पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Paksha to Pitara ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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| Puraanic contexts of words like Pahlava, Paaka, Paakashaasana, Paakhanda, Paanchajanya, Paanchaala, Paatala, Paataliputra, Paatha etc. are given here. पह्लव ब्रह्माण्ड १.२.३१.८३( कलियुग में कल्कि? अवतार द्वारा नष्ट किए गए जनपदों के निवासियों में से एक ), २.३.४१.३९( परशुराम द्वारा नष्ट किए गए राजाओं के गणों में से एक ), २.३.४८.२९( सगर द्वारा पह्लवों आदि को निष्कासित करने का उल्लेख, पह्लव आदि के वसिष्ठ की शरण में जाने और पह्लवों के श्मश्रुधारी बनने का कथन ), २.३.६३.१२०( पह्लवों आदि द्वारा राजा बाहु को पदच्युत करने का उल्लेख ), २.३.६३.१२३( सगर द्वारा पह्लवों आदि को निष्कासित करने का उल्लेख, पह्लव आदि के वसिष्ठ की शरण में जाने और पह्लवों के श्मश्रुधारी बनने का कथन ), वायु ४५.११८( उत्तर दिशा के जनपदों में से एक ), ५८.८२( कलियुग में कल्कि? अवतार द्वारा नष्ट किए गए जनपदों के निवासियों में से एक ), ८८.१२४/२.२६.१२४( सगर द्वारा पह्लवों आदि को निष्कासित करने का उल्लेख, पह्लव आदि के वसिष्ठ की शरण में जाने और पह्लवों के श्मश्रुधारी बनने का कथन ), विष्णु ४.३.४२( सगर द्वारा पप्लवों/पह्लवों को श्मश्रुधारी बनाने का कथन ) pahlava
पांशु ब्रह्माण्ड २.३.७.३७( पाशु व पांशुमती : पिशाचों के १६ गणों में से एक ), वायु ६९.२७२/२.८.२६६( पाशु पिशाचों के लक्षण : अङ्गों से पांशुओं का मोचन ), ७०.४९/२.९.४९( महापांशु : पुष्पोत्कटा व पुलस्त्य के ४ पुत्रों में से एक ) paanshu/ panshu
पाक गरुड ३.१२.९३(पाक की नमुचि से उपमा), नारद १.६३.१७( पाकल : पशुओं के ३ भेदों में से एक, मल व कर्म युक्त ), भागवत ८.११.२८( अमृतपान से सम्बन्धित देवासुर संग्राम में इन्द्र द्वारा वल व पाक के वध का उल्लेख ), वामन ६९, ७०, ७१.१२ ( इन्द्र द्वारा पाक असुर के वध से पाकशासन नाम प्राप्ति का उल्लेख ), शिव ५.२२.३( देह रूपी पाक/पाचन पात्र का कथन ), महाभारत शल्य ४८( श्रुतावती द्वारा इन्द्र - प्रदत्त ५ बदरों के पाचन की कथा ), लक्ष्मीनारायण २.२५०.५७( कर्म पाक शरीर, ज्ञान पाक निरीहता, भक्ति पाक ब्रह्मता व ब्रह्मपाक परम पद होने का श्लोक ) paaka
पाकशासन ब्रह्माण्ड २.३.६३.९९( त्रय्यारण द्वारा पुत्र सत्यव्रत को निष्कासित कर देने पर १२ वर्ष तक पाकशासन द्वारा वृष्टि न करने का उल्लेख ), २.३.६६.३५( पाकशासन द्वारा कुशिक - पुत्र कौशिक के रूप में जन्म लेने का उल्लेख ), मत्स्य ७.५१( पाकशासन द्वारा दिति के छिद्र के अन्वेषण का उल्लेख ), वामन ७१.१३( इन्द्र द्वारा पाक असुर के वध से पाकशासन नाम प्राप्ति का उल्लेख ),वायु ८८.८५/२.२६.८५( त्रय्यारुण द्वारा पुत्र सत्यव्रत को निष्कासित कर देने पर १२ वर्ष तक पाकशासन द्वारा वृष्टि न करने का उल्लेख ) paakashaasana/ pakashasana
पाखण्ड पद्म ६.२३५.१( पाखण्डियों के लक्षणों का कथन ), भागवत ४.१९.२३( पृथु के यज्ञीय अश्व के हरण हेतु इन्द्र द्वारा धारित रूपों से पाखण्ड की उत्पत्ति का कथन ), विष्णु ३.१८.५७( पाखण्डी से वार्तालाप के कारण राजा शतधनु का विभिन्न योनियों में जन्म तथा राजा की पत्नी द्वारा प्रत्येक बार उसके उद्धार का वर्णन ; पाखण्डी की परिभाषा तथा निन्दा ), ६.१.४५( पाखण्ड में वृद्धि होने पर कलि की बलवत्ता जानने का कथन ; पाखण्डियों के वेदविरुद्ध कथनों का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.११७.७९( भण्डासुर के पाखण्डास्त्र के निवारण के लिए महालक्ष्मी द्वारा गायत्र्यास्त्र के मोचन का उल्लेख ) paakhanda/ pakhanda
पाचन लक्ष्मीनारायण ४.८०.१७( राजा नागविक्रम के यज्ञ में गौर्जर विप्रों के पाचक होने का उल्लेख )
पाञ्चजनी मत्स्य ५.४( दक्ष - पत्नी, हर्यश्व - माता )
पाञ्चजन्य अग्नि २५.१४( पाञ्चजन्य शङ्ख पूजा हेतु बीज मन्त्र ), गर्ग ७.४०.२५( पाञ्चजन्य सागर में गरुड द्वारा नक्र का उद्धार : नक्र के पूर्व जन्म का वृत्तान्त ), १०.२६+ ( बल्वल दैत्य के निवास स्थान पाञ्चजन्य द्वीप में अनिरुद्ध सेना का आगमन व संग्राम ), पद्म ६.२४२.९४( पाञ्चजन्य शङ्ख के राम - भ्राता भरत रूप में अवतार का उल्लेख ), भविष्य ३.४.१८.१६( संज्ञा विवाह प्रसंग में पाञ्चजन्य असुर के धाता से युद्ध का उल्लेख ), स्कन्द ५.१.४४.१२( समुद्र मन्थन से उत्पन्न १४ रत्नों में से एक? ) paanchajanya/ panchajanya पाञ्चरात्र मत्स्य १३९(पाञ्चरात्र यज्ञ : अविधि के कारण सोमशर्मा का ब्रह्मराक्षस बनना),
पाञ्चाल नारद १.५६.७४०( पाञ्चाल देश के कूर्म में अन्तर्वेदी/नाभि होने का उल्लेख ), भागवत ९.२१.३२( भर्म्याश्व के ५ पुत्रों की पञ्चाल संज्ञा का कारण ), ९.२२.३( भर्म्याश्व के वंश में उत्पन्न पाञ्चाल राजाओं के नाम ), मत्स्य १५.९( शुक व पीवरी - कन्या कृत्वी के पाञ्चालाधिपति की पत्नी बनकर ब्रह्मदत्त की माता बनने का उल्लेख ), २०.२०( कौशिक के ७ पुत्रों में से एक पितृवर्ती की पाञ्चालराज के वैभव में आसक्ति होने के कारण पाञ्चालराज विभ्राज के पुत्र ब्रह्मदत्त के रूप में जन्म लेने का वृत्तान्त ), ४९.६८( सामगाचार्य कृत के पुत्र उग्रायुध द्वारा पाञ्चालाधिपति नील के वध का उल्लेख ), ५०.४( भद्राश्व के मुद्गल आदि ५ पुत्रों के जनपदों की पञ्चाल संज्ञा का कथन ), २७२.१४( कलियुग में २७ पाञ्चाल राजाओं के होने का उल्लेख ), २७३.७२( वैवस्वत मन्वन्तर में १०० पाञ्चाल राजा होने का उल्लेख ), वराह ३६.४( शुभदर्शन के युगान्तर में पाञ्चाल बनने का उल्लेख ), १७५.११+ ( वसु ब्राह्मण - पुत्र, तिलोत्तमा भगिनी से अगम्या गमन, मथुरा तीर्थ में स्नान से पाप से निवृत्ति ), वामन ६.४६( कुबेर - पुत्र पाञ्चालिक द्वारा शिव से कामास्त्रों का ग्रहण, चैत्र मास में पाञ्चालिक की अर्चना का महत्त्व ), ९०.१३( ब्रह्मर्षि देश में विष्णु का पाञ्चालिक नाम से निवास ), विष्णु ४.१९.५९( हर्यश्व के ५ पुत्रों की पाञ्चाल संज्ञा के कारण का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१२१.७( पाञ्चाल देश में पृथु वैन्य की पूजा का निर्देश ), शिव ५.४२.११( भारद्वाज के ७ पुत्रों के जन्मान्तर में द्विज योनि में जन्म लेने पर एक ऋग्वेदी पुत्र का नाम ), स्कन्द २.७.१५.२( पाञ्चाल देश के राजा पुरुयश के राज्यच्युत होने तथा पूर्व जन्मों के पाप - पुण्यों का वृत्तान्त ), ३.३.१७.११( पाञ्चालराज - पुत्र सिंहकेतु के शबर भृत्य द्वारा शिवलिङ्ग की चिता भस्म द्वारा पूजा से मुक्ति प्राप्ति का वृत्तान्त ), हरिवंश १.२३.२१, १.२४.३२( ब्रह्मदत्त - मन्त्री, शिक्षा वेत्ता, ऋग्वेदी ), लक्ष्मीनारायण १.३५२.२८( वसु द्विज - पुत्र, अज्ञानता में भगिनी तिलोत्तमा के साथ रमण तथा देहत्याग को उद्धत होना, मथुरा में विश्रान्ति नामक पञ्च तीर्थ में स्नान से पापमोक्षण ), १.४३०.७( पाञ्चाल देश के राजकुमार भक्त दानक द्वारा अरण्य में सिह रूप धारी ऋषियों की हत्या, त्रित ऋषि की सेवा से ब्रह्महत्या से मुक्ति ), १.४३२.२( पाञ्चाल देश के राजा हेमन्त की शत्रुओं से पराजय तथा याजक गुरु द्वारा राजा के पूर्वजन्म के वृत्तान्त का वर्णन ), कथासरित् १२.५.२०५( पाञ्चाल देश के निवासी देवभूति ब्राह्मण व उसकी पत्नी भोगवती का वृत्तान्त ) paanchaala/ panchala
पाञ्चाली लक्ष्मीनारायण १.३८५.३७(पांचाली का कार्य)
पाटल अग्नि ८१.५०( लक्ष्मी प्राप्ति हेतु होम द्रव्य ), देवीभागवत १०.६.१०६( पाटली : गायत्री सहस्रनामों में से एक ), नारद १.९०.६९( पाटल द्वारा देवी पूजा से गज सिद्धि का उल्लेख ), पद्म १.२८.२८( पाटला/गुलाब के पार्वती को प्रिय होने का उल्लेख ), ६.१३३.१५( पाटल क्षेत्र में पुण्ड्रवर्धन तीर्थ ), ब्रह्माण्ड २.३.१०.९( मेना की ३ कन्याओं में से एक एकपाटला के जैगीषव्य -पत्नी तथा शङ्ख व लिखित की माता होने का कथन ), मत्स्य १३.३५( पुण्ड्रवर्धन पीठ में सती देवी की पाटला नाम से स्थिति का उल्लेख ), वामन ६.१००( शिव के क्रोध से काम के धनुष की कोटि के पाटला बनने का उल्लेख ), स्कन्द १.३.२.२२.४२( नन्दन वन द्वारा शिव को प्रस्तुत पाटल फल के ग्रहण हेतु गणेश व कार्तिकेय में स्पर्द्धा का वृत्तान्त ), २.२.४४.४( संवत्सर व्रत में श्रीहरि की १२ मूर्तियों को अर्पणीय १२ पुष्पों में से एक ), ५.३.१९८.७३( पुण्ड्रवर्धन में उमा देवी का पाटला नाम से निवास ), कथासरित् १.३.५८( राजा पुत्रक द्वारा पादुका व यष्टि की सहायता से आकर्षिका नगरी की राजकुमारी पाटलिका को प्राप्त करने का वृत्तान्त ), द्र. एकपाटला paatala/ patala
पाटलिपुत्र पद्म ६.१८१.२( गीता के सप्तम अध्याय के माहात्म्य के संदर्भ में पाटलिपुत्र पुर में शङ्कुकर्ण ब्राह्मण के सर्प योनि से उद्धार का वृत्तान्त ), कथासरित् १.२.४५( पाटलिपुत्र पुर के मूर्ख विप्र वर्ष के तप से विद्वान् बनने का वृत्तान्त ), १.७.५६( पाटलिपुत्र के उपाध्याय वेदकुम्भ और उसकी कामुक पत्नी का संदर्भ ), ३.३.६४( पाटलिपुत्र पुर में धर्मगुप्त वणिक् की दिव्य कन्या के विवाह आदि का वृत्तान्त ), ३.५.१६( पाटलिपुत्र पुर के द्यूत व्यसनी देवदास नामक वणिक् - पुत्र द्वारा कुलटा स्त्री के कथन से धन प्राप्ति का वृत्तान्त ), ४.१.५८( देवदत्त राजा द्वारा स्वपुत्र का विवाह वणिक् सुता के साथ करने का कारण ), ७.१.५४( पाटलिपुत्र के दृढ सत्त्व वाले राजा विक्रमतुङ्ग द्वारा स्वर्ण निर्माण आदि में सफलताएं प्राप्त करने का वर्णन ), ७.४.३( पाटलिपुत्र के राजा विक्रमादित्य द्वारा स्वसिद्धियों व मदनमाला वेश्या की सहायता से शत्रु नरेश को जीतने का वृत्तान्त ), ७.४.४७( पाटलिपुत्र नगर के भिक्षु प्रपञ्चबुद्धि का वृत्तान्त ), १०.१.२५( पाटलिपुत्र के भारिक शुभदत्त द्वारा यक्षों से अक्षय घट प्राप्त करने और घट के नष्ट होने का वृत्तान्त ), १०.५.३००( पाटलिपुत्र के २ ब्राह्मण भ्राताओं द्वारा स्वधन की रक्षा व नष्ट करने, पुन: प्राप्त करने का वृत्तान्त ), १०.१०.६( कश्मीर देश के निवासी संन्यासी द्वारा शास्त्रार्थ में विजय हेतु पाटलिपुत्र को प्रस्थान, मार्ग में यक्ष से पाटलिपुत्र की स्त्रियों के छल चरित्र का श्रवण आदि ), १२.७.६२( रानी मनोरमा द्वारा स्वपुत्र भीमभट की राजा के क्रोध से रक्षा के लिए पुत्र को पाटलिपुत्र में मातामह के पास जाने का परामर्श ), १२.१०.४( पाटलिपुत्र नगर के राजा विक्रमकेसरी द्वारा पालित शुक व सारिका में कलह का वृत्तान्त ), १४.२.९४( पाटलिपुत्र की विधवा युवती द्वारा मोदक द्वारा स्वपुत्र को शान्त रखने का वृत्तान्त ), १८.४.१५७( पाटलिपुत्र निवासी केसट ब्राह्मण पुत्र द्वारा रूपवती से विवाह करने, रूपवती से वियोग होने तथा पुन: मिलन का वृत्तान्त ) paataliputra/ pataliputra
पाठ स्कन्द ५.३.५१.३४( शिवलिङ्ग को समर्पणीय ८ पुष्पों में सप्तम प्राजापत्य पुष्प के रूप में पाठादि का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ४.८०.१८( राजा नागविक्रम के यज्ञ में सिन्धुज विप्रों के पाठक बनने का उल्लेख ) paatha/ patha |