पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Paksha to Pitara ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Pinda, Pindaaraka, Pitara / manes etc. are given here. पिचु नारद १.५६.२१०( पिचुमन्द वृक्ष की उत्तरभाद्रपद नक्षत्र से उत्पत्ति का उल्लेख ), पद्म ६.१५८.१( पिचुमन्दार्क तीर्थ का माहात्म्य : कोलाहल दैत्य से त्रस्त सूर्य द्वारा पिचुमन्द/निम्ब वृक्ष में शरण ), स्कन्द ७.१.५९.६( रुद्र द्वारा सप्तम शीर्ष पिचु को विष्णु को देने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.१०७.९१( पिचु देवानीक : कल्याण देवानीक व मिश्रदेवी - पुत्र, कृष्ण की मुकुटमणि का अंश, महाविष्णु - पिता ) pichu
पिच्छिका अग्नि १३३.२६(पिच्छिका मन्त्र से शत्रु नाश), योगवासिष्ठ ३.१०४.३१, ३.१०६.४( इन्द्रजालिक द्वारा राजा लवण की सभा में पिच्छिका घुमाकर जादू दिखाने का वृत्तान्त ),
पिच्छिल पद्म १.४६.८०( पिच्छिला : अन्धक के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक ), २.११७.३०( पवमान अग्नि द्वारा पिच्छल ऋषि के आश्रम का दहन, पिच्छल ऋषि द्वारा वह्नि को नष्ट करना, प्रसन्न होने पर पवमान को जीवित करना व शाप मोक्ष का उपाय बताना ), मत्स्य १७९.११( पिच्छला : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक ) pichchhila
पिञ्जल ब्रह्माण्ड २.३.७.३३( पिञ्जर : कद्रू के प्रधान नाग पुत्रों में से एक ), लक्ष्मीनारायण ३.२१९.१( पिञ्जल ग्राम के लुब्धक चक्रधर की पौतिमाष्य ऋषि की कृपा से मुक्ति का वृत्तान्त ),
पिठर देवीभागवत ९.२२.८( शङ्खचूड - सेनानी, मन्मथ से युद्ध ), मत्स्य १६१.८०( हिरण्यकशिपु के सेवक दैत्यों में से एक ), हरिवंश २.१२२.३२( स्वधाकार के आश्रित ५ अग्नियों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.३३७.४४( शङ्खचूड - सेनानी, मन्मथ से युद्ध ),
पिण्ड अग्नि ११५.४३( गयाशिर, रुद्रपद, विष्णुपद आदि में पिण्ड दान के माहात्म्य का वर्णन, राजा विशाल द्वारा गयाशिर में पिण्डदान से पुत्र की प्राप्ति, वणिक् द्वारा गया में पिण्डदान से प्रेतराज की मुक्ति आदि - पञ्चक्रोशं गयाक्षेत्रं क्रोशमेकं गयाशिरः ॥ तत्र पिण्डप्रदानेन कुलानां शतमुद्धरेत् । ), गरुड २.५.३३(पिण्डों से प्रेत देह का निर्माण - शिरस्त्वाद्येन पिण्डेन प्रेतस्य क्रियते तथा ॥ द्वितीयेन तु कर्णाक्षिनासिकं तु समासतः ।), २.१०.१७ (३ पिण्डों से पितरों के तृप्त होने का कथन - अपसव्यं क्षितौ दर्भे दत्ताः पिण्डास्त्रयस्तु वै । यान्ति तांस्तर्पयन्त्येवं प्रेतस्थानस्थितान्पितॄन् ॥), २.१०.८२(पिण्ड दान से अंगुष्ठमात्र वायु पुरुष के एकता को प्राप्त होने का कथन - पिण्डजेन तु देहेन वायुजश्चैकतां व्रजेत् ॥ पिण्डजो यदि नैव स्याद्वायुजोऽर्हति यातनाम् ।), २.१५.६९(पिण्डों से मृतक की देह का निर्माण - प्रथमेऽहनि यः पिण्डस्तेन मूर्धा प्रजायते ॥ ग्रीवा स्कन्धौ द्वितीये च तृतीये हृदयं भवेत् ।), २.२६.१(प्रेत के सपिण्डीकरण के नियम संवत्सरे तु सम्पूर्णे कुर्यात्पिण्ड प्रवेशनम् । पिण्डप्रवेशविधिना तस्य नित्यं मृताह्निकम् ॥), २.२६.३७(पिता के जीवित रहते हुए पुत्र की तथा पति के जीवित रहते हुए पत्नी की सपिण्डता का निषेध - जीवमाने च पितरि न हि पुत्त्रे सपिण्डता । स्त्रीणां सपिण्डनं नास्ति तथा भर्तरि जीवति ॥ ), २.३२.३२(६ कोशों वाले देह रूपी पिण्ड का कथन - षाट्कौशिकमिदं पिण्डं स्याज्जन्तोः पाञ्चभौतिकम् । नवमे दशमे मासि जायते पाञ्चभौतिकः ॥ ), २.४०.२६( पिण्ड दान हेतु वैदिक मन्त्र - आपोदेवीर्मधुमतीरादिपीठे प्रकल्पितम् ॥ उपयामगृहीतोऽसि द्वितीयेऽर्घं निवेदयेत् ।), २.४०.२६(एकोद्दिष्ट श्राद्ध में ११ पिण्डों हेतु ऋचाओं का विनियोग), २.४४.१५(५ पिण्डदान का क्रम - प्रथमं विष्णवे दद्याद्ब्रह्मणे च शिवाय च । सभृत्याय शिवायाथ प्रेतायापि च पञ्चमम् ॥), नारद २.४५( गया में प्रथम व द्वितीय दिन पिण्ड दान की विधि ), ब्रह्म १.११२/२२०.३४( सपिण्डीकरण विधि, श्राद्ध योग्य ब्राह्मण - अपत्यकामो रोहिण्यां सौम्ये तेजस्वितां लभेत्। शौर्यमार्द्रासु चाऽऽप्नोति क्षेत्राणि च पुनर्वसौ।। ), ब्रह्माण्ड २.३.११.५७( पितरों हेतु ३ पिण्डों के निर्वाप की विधि - सकृद्देवपितॄणां स्यात्पितॄणां त्रिभिरुच्यते ॥ एकं पवित्रं हस्तेन पितॄन्सर्वान्सकृत्सकृत् । ), २.३.१२.३१( विभिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए पिण्ड दान की विधियां - पूजयेत पितॄन्पूर्वं देवांश्च तदनन्तरम् । देवा अपि पितॄन्पूर्वमर्च्चयन्ति हि यत्नतः ॥ ), २.३.१३.९०(शालग्राम में देवह्रद में नागराज द्वारा योग्यों का पिण्ड स्वीकार करने व अयोग्यों का अस्वीकार करने का उल्लेख - पिण्डं गृह्णाति हि सतां न गृह्णात्यसतां सदा ।), २.३.२०.१०( पितरों हेतु ३ पिण्डों के दान की विधि व महत्त्व - भूमौ कुशोत्तरायां च अपसव्यविधानतः । सर्वत्र वर्त्तमानास्ते पिण्डाः प्रीणन्ति वै पितॄन् ॥ ), भविष्य ३.२.१८.३४( चोर - पत्नी मोहिनी व द्विज से उत्पन्न पुत्र से पिण्ड प्राप्ति हेतु उपयुक्त पितर की समस्या की कथा - इत्युक्त्वा स तु वैतालो नृपतिं प्राह भो नृप ।। कस्मै योग्यो हि पिंडोऽसौ श्रुत्वा राजाब्रवीदिदम् ।।), ३.४.२३.३८( श्राद्ध के औचित्य पर संवाद के संदर्भ में सम्यक् पिण्डदान से पितरों की उन्नति का कथन, गीता के १८ अध्यायों व सप्तशती के चरित्रों द्वारा पिण्ड को पवित्र करने का निर्देश - सत्पुत्रैश्च विधानेन पिण्डदानं च यत्कृतम् । तद्विमानं नभोजातं सर्वानन्दप्रदायकम् । ), मत्स्य १६.२१( पिण्डान्वाहार्यक श्राद्ध विधि का वर्णन ), १७.६७( वृद्धि श्राद्ध में दूर्वा व कुश युक्त पिण्ड दान का उल्लेख - प्राङ्मुखो निर्वपेत् पिण्डान् दूर्वया च कुशैर्युतान्।। ), १८( एकोद्दिष्ट व सपिण्डीकरण श्राद्ध की विधि ), १८.५( प्रेत हेतु १२ दिन तक पिण्डदान का कारण - प्रेताय पिण्डदानन्तु द्वादशाहं समाचरेत्। पाथेयं तस्य तत् प्रोक्तं यतः प्रीतिकरं महत्।। ), १८.१५( सपिण्डीकरण श्राद्ध की विधि - ततः संवत्सरे पूर्णे सपिण्डीकरणं भवेत्।। सपिण्डीकरणादूर्ध्वं प्रेतः पार्वणभाग् भवेत्। ), १७९.३२( पिण्डजिह्वा : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक ), १८६.३९( जलेश्वर ह्रद में पिण्ड प्रदान से पितरों की १० वर्षों तक तृप्ति का उल्लेख ), मार्कण्डेय २३.६७/२१.६९( श्राद्ध में मध्यम पिण्ड के भक्षण से कम्बल व अश्वतर नागों के फणों से मदालसा कन्या की उत्पत्ति - श्राद्धे तु समनुप्राप्ते मध्यमं पिण्डमात्मना । भक्षयेथाः फणिश्रेष्ठ ! शुचिः प्रयतमानसः॥ ), योगवासिष्ठ ३.७४.१५( सूची द्वारा उदर सौषिर्य के पिण्डीकरण द्वारा अशना निवारण का उल्लेख - बहुनात्र किमुक्तेन वाताद्यशनशान्तये । यया स्वोदरसौषिर्यं पिण्डीकृत्वा निवारितम् ।। ), वराह ७.२१( गया में पिण्ड प्रदान से नरकाश्रित पितरों का संयोजित होकर प्रकट होना ), वायु ७१.३२/ २.१०.३२( श्राद्ध में पितरों हेतु ३ पिण्डों का महत्त्व ), ७५.२२/ २.१३.२२( पितरों हेतु ३ पिण्डों के निर्वाप की विधि - त्रीन् पिण्डानानुपूर्व्व्येण साङ्गुष्ठान्पुष्टिवर्द्धनान् । जान्वन्तराभ्यां यत्नेन पिण्डान् दद्याद्यथाक्रमम् ।। ), ७६.३१/ २.१४.३१( विभिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए अग्नि, गौ, काक आदि को पिण्ड दान का कथन - पिण्डमग्नौ सदा दद्याद्भोगार्थी तु प्रयत्नतः । प्रजार्थी पत (त्न)ये दद्यान्मध्यमं तत्र पूर्वकम् ।। ), १०५.११/ २.४३.११( गया में पिण्डदान का महत्त्व - महाकल्पकृतं पापं गयां प्राप्य विनश्यति। पिण्डं दद्याच्च पित्रादेरात्मनोऽपि तिलैर्विना ।। ), १०५.३३/ २.४३.३०( गया में पिण्ड पात हेतु पिण्ड के द्रव्यों का कथन - पायसेनापि चरुणा सक्तुना पिष्टकेन वा। तण्डुलैः फलमूलाद्यैर्गयायां पिण्डपातनम् ।। ), १०८.१४/ २.४६.१४( गया में प्रेत शिला के अङ्गुष्ठ पर पिण्ड दान का महत्त्व - शिलाङ्गुष्ठैकतेशो यः सा च प्रेतशिला स्मृता। पिण्डदानाद्यतस्तस्यां प्रेतत्वान्मुच्यते नरः ।। ), ११०.२४/ २.४८.२४( पितरों हेतु देय पिण्ड का प्रमाण, पिण्ड दान की महिमा - मुष्टिमात्रप्रमाणञ्च ह्यार्द्रामलकमात्रकम्। शमीफत्रप्रमाणं वा पिण्डं दद्याद्गयाशिरे। ), १११.५८/२.४९.७४( हस्त की अपेक्षा पद में पिण्ड दान का माहात्म्य, भारद्वाज, राम व भीष्म का दृष्टान्त - भारद्वाजस्ततः पिण्डं कश्यपस्य पदे ददौ । हंसयुक्तविमानेन ब्रह्मलोकमुभौ गतौ ।। ), ११२.११/२.५०.११( गया में पिण्ड दान से राजा विशाल को पुत्र प्राप्ति का कथन ), ११२.२७/२.५०.३२( विभिन्न तीर्थों में पिण्ड दान का महत्त्व - स्नातोऽथ पिण्डदो ब्रह्मलोकं कुलशतं नयेत्। देवनद्यां वैतरण्यां स्नातः स्वर्गं नयेत्पितॄन् ।। ), विष्णु ३.१५.३४( पिण्ड दान की विधि ), विष्णुधर्मोत्तर १.१३९.११( यज्ञ वराह के दंष्ट्र से लग्न मृत्पिण्ड से श्राद्ध हेतु पिण्ड का प्रादुर्भाव, ४ पिण्डों की चतुर्व्यूह के अनुसार व्याख्या - दंष्टाग्रलग्नं मृत्पिण्डं गृहीत्वा दक्षिणे करे।। प्रस्वेदाच्च तिलान्कृत्वा दर्भान्रोमभ्य एव च ।। ), शिव ७.२.५.१६( जाति व व्यक्ति के संदर्भ में पिण्ड के जाति से सम्बन्ध का कथन - या पिंडेप्यनुवर्तेत सा जातिरिति कथ्यते ॥ व्यक्तिर्व्यावृत्तिरूपं तं पिण्डजातेः समाश्रयम् ॥ ), स्कन्द १.१.८.१८( शिव लिङ्ग के पिण्डीभूत होने के कारण पुरुषों के लिङ्ग व स्त्रियों के पिण्डीभूत उत्पन्न होने का उल्लेख - पिण्डीयुक्तं यथा लिंगं स्थापितं च यथाऽभवत्॥ तथा नरा लिंगयुक्ताः पिण्डीभूतास्तथा स्त्रियः॥ ), ४.१.३५.२१०( शुन:, पापरोगी, काकादि हेतु पिण्ड दान विधि का कथन - प्रतिगृह्णंत्विमं पिंडं काका भूमौ मयार्पितम् ।। द्वौ श्वानौ श्यामशबलौ वैवस्वतकुलोद्भवौ ।। ), ५.३.१५०.४४( कुसुमेश्वर तीर्थ में अकुल्लमूल में पिण्ड दान के माहात्म्य का कथन : सत्रयाज फल की प्राप्ति - अङ्कुल्लमूले यः पिण्डं पितनुद्दिश्य दापयेत् । तस्य ते द्वादशाब्दानि तृप्तिं यान्ति पितामहाः ॥), ६.१७७( पञ्चपिण्डिका गौरी का माहात्म्य, पद्मावती द्वारा पञ्चपिण्डिका गौरी की पूजा से सौभाग्य प्राप्ति की कथा ), ६.२७०.७( पाप से मुक्ति हेतु २४ तत्त्व रूप पिण्ड का दान - चतुर्विंशतितत्त्वानि पृथिव्यादीनि यानि च॥ तेषां नामभिस्तत्पिंडं पूजयेतन्नराधिपः॥), लक्ष्मीनारायण १.६४.३५( मृत्यु - पश्चात् पिण्ड दान से प्रेत की देह का निर्माण - प्रथमेऽहनि यः पिण्डस्तेन मूर्द्धा प्रजायते ॥ ग्रीवास्कन्धौ द्वितीये तु तृतीये हृदयं भवेत् । ), १.५०८( पञ्चपिण्डिका गौरी व्रत का माहात्म्य : काशीराज - पत्नी अमा द्वारा व्रत के अनुष्ठान से लक्ष्मी बनना ), द्र. पञ्चपिण्ड pinda
पिण्डोदक नारद १.१४.७५( विवाह में सप्तम पद में नारी के स्वगोत्र से भ्रष्ट होने के कारण नारी की पिण्डोदक क्रिया स्वामी के गोत्र में करने का निर्देश ), स्कन्द ५.३.१४६.४८( अस्माहक तीर्थ में पिण्डोदक प्रदान के महत्त्व का वर्णन ), ७.३.२१( पिण्डोदक तीर्थ का माहात्म्य, पिण्डोदक ब्राह्मण द्वारा सरस्वती की कृपा की प्राप्ति ) pindodaka
पिण्डारक गर्ग ६.२१.८( पिण्डारक तीर्थ का माहात्म्य : सम्पूर्ण तीर्थों के पिण्डीभूत होने का स्थान, द्वारका का माहात्म्य ), ७.५०.१( उग्रसेन के राजसूय यज्ञ का स्थान ), देवीभागवत ७.३०.७८( पिण्डारक तीर्थ में धृति देवी के वास का उल्लेख ), पद्म ३.२४.१५( पिण्डारक तीर्थ का माहात्म्य ), ब्रह्माण्ड २.३.१३.३७( श्राद्ध के लिए प्रशस्त तीर्थों में से एक ), २.३.७१.१६५( वसुदेव व रोहिणी के ८ पुत्रों में से एक ), भागवत ११.१.११( पिण्डारक क्षेत्र में निवास कर रहे ऋषियों के पास साम्ब द्वारा स्त्री वेष धारण करके जाने की कथा ), मत्स्य १३.४८( पिण्डारक तीर्थ में देवी की धृति नाम से स्थिति ), ४६.१२( वसुदेव व रोहिणी के ८ पुत्रों में से एक ), वामन ५८.६३ष्( स्कन्द के गणों में से एक, तुण्ड द्वारा असुरों का संहार करने का उल्लेख ), वायु ७७.३७.२.१५.३७( पण्डारकवन : श्राद्ध के लिए प्रशस्त स्थानों में से एक ), ९६.१६३/२.३४.१६३( वसुदेव व रोहिणी के ८ पुत्रों में से एक ), विष्णु ५.३७.६( पिण्डारक क्षेत्र में निवास कर रहे ऋषियों के पास साम्ब द्वारा स्त्री वेष धारण करके जाने की कथा ), स्कन्द २.८.१०.१२( अयोध्या में पिण्डारक नामक वीर की पूजा के माहात्म्य का कथन ), ५.३.१९८.८६( पिण्डारक तीर्थ में पार्वती के धृति नाम से वास का उल्लेख ), ७.३.२५( पिण्डारक तीर्थ का माहात्म्य : मङ्कि विप्र का पिण्डारक गण बनना ), हरिवंश २.८८+ ( पिण्डारक तीर्थ में कृष्ण व यादवों की जलक्रीडा का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.२३०.१४( द्वारका में पिण्डारक तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन : पिण्डारक में चतुर्भुज कृष्ण का वास, पितरों की तृप्ति आदि ) pindaaraka
पिण्डिका अग्नि ४५.१( प्रतिमा की पिण्डिका के लक्षणों का कथन ), मत्स्य २६६.६( प्रतिमा प्रतिष्ठा हेतु पिण्डिका शोधन विधि ), स्कन्द १.१.७.१८( पिण्डी से युक्त शिवलिङ्ग का नर लिङ्ग व स्त्री पिण्डी से साम्य), १.१.७.२१( शिवलिङ्ग के भय से मुक्ति के लिए विष्णु आदि का पिण्डीरूप होकर लिङ्ग पूजन करने का उल्लेख ) pindikaa
पितर गणेश १.६८.३( पुत्र की इच्छा वाले राजा कृतवीर्य को गणेश द्वारा पितर रूप में दर्शन का वृत्तान्त ), गरुड १.८९( कन्या प्राप्ति हेतु रुचि प्रजापति द्वारा पितरों की स्तुति ), १.८९.३६(विप्रादि चार वर्णों के पितरों के कुमुदादि वर्णों का कथन), १.८९.४१(अग्निष्वात्त आदि पितरों द्वारा प्राची आदि दिशाओं की रक्षा), १.८९.४३( ९+६+७+५+४ संख्याओं वाले पितर गण के रूप में ३१ पितरों के नाम), ३.२२.२९(पितरों के ३२ में से ७ लक्षणों से युक्त होने का उल्लेख), नारद १.२८.७८( श्राद्ध में पितृ सूक्त से होम का निर्देश ), १.४३.११४( निवाप से पितरों की तृप्ति का उल्लेख ), १.५१.१०१( पितर कल्प का वर्णन ), पद्म १.९( पितरों के प्रकार व श्राद्ध, अच्छोदा कन्या का वृत्तान्त ), १.५०.७( पितृ सेवा के महत्त्व के वर्णन में पितृ सेवा को त्याग तप हेतु गमन करने वाले नरोत्तम ब्राह्मण का वृत्तान्त, पितृ - सेवा में रत मूक द्वारा नरोत्तम की उपेक्षा आदि ), १.५०.१९५( पितृ सेवा के संदर्भ में पितृ श्राद्ध आदि के महत्त्व का वर्णन ), २.६२.२३( सुकर्मा द्वारा देवों से वर रूप में मातृ - पितृ भक्ति का वरदान मांगना ), २.६२.६२( सुकर्मा द्वारा माता - पिता की सेवा को ही ज्ञान प्राप्ति, अर्वाचीन - पराचीन गति प्राप्ति में कारण होने का कथन ), ६.२७.१५( वृक्षों द्वारा पुष्पों से देवों व पत्रों से पितरों की पूजा का उल्लेख ), ब्रह्म १.११०.४( चन्द्रमा - कन्या ऊर्जा/ स्वधा/ कोका पर पितरों की आसक्ति, चन्द्रमा द्वारा पितरों को शाप ), १.११०.२६( विश्वेदेवों से रहित पितरों को दैत्यों से भय, पितरों की कोका नदी में स्थिति, पितरों द्वारा श्रीहरि की स्तुति, सूकर रूप धारी विष्णु द्वारा पितरों का उद्धार ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१७.३४( पितरों की तीन मानसी कन्याओं कलावती, रत्नमाला व मेनका द्वारा पतियों को प्राप्त करने का कथन ), ब्रह्माण्ड १.१.५.८५( पितरों का ब्रह्मा के वक्ष से प्राकट्य ), १.२.१३.२०(आर्तव, ऋतु व वत्सर रूपों की पितर, पितामह व प्रपितामह संज्ञा), १.२.१३.२९(स्वधा व पितरों से २ कन्याओं के जन्म का कथन), १.२.१७.३६( शृङ्गवान् पर्वत पर पितरों के वास का उल्लेख ), १.२.२३.३९( पितरों द्वारा चन्द्रमा की अवशिष्ट कला के पान का उल्लेख ), १.२.२३.७१( पितरों द्वारा चन्द्रमा की १५वीं कला से स्वधामृत के पान का कथन ; काव्य, सौम्य आदि पितरों का संवत्सर, ऋतु आदि से तादात्म्य ), १.२.२८.१६( पितर, पितामह, प्रपितामह के अर्धमास/आर्तव आदि रूप ), २.३.३.३९( पित्र्य : दिन के १६ मुहूर्तों में से एक ), २.३.९( पितरों का महत्त्व, शंयु - बृहस्पति संवाद ), २.३.९.२०(देवों द्वारा पितरों से प्रायश्चित्त विधान की पृच्छा, देवपुत्रों का पितर नामकरण), २.३.१०.८६( चतुर्वर्णों द्वारा पूज्य पितर, पितरों की मानसी कन्याएं ), २.३.१२.५( ब्रह्मा सहित पितरों द्वारा विश्वेदेवों को वर देने का वृत्तान्त, पिण्डदान की विधि व महत्त्व, कामनानुसार अग्नि, जल, कुक्कुट आदि को पिण्ड देने का महत्त्व ), २.३.२०( पितरों का सात गणों में विभाजन, प्रथम तीन का योगी, देव व दानवों में विभाजन ), भविष्य ३.४.२३.९८( ब्राह्मण वर्ण से पितरों की तृप्ति ), भविष्य १.५७.५( पितरों हेतु पायस बलि का उल्लेख ), १.५७.१९( पितरों हेतु पिण्डमूल बलि का उल्लेख ), भागवत १.२.२७( रजोगुणी व तमोगुणी व्यक्तियों द्वारा पितरों आदि की अर्चना करने का उल्लेख ), २.३.८( तन्तु/वंश वृद्धि हेतु पितरों के यजन का निर्देश ), ३.३२.२०( अर्यमा के दक्षिण पथ से पितृलोक जाने वालों की गति का कथन ), ४.१.६३( अग्निष्वात्त आदि ४ प्रकार के पितरों के नाम, पत्नी व सन्तानों के नाम ), ४.२५.५०( पुरञ्जन की पुरी के दक्षिण में पितृहू नामक द्वार के दक्षिण पाञ्चाल की ओर तथा उत्तर में देवहू नामक द्वार के उत्तरपाञ्चाल की ओर जाने का उल्लेख ), ४.२९.१२( पितृहू के दक्षिण कर्ण व देवहू के उत्तर कर्ण का प्रतीक होने का उल्लेख ), ५.२.२( आग्नीध्र द्वारा पितृलोक की कामना करते हुए तप, पूर्वचित्ति अप्सरा की उपलब्धि ), ५.२.२२( आग्नीध्र द्वारा मृत्यु उपरान्त पितृलोक की प्राप्ति का उल्लेख ), ६.६.१९( अङ्गिरस प्रजापति की पत्नी स्वधा से पितरों की उत्पत्ति का उल्लेख ), ८.५.४०( पुरुष/परमात्मा की छाया से पितरों की उत्पत्ति का उल्लेख ), मत्स्य १.१८( पितृतर्पण करते समय मनु के हाथ में मछली आने का वृत्तान्त ), ८.५( ब्रह्मा द्वारा यम को पितरों का अधिपति नियुक्त करने का उल्लेख ), १३.३( स्वर्ग निवासी ४ मूर्तिमन्त व ३ मूर्तिरहित पितृगणों के वंश का कथन : वैराज प्रजापति - पुत्र, मेना - कन्या के पिता आदि ), १४.१( मरीचि के वंशज अग्निष्वात्त नामक देवपितरों व उनकी मानसी कन्या अच्छोदा का वर्णन ), १४.५( पितरों की कन्या अच्छोदा की अमावसु नामक पितर पर आसक्ति व अच्छोदा के जन्मान्तरों का वर्णन ), १५( पितरों के बर्हिषद्, हविष्मान् आदि प्रकार, वास स्थान, कन्याएं, पितरों के श्राद्ध के उपयुक्त व वर्जित द्रव्य ), १६+ ( श्राद्धों के विविध भेद, उनके करने का समय, श्राद्ध में निमन्त्रित करने योग्य ब्राह्मण के लक्षण आदि ), १७.२( श्राद्ध के उपयुक्त युगादि तिथियों आदि का वर्णन ), २०.३( कौशिक के ७ पुत्रों द्वारा श्राद्ध हेतु गौ के हनन की कथा ), २२.१( श्राद्ध हेतु उपयुक्त तीर्थों के नाम ), १०१.३०( पूर्णिमा तिथि को करणीय पितृ व्रत विधि ), १०२.२४( १४ दिव्य पितरों के नाम ), १४१.१०( पुरूरवा के संदर्भ में पितरों के सौम्य, बर्हिषद आदि प्रकारों का कथन ; पितामह आदि का ऋतु आदि से तादात्म्य ), १४१.५८( श्राद्ध भोजी पितरों का वर्णन ), १४२.६( पितृ और मानव काल मान में सम्बन्ध ), १९४.७( नर्मदा तटवर्ती मनोहर तीर्थ में स्नान से पितृलोक प्राप्ति का उल्लेख ), २०४( पितृ गाथा ; पितरों द्वारा श्राद्ध की कामना का वर्णन ), मार्कण्डेय १३.१८( पर्व काल में पितरों व तिथिकाल में देवों के आगमन का उल्लेख ), ९२+/९५+( पितरों द्वारा रुचि प्रजापति को दार संग्रह का परामर्श देना ), वराह १३.१२( मार्कण्डेय द्वारा ऋषि गौरमुख को ४ मूर्तिमन्त व ३ अमूर्तिमन्त पितर गणों का कथन ), १३.३२( पितरों के श्राद्ध हेतु उपयुक्त काल का विचार ), १३.५२( पितरों को पिण्डदान हेतु अन्न की प्रकृति का विचार ), १७.५२( इन्द्रियार्थों के शरीर से निष्क्रमण पर भी शरीर पात न होना ), १७.७३( पितरों के इन्द्रियार्थ बनने का उल्लेख ), ३४( पितृ सर्ग स्थिति वर्णन संज्ञक अध्याय में परमेष्ठी से उत्पन्न तन्मात्राओं के पितर बनने का कथन, चार वर्णों के पितरों का कथन ), १८७.२८( पुत्र की मृत्यु पर पुत्र के शोक से पीडित निमि द्वारा शोक में अनजाने पितृश्राद्ध करने का वर्णन ; निमि से पितृश्राद्ध का आरम्भ ), वामन ११.२१( ब्रह्मचर्य आदि पैतृक धर्म का कथन ), वायु १.३९/१.१.३४( पितरों की मानसी कन्या वासवी के मत्स्य योनि में जन्म लेकर व्यास को जन्म देने का कथन ), ९.१४/१.९.११( ब्रह्मा द्वारा सन्ध्या काल में पितरों के सृजन का कथन ), २९.४०( पितृकृत् : अर्काग्नि के ८ पुत्रों में से एक ), ३०.७( मधु माधव आदि ऋतुओं के रूप ), ५२.६७( कव्य, बर्हिषद् आदि पितर : ऋतुओं आदि के रूप ), ५६.१३(पुरूरवा द्वारा तर्पित पितरों के भेद का वर्णन ), ६५.४९/२.४.४९(सप्तर्षियों के अनुसार मारीच, भार्गव, आङ्गिरस, पौलस्त्य आदि पितरों की उत्पत्ति तथा उनके राजा यम का कथन ), ७१.२३/२.१०.२३( देवों के पुत्र ; देवों द्वारा पुत्रों से प्रायश्चित्त सम्बन्धी ज्ञान प्राप्ति के कारण पितर नामकरण ), ७१.५२/२.१०.५२( पितरों की ब्रह्मा से उत्पत्ति, मूर्त्त - अमूर्त्त आदि ७ गण, पितरों की पितर संज्ञा का कारण ), ७५.६/२.१३.६( पितरों को धूप, दीप, पिण्ड आदि प्रदान के महत्त्व का वर्णन ), १०१.३०/ २.३९.३०( पितरों आदि की भुव: लोक में स्थिति का उल्लेख ), विष्णु १.१०.१८( अग्निष्वात्त व बर्हिषद पितरों की अनग्निक व साग्निक संज्ञा, स्वधा से उत्पन्न पितर कन्याओं मेना व धारिणी का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.१३८( ४ मूर्त्तिमान व ३ अमूर्तिमान पितरों का वर्णन, वर्ण अनुसार विभाजन ), ३.१५७( सप्तमूर्ति पितर व्रत का वर्णन ), ३.१८९( पितृ व्रत की संक्षिप्त विधि ), शिव २.२.३.४८( ब्रह्मा के लज्जा से उत्पन्न स्वेद जल के पतन से अग्निष्वात्त व बर्हिषद् पितरों की उत्पत्ति का कथन ), २.२.३.५५( रति के दर्शन से क्रतु आदि महर्षियों के पतित बीज से सोमपा आदि पितरों की उत्पत्ति का कथन ), २.३.२.५( पितरों द्वारा दक्ष - कन्या स्वधा की भार्या रूप में प्राप्ति, मेना, धन्या व कलावती नामक ३ कन्याओं का हिमवान् आदि से विवाह का वृत्तान्त ), ५.१२.१९( वृक्षों द्वारा पुष्पों से देवों व फलों से पितरों को तुष्ट करने का कथन ), ५.२९.२२( ब्रह्मा/प्रधान पुरुष द्वारा मुख से देवों, वक्ष से पितरों व प्रजनन से मनुष्यों को उत्पन्न करने का उल्लेख ), ५.४०.४३( देवों व पितरों के परस्पर पिता - पुत्र व पुत्र - पिता बनने का वृत्तान्त ; पितृसर्ग का आरम्भ ), ५.४१.११( पितृवर्ती : भारद्वाज के ७ पुत्रों में अन्तिम, पितरों के उद्देश्य से गौ का भक्षण करने पर जन्मान्तरों का वृत्तान्त ), स्कन्द १.२.१३.१८१( शतरुद्रिय प्रसंग में पितरों द्वारा तिलान्न लिङ्ग की वृषपति नाम से पूजा का उल्लेख ), २.३.६.५५( पितरों की यम से श्रेष्ठता? का उल्लेख ), २.७.२२.५४( अन्ध कूप में स्थित पितरों के धर्मवर्ण द्वारा उद्धार का वृत्तान्त ), ४.२.६२.४९( कपिलधार तीर्थ में श्राद्ध के माहात्म्य का कथन : कपिल ह्रद से अग्निष्वात्त आदि दिव्य पितरों की उत्पत्ति, पितरों द्वारा शिव से वर प्राप्ति ), ४.२.९७.९२( पितृकूप में पिण्ड परिक्षेपण आदि का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.१.४८.१३( मास के २ पक्ष पितरों के अहोरात्र होने का उल्लेख ), ५.१.५८.१३( पितरों के ७ भेद, स्थान, पितरों के श्राद्ध से जातिस्मरता की प्राप्ति ), ५.३.५५.२२( शूलभेद तीर्थ के प्रसंग में विष्णु के पिता, ब्रह्मा के पितामह तथा रुद्र के प्रपितामह होने का उल्लेख ), ५.३.१४६.४३( पितरों, पितामहों तथा प्रपितामहों के देवत्रय ब्रह्मा, विष्णु, महेश होने का कथन ), ५.३.१४६.७४( अस्माहक तीर्थ में पिण्डदान के संदर्भ में पितृ संहिता के जप तथा नील वृषोत्सर्ग से पितरों के उद्धार का कथन ), ५.३.२३१.२२( नर्मदा तट पर २ पितृ तीर्थों की स्थिति का उल्लेख ), ६.२१६( पितरों के भेद, पितरों द्वारा क्षुत्पिपासा की शान्ति हेतु ब्रह्मा से प्रार्थना, उपाय, अमा काल में पितरों की तृप्ति, श्राद्ध के विभिन्न काल ), ७.१.१०५.५२( पितृ नामक ३०वें कल्प के ब्रह्मा की अमावास्या/कुहू होने का उल्लेख ), हरिवंश १.१७.३१( पितरों और देवों में सम्बन्ध – ज्ञानप्रदाता व शरीरकर्ता ), १.१८( पितरों के ७ गण, नाम, लोक व कन्याओं का वर्णन ), ३.२६.३०(पितरों के ऊष्माणों से तृप्त होने का उल्लेख), ३.२६.३२( ७ पितर गणों के चन्द्र - सूर्यात्मक होने का कथन ), महाभारत शान्ति ३१७.६( ललाट से प्राणों का उत्क्रमण होने पर पितरों की प्राप्ति का उल्लेख ), ३४५.१४( वृषाकपि/वराह द्वारा पितरों को पिण्डदान की विधि का निरूपण ), आश्वमे ९२.४८( पितरों के शाप से धर्म द्वारा नकुल योनि प्राप्ति का वृत्तान्त ), ९२दाक्षिणात्य पृ. ६३४०( देवपितरों व पितरों के तर्पण की विधि ), लक्ष्मीनारायण १.३४.४( पितृ महिमा ), १.३९( पितरों के वर्णन में ऋतु रूप पितरों की ऋषियों व संवत्सर अग्नि रूप ऋत् से उत्पत्ति का वर्णन ; तपोलोक के ऋषियों द्वारा जनलोक निवासी पितरों को उत्पन्न करने का कथन ; विभिन्न लोकों के पितरों का कथन ), १.४०( जीवों, देवों, ऋषियों आदि द्वारा कर्म करने के पश्चात् विभिन्न लोकों के पितर बनने का कथन ; पितरों के राजा - द्वय सोम व अर्यमा का कथन `; मूर्त्त, अमूर्त्त, भावमूर्त्त, सूक्ष्म मूर्त्त आदि पितरों के स्वरूपों का कथन ; पितरों को श्राद्ध आदि द्वारा तृप्त करने का निर्देश ; पितरों के राजत आदि पात्रों का कथन ; पितरों हेतु श्राद्ध काल में अर्पणीय विभिन्न भोज्य वस्तुओं के नाम ), १.४१( पितरों की प्रसन्नता हेतु पितर - स्तोत्र ; पितरों को विभिन्न वस्तुओं के अर्पण से प्राप्त फल का कथन ; विश्वेदेवों के पितर होने का उल्लेख ), १.१९८.३४( ब्रह्म वीर्य से उत्पन्न अग्निष्वात्त तथा बर्हिषद् पितरों के स्वरूप का कथन ), १.१९८.४०( क्रतु, वसिष्ठ, पुलस्त्य आदि ऋषियों के वीर्यों से उत्पन्न सोमपा, आज्यपा आदि पितरों के नाम ), १.२२९.८( सोमशर्मा द्विज द्वारा हरिभक्ति व द्वारका की यात्रा किए बिना ही सोमनाथ की यात्रा पूर्ण करने के कारण पितरों का उद्धार न होने का वृत्तान्त ), १.२५४.४४( श्रावण कृष्ण कामिका एकादशी व्रत के प्रभाव से श्रवण नामक पितरों द्वारा दूरश्रवण, दूरदर्शन आदि सिद्धियां प्राप्त करने का वृत्तान्त ), १.२६७.४४( मार्गशीर्ष शुक्ल द्वितीया को ब्रह्मदेह से अर्यमा आदि पितरों की उत्पत्ति का उल्लेख तथा श्राद्धादि का निर्देश ), १.३१९.५( जोष्ट्री - पुत्री पिपासा द्वारा पितरों की सेवा ), १.३५४( त्रिकालज्ञ ऋषि द्वारा ध्रुव तीर्थ में विभिन्न प्रकार के पितरगणों का दर्शन, प्रभावती नामक राजदासी के मशकावेष्टित पितरगण की तृप्ति के उद्योग का वर्णन ), १.५३३.७१( पितरों के शब्दादि इन्द्रियार्थ होने का उल्लेख ),१.५३३.१२४( इन्द्रियार्थों के दिव्य रूप में पितर बनने का उल्लेख ), १.५५६.४३( पितरों के उद्धार हेतु राजा हिरण्यतेजा द्वारा नर्मदा नदी का ब्रह्मलोक से उदय पर्वत पर, पुरूरवा द्वारा ऋक्ष पर्वत पर तथा पुरुकुत्स द्वारा पर्यङ्क पर्वत पर अवतारण का वृत्तान्त ), १.५६४.४७( अमावास्या के दिन पितरों द्वारा पिण्डों को हाथ में स्वीकार करने का उल्लेख ),२.१८.३९( पितृ दिवस अमावास्या पर विभिन्न प्रकार के पितरों की कन्याओं द्वारा कृष्ण को विभिन्न वस्तुएं अर्पित करने का वर्णन, पितृका रूपी कन्याओं की व्याख्या ), २.१०७( राक्षसों द्वारा पितृकन्याओं के हरण के प्रयास पर अर्यमा पितर द्वारा राक्षसों से युद्ध, असफल होने पर ब्रह्मा, विष्णु व महेश का स्मरण, कालप्रालेय राक्षस का संकर्षण से युद्ध आदि ), २.१५७.२१( पितरों के जानु में न्यास का उल्लेख ), २.२९३.९९( पितरों द्वारा कृष्ण को दहेज में स्वर्ण पात्रों को देने का उल्लेख ), ३.२१.३५( २५वें वत्सर में नाभ्यूर्ध्व देह वाले पितरों द्वारा हरि - प्रसाद के अतिरिक्त भोजन को ग्रहण न करने पर श्रीहरि का अर्धपितृनारायण रूप में प्राकट्य ), ३.२४.१( ब्रह्मा के ९९वें पितृ वत्सर में उत्पन्न मयूर असुर के वध के लिए श्री क्षत्र नारायण के प्राकट्य का वर्णन ), ३.४१.८५( पितरों का प्रत्यक्ष, मानव, देवों तथा प्रेतों में वर्गीकरण ; देव पितरों का चन्द्रमा, सूर्य व अग्नि में वर्गीकरण ), ३.८६.५८( पितरों के पुण्य वाहन का उल्लेख ), ३.१०१.६९( पीत धेनु दान से पितृलोक की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.१३६.१( लक्ष्मी व्रत करने से अच्छोदा, पीवरी, यशोदा आदि पितरों की कन्याओं द्वारा पति व पुत्र प्राप्त करने का वर्णन ), ३.१५७.४( पितरों द्वारा रुचि प्रजापति को दारसंग्रह का उपदेश, रुचि द्वारा दारा प्राप्ति हेतु पितरों की स्तुति ), ३.१५७.४८( विभिन्न लोक वासियों द्वारा विभिन्न कामनाओं हेतु विभिन्न प्रकार से पितरों की पूजा का कथन ), ३.१५७.६६( चार वर्णों द्वारा पूजित पितरों के श्वेत आदि वर्ण ), ३.१५७.७०( चार दिशाओं के रक्षक पितरों के अग्निष्वात्त आदि नाम ), ३.१५७.७२( ३१ पितरों के नाम ), ३.१६२.१७( श्यामवर्ण मणियों में पितरों की स्थिति का उल्लेख ), ४.२५.६१( श्रीकृष्ण के पितरों के पुण्य संचय में वास का उल्लेख ), ४.९४.१( तपोलोक में निवास करने वाले अर्यमा, वैराज आदि पितरों के गणों तथा गणों का प्रतिनिधित्व करने वाले पितरों के नाम ), भरतनाट्य १३.२७(पितरों के शृङ्गवान् पर्वत पर वास का उल्लेख), शौ.अ. ५.२४.१४(यमः पितॄणां अधिपतिः), pitara
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