रेत बनने व वैशाख मास में रेवा स्नान आदि से मुक्ति का वर्णन ), ५.९४.१३१( नारद द्वारा अम्बरीष हेतु कथित पापप्रशमन स्तोत्र ), ५.९६.५०( यम द्वारा ब्राह्मण को नरक व स्वर्ग प्रापक कर्मों का वर्णन ), ७.२२( पाप पुरुष को भोजनार्थ एकादशी तिथि को अन्न रूप स्थल की प्राप्ति ), ब्रह्म १.१०५.८८( विभिन्न पापों के अनुसार यमालय को जाते हुए मार्ग में यातनाएं प्राप्त करने का वर्णन ), १.१०५.१२८( पापियों के दक्षिण द्वार से यमपुरी में प्रवेश का कथन ), १.१०६.८४( विविध पापों के अनुसार नरक में यातनाओं का वर्णन ), १.१०८.३६( पाप कर्म के अनुसार प्राप्त क्रमिक योनियों का वर्णन ), ब्रह्मवैवर्त्त २.९( भूमि हरण आदि भूमि से सम्बन्धित पापों के फलों का वर्णन ), २.५८.६५( तारा व चन्द्र के पाप निर्हरण के संदर्भ में चन्द्रमा के पापों का विभिन्न पापियों में वितरण का वृत्तान्त ), ४.७५.३१( पापों के फलस्वरूप प्राप्त योनियां तथा कर्म विपाक का वर्णन ), ४.८५.३४( कर्म विपाक का वर्णन ), ब्रह्माण्ड ३.४.२.१४५( पाप के फलस्वरूप नरक की प्राप्ति ), ३.४.८.३८( संयोगज पाप के ४ प्रकार तथा विभिन्न प्रकार के अन्नों के सेवन से प्राप्त आपेक्षिक अघों का कथन ), भविष्य १.१९०+ ( विविध पाप कर्मों का वर्णन, नरक यातना ), ४.५( पापों के विभिन्न प्रकार, उपपातक व कर्मफल ), भागवत ५.२६( पापों के फलस्वरूप नरक यातनाओं का वर्णन ), मार्कण्डेय १४( पाप अनुसार नरकों का वर्णन ), वराह १४०.५१( कोकामुख क्षेत्र में पापप्रमोचन तीर्थ के माहात्म्य का कथन ), १९५.२( नाचिकेत द्वारा विभिन्न प्रकार के पापियों का वर्णन ), १९९+ ( पापों के प्रायश्चित्त स्वरूप नरकों की यातनाओं का वर्णन ), २०३( पापों के फलस्वरूप नरक की यातना भोगने के पश्चात् कर्मक्षय होने पर मनुष्य लोक में दुःखों के स्वरूपों का वर्णन ), २१०.५०( पापों के नाशोपाय रूप में देह में चन्द्र, सूर्य आदि के दर्शन का कथन ), २११( पापनाशन के विभिन्न उपायों का वर्णन ), वामन ६१.१( नरक को ले जाने वाले पापों का कथन ), वायु १८.२( पाप के वाक्, मन व काय नामक ३ प्रकारों का उल्लेख ), ६९.१३२/२.८.१२७( ब्रह्मधना के १० पुत्रों में से एक ), १०१.१५१( पापों के अनुसार नरकों के नाम ), विष्णु १.१९.५( अन्यों के पापों का चिन्तन न करने पर पाप के प्राप्त न होने का कथन ), २.६.१( पापों के अनुसार नरकों के नाम ), विष्णुधर्मोत्तर २.१११.२( विभिन्न पापों के फलस्वरूप नरक में निवास की अवधि का कथन ), ३.२५३.१( विभिन्न पाप कर्मों के फलानुसार अन्ध, मूक आदि होकर जन्म लेने का वर्णन ), शिव २.१.११.१२( चतुर्विध पापों के दारिद्र्य, रोग, दुःख, शत्रु द्वारा पीडा का उल्लेख ), ५.६( पापों के भेद ), ५.१६( पापों के प्रायश्चित्त ), ५.४२.२१( आम/कच्चे पात्र के जल में विलीन होने से पापों के विलीन होने की उपमा ), ७.२.२६.१( पञ्चाक्षर मन्त्र सहित शिव पूजा से १२ वर्षों में पापों से निवृत्ति का कथन ), स्कन्द १.२.५१( कमठ द्वारा अतिथि को विभिन्न पापकर्मों के फलों का वर्णन ), २.१.१( पाप नाशन तीर्थ का माहात्म्य ), २.१.१९.१८( पाप विनाश तीर्थ का माहात्म्य : सुमति विप्र द्वारा शूद्र को उपदेश के पाप से मुक्ति आदि ), २.१.२०( पाप नाशन तीर्थ : भूदान से भद्रमति द्विज का कल्याण ), २.४.३०.९( पापी या धर्मी के संसर्ग से तथा अन्य निकटस्थों से प्राप्त पाप - पुण्य के अंशों का वर्णन ), २.८.२.३८( अयोध्या में पापमोचन तीर्थ में स्नान से नरहरि विप्र के पापों के नाश का कथन ), ३.१.१०( पापविनाश तीर्थ : सुमति विप्र व दृढमति शूद्र की मुक्ति ), ३.१.१०.८३( दक्षिण समुद्र में सेतु रूप गन्धमादन पर्वत पर पापविनाशन तीर्थ का माहात्म्य : ब्रह्मराक्षस द्वारा गृहीत विप्र बालक को नीरोगता प्राप्ति तथा शूद्र का उद्धार आदि ), ४.१.२७.१५१( दशविध पापों से मुक्ति हेतु दशहरा व्रत विधि ), ४.१.४५.३८( पापहन्त्री : ६४ योगिनियों में से एक ), ४.२.७७.९( हरपाप ह्रद के माहात्म्य का कथन ), ४.२.८३.८१( हरपाप तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.३.९०.१०२( जलशायि तीर्थ के माहात्म्य के संदर्भ में नष्ट होने वाले पापों के प्रकार ), ५.३.११०( विष्णु द्वारा स्थापित धौतपाप तीर्थ के माहात्म्य का कथन ), ५.३.१३२.४( द्वादशी को उपवास में पापियों आदि से आलापादि का निषेध ), ५.३.१३२.८( वराह के दर्शन से पापों के नष्ट होने की सर्प विष - गरुड व तम - सूर्य से उपमा ), ५.३.१५६.२३( शुक्ल तीर्थ में चान्द्रायण व्रत से नष्ट होने वाले पापों के नाम ), ५.३.१५९.८( यमलोक में यातना न भोगने पर मर्त्य लोक में जीव के पापों के चिह्न प्रकट होने का वर्णन ), ५.३.१७८.१०( गङ्गा में स्नान से नष्ट पापों के नाम ), ५.३.१८४( धौतपाप तीर्थ का माहात्म्य : शिव की ब्रह्महत्या पाप से मुक्ति का कथन ), ६.२७०( पाप से मुक्ति हेतु २४ तत्त्वात्मक पाप पिण्ड दान का कथन ), ७.१.१५( अरुण द्वारा स्थापित पापनाशन लिङ्ग के माहात्म्य का कथन ), स्कन्द १.२.४१.१७( स्थूल, सूक्ष्म व असूक्ष्म अधर्म के संदर्भ में १२ पापनिचयों की व्याख्या ), महाभारत शान्ति १६५.३८( अनिर्देश्य व निर्देश्य/प्रायश्चित्त योग्य पापों का वर्णन ), १९३.२६( पाप को छिपाने पर भी न छिपने का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.६७( पाप अनुसार योनि की प्राप्ति ), १.२३२.४( द्वारका में गोमती में स्नान से वज्रलेप पापों के नष्ट होने के संदर्भ में वैश्य के दर्शन से राक्षस के पाप नष्ट होने का वृत्तान्त ), १.३७०.४५( पाप अनुसार नरक में कुण्डों में यातनाओं का वर्णन ), १.४०३.६०( पापनाशन तीर्थ में भूदान से भद्रमति ब्राह्मण को ऐश्वर्य प्राप्ति आदि का वृत्तान्त ), १.५२६.७१( राजा वसु के शरीर से ब्रह्महत्या रूपी पापपुरुष का निकलना, राजा के वरदान से धर्मव्याध बनना ), २.२४.३८( अधर्म व हिंसा - पुत्र, पाप द्वारा गर्भस्थ शिशु के केशों में स्थान प्राप्त करने की कथा ), २.८३( राजा जयध्वज द्वारा पर्वतों को पाप प्रक्षालन के उपायों का वर्णन : तीर्थ सेवन आदि ), २.१०७.३१( राक्षसों द्वारा पापास्त्रों से पितृकन्याओं के पुण्य तत्त्व से निर्मित विमान का निरोध ), २.१४४.३८( मूर्ति प्रतिष्ठा के संदर्भ में प्रायश्चित्त मुक्ति हेतु ब्राह्मण को पापधेनु दान का निर्देश ), ३.५४.५७( गणिकाओं के शरीर से पापों का काक, घूक, मशक, पिशाच आदि रूप में निर्गमन ), ३.१६७( पापव्यपोहन स्तोत्र का वर्णन ), ३.१६८.८६( पाप पुरुष की मूर्ति के स्वरूप का कथन ), ३.२०७.४९( विभिन्न पाप कर्मों के अनुसार योनियों के नाम ), ४.२६.५४( काम्भरेय कृष्ण की शरण से पाप से मुक्ति का उल्लेख ), कथासरित् ७.२.१०८( रानी के दुराचार को देखकर राजा रत्नाधिपति द्वारा स्वराज्य पापभञ्जन ब्राह्मण को दान में देने का उल्लेख ), १७.५.१५४( दैत्यराज की कन्याओं त्रैलोक्यप्रभा व त्रिभुवनप्रभा द्वारा पतियों की प्राप्ति हेतु पापरिपु तीर्थ में तप का कथन ), द्र. धूतपापा paapa |