पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Paksha to Pitara ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Pavana / air, Pavamaana, Pavitra / pious, Pashu / animal, Pashupati, Pashupaala etc. are given here. पल्ली गणेश १.२२.८( सिन्धु देश में पल्ली पुरी में कल्याण वैश्य का वृत्तान्त ),
पवन गणेश २.७६.१३( पवन के निशुम्भ से युद्ध का उल्लेख ), गर्ग ७.२८.३६? ( वीरधन्वा से युद्ध में कृष्ण - पुत्र पूर्णमास द्वारा पवन पर्वत को वाराही पुरी में फेंकने का कथन ), पद्म ३.२६.१००( पवन ह्रद में स्नान का संक्षिप्त माहात्म्य : वायु लोक की प्राप्ति ), ब्रह्माण्ड १.२.११.४१( ऊर्जा व वसिष्ठ के सप्तर्षि संज्ञक ७ पुत्रों में से एक ), भागवत ५.१६.२७( मेरु के पश्चिम में स्थित २ पर्वतों में से एक ), ८.१.२३( उत्तम मनु के पुत्रों में से एक ), मत्स्य १०१.७८( माघ सप्तमी के पवन व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य ), १४८.८२( पवन के अङ्कुशपाणि होने का उल्लेख ), वायु ५९.११०/xx ( वायु के तीर्थ रूप पुर का कथन ), ६०.६८( पवन पुत्र हनुमान के जन्म पर वायु द्वारा तीर्थ के निर्माण का उल्लेख ), स्कन्द १.१.८.२४( पवन द्वारा काश्मीर लिङ्ग की अर्चना का उल्लेख ), ४.१.१३.४( पूतात्मा द्वारा स्थापित पवनेश्वर/पवमानेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), कथासरित् ७.२.७३( पवनसेन : पवनसेन वणिक् के पुत्र द्वारा रानी राजदत्ता से समागम आदि का वृत्तान्त ), १८.२.२७७( पवनजव : जयकेतु द्वारा पवनजव नामक अश्व प्राप्त करने का उल्लेख ), द्र. वायु आदि pavana
पवमान कूर्म १.१३.१५( अग्नि, निर्मथ्य अग्नि का रूप ), नारद १.६०.३४( विष्णु की नि:श्वास रूप पवमान वायु के वहन पर व्यास द्वारा वेद पठन का निषेध ), ब्रह्म २.९४.७( पवमान राजा का चिच्चिक पक्षी/द्विज से संवाद, चिच्चिक का उद्धार ), ब्रह्माण्ड १.२.१२.२( स्वाहा - पुत्र, मन्थन से उत्पत्ति, कव्यवाहन - पिता ), १.२.१२.११( अथर्वण - पुत्र, गार्हपत्य अग्नि का रूप, शंस्य व शुक - पिता ), १.२.१२.२२( परिषत्पवमान : शंस्य अग्नि व १६ नदियों के धिष्ण्य संज्ञक पुत्रों में से एक ), १.२.२४.१५( अर्चिष्मान पवमान अग्नि के निष्प्रभ व जठराग्नि होने का उल्लेख ), भागवत ४.१.६०( अग्नि व स्वाहा के ३ पुत्रों में से एक, ४५ अग्नियों के ३ पिताओं में से एक ), ४.२४.४( अन्तर्धान व शिखण्डिनी के ३ पुत्रों में से एक, अग्नि का अवतार ), ५.२०.२५( मेधातिथि के ७ पुत्रों में से एक ), मत्स्य ५१.३( अग्नि व स्वाहा - पुत्र, निर्मथ्य अग्नि का रूप, सहरक्षा - पिता ), वायु २९.१०( गार्हपत्य अग्नि का रूप ), विष्णु १.१०.१५( अग्नि व स्वाहा के ३ पुत्रों में से एक, ४५ अग्नियों के ३ पिताओं में से एक ), स्कन्द ४.१.१३.२८( पूतात्मा द्वारा स्थापित पवनेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण २.११७( वह्नि - पुत्र पवमान द्वारा व्याघ्रारण्य को जलाने पर पिच्छलर्षि द्वारा क्षय का शाप, वराह तथा कृष्ण की कृपा से पवमान की पुन: प्रतिष्ठा का वृत्तान्त ), ३.३२.७( कव्यवाहन अग्नि - पिता ), द्र. वंश अग्नि pavamaana/ pavamana
पवित्र गरुड १.४२( शिव हेतु पवित्र आरोपण विधि ), १.४३( विष्णु हेतु पवित्र आरोपण विधि ), पद्म ६.५५.२६( श्रावण शुक्ल द्वादशी को वासुदेव हेतु पवित्र आरोपण विधि ), ६.८६( पवित्र आरोपण विधि, देवों के लिए पवित्र आरोपण हेतु तिथियां ), ७.२५.९( बहुला - पति पवित्र ब्राह्मण का लोमश से सर्वत्र विष्णु दर्शन विषयक संवाद, अतिथि महिमा, मूषक का घात, तुलसी द्वारा मूषक की मुक्ति ), ब्रह्माण्ड ३.४.१.१०८( १४वें मन्वन्तर के ५ देवगण में से एक, ७ लोकों का रूप ), भागवत ८.१३.३३( १४ मनु के काल में देवगण में से एक ), वायु १००.१११/२.३८.१११( भौत्य मन्वन्तर के ५ देवगणों में से एक ), विष्णु ३.२.४३( १४वें मनु के काल में स्थित ५ देवगण में से एक ), महाभारत आश्वमेधिक २१.६( ज्ञान के यज्ञ का पवित्र होने का उल्लेख ), कथासरित् १२.६.२२( अट्टहास यक्ष के पवित्रधर नामक मनुष्य के रूप में जन्म लेकर सौदामिनि यक्षिणी से विवाह करने का वृत्तान्त ), द्र. भूगोल, मन्वन्तर pavitra Comments on Pavitra by Dr. Tomar
पवित्रा ब्रह्माण्ड १.२.१९.६२( कुशद्वीप की ७ नदियों में से एक ), भागवत ५.२०.२१( पवित्रवती : क्रौञ्च द्वीप की ७ नदियों में से एक ), मत्स्य १२२.७२( कुश द्वीप की ७ नदियों में से एक, दूसरा नाम वितृष्णा ), विष्णु २.४.४३( कुश द्वीप की ७ नदियों में से एक ) pavitraa
पशु कूर्म १.७.५४( पशुओं की ब्रह्मा के अङ्गों से उत्पत्ति - मुखतोऽजान् ससर्जान्यान् उदराद्गाश्चनिर्ममे ।। पद्भ्यांचाश्वान् समातङ्गान् रासभान् गवयान् मृगान् । ), नारद १.६३.१५( पशुपति, पशु व पाश के भेदों का वर्णन - पशवस्त्रिविधाश्चापि विज्ञाताः कलसंज्ञिकाः ।। तलपाकलसंज्ञश्च सकलश्चेति नामतः ।। ), १.९०.७०( तगर द्वारा देवी पूजा से पशु सिद्धि का उल्लेख - रक्तोत्पलैरश्वसिद्धौ कुमुदैश्चरसिद्धये ।। उत्पलैरुष्ट्रसंसिद्ध्यै तगरैः पशुसिद्धये ।।.. ), पद्म १.३.१०५( ब्रह्मा के वक्ष से अवि, मुख से अजा, उदर से गौ आदि की सृष्टि का कथन ; आरण्यक व ग्राम्य पशुओं के नाम - अवयो वक्षसश्चक्रे मुखतोजांश्च सृष्टवान्। सृष्टवानुदराद्गाश्च महिषांश्च प्रजापतिः॥.. ), ५.१०९.५५( धर्म के पशुओं का पालक व अधर्म के तस्कर होने का उल्लेख - पशूनां पालको धर्मः स्यादधर्मश्च तस्करः। ), ब्रह्म २.३४.२७(हरिश्चन्द्र-वरुण आख्यान में यज्ञपशु के लक्षण - राजाऽपि वरुणं प्राह निर्दन्तो निष्फलः पशुः। पशोर्दन्तेषु जातेषु एहि गच्छाधुनाऽप्पते।। ), ब्रह्माण्ड १.२.८.४३( ब्रह्मा के अङ्गों से पशुओं की सृष्टि - मुखतोऽजाः ऽसृजन्सोऽथ वक्षसश्चाप्यवीः सृजन् ॥ … ), १.२.३०.१६( महर्षियों द्वारा यज्ञ में पशु हिंसा की निन्दा, उपरिचर वसु द्वारा हिंसा का समर्थन आदि ), १.२.३२.१० ( मनुष्यों व पशुओं के उत्सेध के अङ्गुलिमानों के कथन सहित मनुष्यों के शरीरों में देवों के लक्षण होने का कथन - मानुषस्य शरीरस्य सन्निवेशस्तु यादृशः ।। तल्लक्षणस्तु देवानां दृश्येत तत्त्वदर्शनात् ।। ), ३.४.६.५३( भगवती माया द्वारा देवों, असुरों व मानवों के संरक्षण हेतु १४ पशुओं का सृजन, देव, पितृ आदि के लिए मेध्य पशु के आलभन आदि का कथन - ससर्ज सर्वदेवांश्च तथैवासुरमानुषान् ॥ तेषां संरक्षणार्थाय पशूनपि चतुर्दश । ), ३.४.६.५७ ( यज्ञ आदि के लिए पशुओं की हिंसा का समर्थन ; पशु को मारने का मन्त्र उद्बुध्यस्व इत्यादि- देवतार्थे च पित्रर्थे तथैवाभ्यागते गुरौ । महदागमने चैव हन्यान्मेध्यान्पशून्द्विजः ॥ ), ३.४.६.६९( पशु के रुद्र से तादात्म्य का कथन - उद्बुध्यस्व पशो त्वं हि नाशिवः सञ्छिवो ह्यसि ॥ ), भागवत ३.१०.२०( ब्रह्मा की आठवीं तिर्यक् सृष्टि में पशुओं आदि की सृष्टि का कथन - तिरश्चामष्टमः सर्गः सोऽष्टाविंशद्विधो मतः । अविदो भूरितमसो घ्राणज्ञा हृद्यवेदिनः ॥), ६.१८.१( सविता व पृश्नि की ८ सन्तानों में से एक - पृश्निस्तु पत्नी सवितुः सावित्रीं व्याहृतिं त्रयीम्। अग्निहोत्रं पशुं सोमं चातुर्मास्यं महामखान् ॥ ), ७.१५.७( श्राद्ध में आमिष अर्पण का निषेध - न दद्यादामिषं श्राद्धे न चाद्याद्धर्मतत्त्ववित्। मुन्यन्नैः स्यात्परा प्रीतिर्यथा न पशुहिंसया॥ ), १०.२३.८( पशुसंस्था आदि यज्ञों में दीक्षित के अन्न का भक्षण करने से दोष न लगने का उल्लेख - दीक्षायाः पशुसंस्थायाः सौत्रामण्याश्च सत्तमाः । अन्यत्र दीक्षितस्यापि नान्नमश्नन् हि दुष्यति ॥ ), ११.१०.२८( अविधिपूर्वक पशुओं के आलभन द्वारा भूतप्रेतों का यजन करने से नरक प्राप्ति का उल्लेख - पशूनविधिनालभ्य प्रेतभूतगणान्यजन्। नरकानवशो जन्तुर्गत्वा यात्युल्बणं तमः ), ११.२१.३०( खल पुरुषों द्वारा यज्ञों में पशुओं के आलम्भन द्वारा देवताओं आदि के यजन का उल्लेख - हिंसाविहारा ह्यालब्धैः पशुभिः स्वसुखेच्छया। यजन्ते देवता यज्ञैः पितृभूतपतीन्खलाः ॥ ), मत्स्य १७.३०( विभिन्न पशुओं के मांस से पितरों की तृप्ति का कथन - द्वौ मासौ मत्स्यमांसेन त्रीन्मासान् हारिणेन तु। औरभ्रमेणाथ चतुरः शाकुनेनाथ पञ्च वै।। ), २४६.६४( महामखों, इष्टियों व पशुबन्धों के विष्णु का उदर रूप होने का उल्लेख - स्तनौ कुक्षी च वेदाश्च उदरञ्च महामखाः ।। इष्टयः पशुबन्धाश्च द्विजानां वीक्षितानि च।), लिङ्ग १.८०.४७( देवों के पशुत्व के विशोधन के लिए शिव द्वारा पाशुपत व्रत का उपदेश देने का कथन - पुरा पुरत्रयं दग्धुं पशुत्वं परिभाषितम्।। शंकिताश्च वयं तत्र पशुत्वं प्रति सुव्रत।। ), २.९.१२( सब जीवों को बांधने वाले २४ तत्त्वात्मक माया पाशों का वर्णन - पशवः परिकीर्त्यंते संसारवशवर्तिनः।। तेषां पतित्वाद्भगवान् रुद्रः पशुपतिः स्मृतः।। ), वराह ७०.४२( वेदबाह्य पुरुषों हेतु पशु बन्धन के लिए नय शास्त्र रूप पाश का सृजन, नय शास्त्र रूप पशु भाव के पतन पर ही पाशुपत शास्त्र के जन्म का उल्लेख - पाशोऽयं पशुभावस्तु स यदा पतितो भवेत् । तदा पाशुपतं शास्त्रं जायते वेदसंज्ञितम् ।। ),वायु ९.४१/१.९.३९( ब्रह्मा के विभिन्न अङ्गों से विभिन्न पशुओं के सृजन का कथन - मुखतोऽजान् ससर्ज्जाथ वक्षसश्चवयोऽसृजत्। गाश्चैवाथोदराद्ब्रह्मा पार्श्वाभ्याञ्च विनिर्ममे ।। ), २३.८८/१.२३.८१( चतुष्पदा सरस्वती के दर्शन से पशुओं के चतुष्पाद होने का कथन, सावित्रीदर्शन से द्विपाद - यस्माच्चतुष्पदा ह्येषा त्वया दृष्टा सरस्वती। तस्माच्च पशवः सर्वे भविष्यन्ति चतुष्पदाः।), ५७.९७( ऋषियों द्वारा यज्ञ में पशु हिंसा की निन्दा, वसु द्वारा हिंसा का समर्थन करने पर शाप प्राप्ति - अधर्मो बलवानेष हिंसाधर्मेप्सया तव। नेष्टः पशुवधस्त्वेष तव यज्ञे सुरोत्तम ।। ), १०४.८३( पशुबन्ध यज्ञ की उर में स्थिति - सौत्रामणिं कण्ठदेशे पशुबन्धमथोरसि। वाजपेयं कटितटे ह्यग्निहोत्रं तथानने ।।), विष्णु १.५.५१( ७ ग्राम्य व ७ आरण्यक पशुओं के नाम - गौरजः पुरुषो मेषश्चाश्वाश्वतरगर्दभाः । एतान्ग्राम्यान्पशूनाहुरारण्यांश्च निबोध मे ॥ ), विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.१०( विभिन्न प्रकार के पापों से ग्राम्य व आरण्यक पशुओं की योनि प्राप्ति के कथन - परस्वहारिणः पापाः कुञ्जरास्तुरगाः खराः ।। बलीवर्दास्तथैवोष्ट्रा जायन्ते नात्र संशयः ।। ), शिव २.५.९.१३( त्रिपुर वध के संदर्भ में शिव द्वारा असुरों को मारने के लिए देवों से पशुओं के अधिपति पद की मांग, सब देवों व असुरों के पशु होने और रुद्र के पशुपति होने का उल्लेख - अथाह भगवान्रुद्रो देवानालोक्य शंकरः।। पशूनामाधिपत्यं मे धद्ध्वं हन्मि ततोऽसुरान्।।), ७.२.५.३६( पशु द्वारा अनीश/ईश के दर्शन तक पाशबद्ध रहने का कथन - यावत्पशुर्नैव पश्यत्यनीशं १ पुराणं भुवनस्येशितारम् ॥ तावद्दुःखे वर्तते बद्धपाशः संसारे ऽस्मिञ्चक्रनेमिक्रमेण ॥ ), ७.२.१५.४०( परिग्रह विनिर्मुक्त की पशु संज्ञा का उल्लेख - परिग्रहविनिर्मुक्तः पशुरित्यभिधीयते ॥ पशुभिः प्रेरितश्चापि पशुत्वं नातिवर्तते ॥ ), स्कन्द ३.१.२२.२९( पशुमान् वैश्य के ८ पुत्रों के नाम ; अष्टम पुत्र दुष्पण्य की दुष्टता का वृत्तान्त ), ५.२.६४.२३( पशुपति नामक ६४वें लिङ्ग के माहात्म्य के संदर्भ में दक्ष यज्ञ में शिव द्वारा देवों को पशु बनाने व पशुत्व से मुक्त करने का कथन - नेत्रे भग्ने भगस्यापि विद्धो यज्ञो मृगाकृतिः ।। पशवश्च कृता देवा मुनयो वेदवर्जिताः ।। ), ६.३२.६०( सप्तर्षियों के भृत्य पशुमुख द्वारा सप्तर्षियों द्वारा हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति पर प्रतिक्रिया - स्वामिद्रोहरतो नित्यं स भूयात्पापकृन्नरः ॥ साधु द्वेषपरश्चैव बिसस्तैन्यं करोति यः ॥ ), ६.२६३.१४( पञ्चेन्द्रिय रूपी पशुओं का हनन करके शीर्ष रूपी अग्नि रहित कुण्ड में होम? करने का निर्देश - पंचेंद्रियपशून्हत्वाऽनग्नौ शीर्षे च कुण्डले ॥ गुरूपदेशविधिना ब्रह्मभूतत्वमश्नुते ॥ ), ७.१.२५५.४३( सप्तर्षियों के भृत्य पशुमुख द्वारा सप्तर्षियों द्वारा हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति पर प्रतिक्रिया - परस्य प्रेष्यतां यातु सदा जन्मनिजन्मनि ॥ सर्वधर्मक्रियाहीनो बिसस्तैन्यं करोति यः॥), महाभारत सभा ३८ दाक्षिणात्य पृष्ठ७८४( यज्ञवराह के पशुजानु होने का उल्लेख ), भीष्म ४.१७( ७ आरण्यक व ७ ग्राम्य पशुओं के नाम - सिंहा व्याघ्रा वराहाश्च महिषा वारणास्तथा ।। ऋक्षाश्च वानराश्चैव सप्तारण्याः स्मृता नृप ।), योगवासिष्ठ १.१८.१९( इन्द्रियों की पशु से उपमा - पङ्क्तिबद्धेन्द्रियपशुं वलत्तृष्णागृहाङ्गनम् । रागरञ्जितसर्वाङ्गं नेष्टं देहगृहं मम ।। ), लक्ष्मीनारायण २.२९.२२( दिव्य लक्षणों से युक्त बालक को देवी की बलि हेतु पशु बनाने पर देवी द्वारा राजा के नाश का वृत्तान्त - यस्य हस्ते मत्स्यरेखा धनुष्यं ज्याशरान्वितम् ।। ध्वजः शूलं स्वस्तिकं च चक्रं यवो भवेच्च वा । ), २.१५७.३४( पशु इष्टियों के अङ्गुलियों में न्यास का उल्लेख - चातुर्मास्याय च वामे सौत्रामणये हस्तयोः । पश्विष्टीभ्योऽङ्गुलीष्वेव दर्शपौर्णाय नेत्रयोः ।। ), ३.२८.३७( पाशव वत्सर में लक्ष्मी के दरिद्र विप्र दम्पत्ति की पुत्री तथा विष्णु के सवनद्रुम से अवतार का वर्णन - अथाऽन्यस्मिन् पाशवाख्ये चतुस्त्रिंशे तु वत्सरे । वेधसः सप्तषष्ट्यूर्ध्वत्रिशते कल्पके पुरा ।। ) pashu
पशुपति अग्नि ३२२( पाशुपत मन्त्र द्वारा शान्ति विधि ), नारद १.६३.१४( चतुष्पाद तन्त्र के चार पादों के पादार्थ के रूप में पशुपति का उल्लेख ; पशु व पाशों के भेदों का वर्णन ), १.११६.५०( फाल्गुन शुक्ल षष्ठी को पशुपति पूजा का विधान ), १.१२३.५०( पाशुपत चर्तुदशी व्रत विधि : स्वयं की पूजा ), ब्रह्माण्ड १.२.१०.१३( महादेव के पुत्र कुमार नीललोहित द्वारा ब्रह्मा से प्राप्त नामों में से एक ), १.२.१०.४७( पशुपति नामक रुद्र द्वारा अग्नि को तनु रूप में धारण करने का कथन ), १.२.१०.८०( पशुपति नामक रुद्र के तनु अग्नि की स्वाहा पत्नी तथा स्कन्द पुत्र का उल्लेख ), मत्स्य १५४.४८५( शिव - पार्वती विवाह में पशुपति के वर तथा विश्वारणि के कन्या होने का उल्लेख ), लिङ्ग १.८८( पाशुपत योग ज्ञान व विधि का वर्णन ), वराह ८१.३( कुञ्जर पर्वत पर पशुपति शिव की नित्य स्थिति का उल्लेख ), वामन ९०.२६( गिरिव्रज में विष्णु का पशुपति नाम ), विष्णु १.८.६( ब्रह्मा द्वारा कुमार नीललोहित को प्रदत्त नामों में से एक ), शिव ७.१.५.१४( अक्षर पुरुष पशु, क्षर प्रकृति पाश तथा क्षराक्षर से परे पशुपति होने का कथन ), ७.१.५( पशुपति का शब्दार्थ, वायु व ऋषियों का संवाद ), ७.१.६.१( पशु व पाश के पति के विषय में मुनियों के प्रश्न का वायु द्वारा उत्तर ), ७.१.३३( पशुपति व्रत विधान नामक अध्याय ), ७.२.१.१९( श्रीकृष्ण द्वारा उपमन्यु से द्वादश-मासिक पाशुपत व्रत ज्ञान प्राप्त करने का कथन ), ७.२.२.१( पाशुपत ज्ञान के रहस्य का क्रमश: उद्घाटन ), ७.२.३.१८( शिव की शर्व, भव आदि ८ मूर्तियों में सप्तम पशुपति का उल्लेख ), ७.२.५( पशुपतित्व ज्ञान योग नामक अध्याय ), स्कन्द १.२.१३.१८९( शतरुद्रिय प्रसंग में पशुपति द्वारा भस्म निर्मित लिङ्ग की महेश्वर नाम से पूजा का उल्लेख ), ३.३.१२.२१( पशुपति से अन्त:स्थिति में रक्षा की प्रार्थना ), ४.२.६१.१०६( पाशुपत तीर्थ का माहात्म्य : पशु पाशों से मुक्ति ), ४.२.६९.११०( पशुपति लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : पशु पाश से मुक्ति ), ४.२.७९.९३( पशुपतीश्वर लिङ्ग : शिव की सायं सन्ध्या का स्थान ), ५.१.४३.४४( देवी के निर्देश पर शिव द्वारा पाशुपत अस्त्र द्वारा त्रिपुर के त्रेधा भेदन का कथन ), ५.२.६४( पशुपति लिङ्ग का माहात्म्य, पशु रूपी देवों द्वारा पशुपति लिङ्ग की पूजा, पशुपाल राजा द्वारा दस इन्द्रियों पर विजयार्थ पशुपति लिङ्ग की पूजा ), ७.१.१३०( प्रभास क्षेत्र में स्थित पाशुपतेश्वर लिङ्ग के माहात्म्य का वर्णन : वामदेव आदि ४ सिद्धों द्वारा सिद्धि प्राप्ति, शिव द्वारा आमन्त्रित पाशुपत सिद्धों का नन्दी के कमलनाल में सूक्ष्म रूप से प्रवेश करके कैलास पर पहुंचना ), लक्ष्मीनारायण ३.१८५.३०( पाशुपतेश विप्र द्वारा भक्त विप्र को मद्य युक्त भोजन प्रस्तुत करने पर विचित्तता शाप की प्राप्ति, प्रायश्चित्त व कृष्ण कृपा से शाप का मोक्षण ) pashupati
पशुपाल मत्स्य ४३.२७( राजा कार्त्तवीर्य की संज्ञाओं में से एक ), वराह ५१.१०+ ( वन में पशुपाल राजा के समक्ष विविध वर्णों के पुरुष व सर्प रूप धारी पापों द्वारा प्रकट होकर राजा का बन्धन, राजा द्वारा बन्धन से मुक्त होना, पुरुषों का राजा के पुत्र बन कर सद्गुणों के रूप में प्रकट होना आदि ), ५३( दस इन्द्रियों तथा बुद्धि रूपी दस्युओं के आक्रमण पर पशुपाल राजा द्वारा नारद के परामर्श पर पशुपति लिङ्ग की पूजा ), वायु ९४.२४/२.३२.२४( राजा कार्तवीर्य की संज्ञाओं में से एक ), स्कन्द ५.२.६४( राजा पशुपाल का १० पुरुषों द्वारा बन्धन, दस्युओं का राजा के शरीर में प्रवेश, नारद के उपदेश से राजा द्वारा पशुपति लिङ्ग की उपासना से मुक्ति ) pashupaala
पशुसख पद्म १.१९.२५९( सप्तर्षियों द्वारा हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति पर पशुसख की प्रतिक्रिया ), द्र. पशु शीर्षक में पशुमुख pashusakha
पश्चिम नारद २.६३.५( प्रयाग में गङ्गा के पश्चिम वाहिनी होने का उल्लेख ), ब्रह्म १.७०.५८( ५ वायुओं में अपान के पश्चिम काया होने का उल्लेख ), स्कन्द ७.३.२९.५८, ६८, ७७( कपिला गौ द्वारा अध्याय में ३ बार अपश्चिम शब्द का प्रयोग ), योगवासिष्ठ ५.३३.२( प्रह्लाद के मोक्ष के संदर्भ में प्रदग्ध बीज के अंकुरित न होने की भांति प्रह्लाद के पाश्चात्य जन्म का कथन ), ५.३८.१९( प्रह्लाद की देह के पश्चिम होने का उल्लेख ), वा.रामायण ७.१.४( पश्चिम दिशा में निवास करने वाले ऋषियों नृषङ्गु, कवष आदि का उल्लेख ) pashchima |