पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Paksha to Pitara ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Paksha / side, Pakshee / Pakshi / bird, Panchachuudaa, Panchajana, Panchanada, Panchamee / Panchami / 5th day etc. are given here. पक्ष नारद १.१२१.१०३( पक्षवर्धिनी द्वादशी तिथि का अर्थ व महत्त्व ), ब्रह्माण्ड १.२.३३.४( पक्षगंता : ८६ श्रुतर्षियों में से एक ), २.३.७.१२९( मणिवर यक्ष व देवजनी के पुत्रों में से एक ), वायु १.३९.६३( सुपक्ष पर्वत पर गन्धर्वों, किन्नरों, यक्षों, नागों व विद्याधरों के पुरों का उल्लेख ), ९९.१३/२.३७.१३( अनु के ३ पुत्रों में से एक ), योगवासिष्ठ १.१.७( मोक्ष के लिए कर्म व ज्ञान रूपी २ पक्षों का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.४०६.६६( श्रीवेंकटाद्रि द्वारा उडकर मेरु पर जाने का प्रयास, वराह द्वारा वेंकटाद्रि के प्रयास का वर्जन, पुन: सती सुवर्णरेखा द्वारा वेंकटाद्रि के पक्षों को जडीभूत करने का वृत्तान्त ) paksha
पक्षी अग्नि ३६३.७१( पक्षी के पर्यायवाची शब्दों का वर्ग ), गणेश १.८.३४( राजा सोमकान्त द्वारा भृगु के वचनों पर संशय करने पर उसके अङ्गों से पक्षी रूपी द्विजों का निकलकर उसके मांस को नोचना ), २.२०.३०( दैत्यों की माया से उद्भूत वृष्टि से बचाने के लिए गणेश द्वारा पक्षी रूप धारण करने का वृत्तान्त, अन्धक आदि दैत्यों का नाश), पद्म २.८५.२९( च्यवन मुनि द्वारा कुञ्जल शुक व उसके ४ पुत्रों के वार्तालाप का श्रवण ; शुक - पुत्रों द्वारा द्रष्ट आश्चर्यों का वर्णन ), ब्रह्म २.९४( द्विमुख चिच्चिक पक्षी के पवमान राजा से संवाद व उद्धार का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड ३.४.३२.११( पक्षिणी : षोडश पत्राब्ज पर स्थित १६ शक्तियों में से एक ), भविष्य १.१२४( सूर्य - द्वारपाल, गरुड का रूप ), भागवत ३.१०.२०( तिरश्ची संज्ञक अष्टम सर्ग के अन्तर्गत पशुओं व पक्षियों के विशिष्ट गुणों का कथन ), ११.११.६( शरीर रूपी वृक्ष पर रहने वाले पक्षी ), मत्स्य २३७( पक्षियों सम्बन्धी उत्पात ), वायु ९.३७( ब्रह्मा द्वारा स्ववय:? से पक्षियों की सृष्टि करने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर २१२०,स्कन्द १.२.१३.१८८( शतरुद्रिय प्रसंग में पक्षियों द्वारा व्योम लिङ्ग पूजा का उल्लेख ), योगवासिष्ठ १.२०.२५( आधि व्याधि की पक्षी से तुलना ), महाभारत शान्ति ११( पक्षी रूप धारी इन्द्र द्वारा तप की व्याख्या ), २६१.२०( तपोरत जाजलि मुनि की जटाओं में पक्षियों द्वारा नीड बनाने की कथा ), आश्वमेधिक ४७.१६( देह रूपी वृक्ष पर निवास करने वाले पक्षी - द्वय का कथन ), कथासरित् ५.३.२९( शक्तिदेव द्वारा पक्षी पर आरूढ होकर कनकपुरी जाने का वृत्तान्त ) द्र. पतत्रि pakshee/pakshi
पङ्क महाभारत शान्ति ३०१.६५( स्नेह पङ्क का रूप ),
पङ्कज भविष्य १.१३८.३७( ब्रह्मा की पङ्कज ध्वज का उल्लेख ), वामन ५७.६४( शक्र द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त २ गणों में से एक ), ९०.३६( वितल में विष्णु का पङ्कजानन नाम ), वायु ११२.४३/२.५०.५३( गया में पवित्र पङ्कज वन का उल्लेख )
पङ्किल लक्ष्मीनारायण २.२४२.१९( दाक्षी नामक सेविका व वामदेव से पङ्किल का जन्म, पङ्किल द्वारा ५ भगिनियों की सेवा से ५ कल्प आयु की प्राप्ति, पङ्किल द्वारा वामन की सेवा का वृत्तान्त ), pankila
पंक्ति अग्नि ११७.४७( पंक्तिपावन ब्राह्मण के लक्षण ), ब्रह्माण्ड २.३.१५.२८( श्राद्ध के संदर्भ में पंक्तिपावन तथा पंक्तिदूषक ब्राह्मणों के लक्षण ), वायु ७९.५३/२.१७.५४( श्राद्ध के संदर्भ में पंक्तिपावन तथा पंक्तिदूषक ब्राह्मणों के लक्षण ), ८३.५१/२.२१.२३( वही), लक्ष्मीनारायण १.३११.४१( पंक्ति द्वारा पुरुषोत्तम कृष्ण को सुगन्ध, पुष्पसार व धूप प्रस्तुत करने का उल्लेख ), pankti
पङ्गु गरुड १.२१७.३०( यावक हरण से पङ्गु योनि की प्राप्ति का उल्लेख ), स्कन्द १.३.१.६.६३( पङ्गु मुनि द्वारा शोण नदी के अनुग्रह से हस्त - पाद प्राप्त करने का उल्लेख ), ७.३.१७( पङ्गु तीर्थ का माहात्म्य : पङ्गु की पङ्गुता का निराकरण ), लक्ष्मीनारायण १.५५४.१६( अर्बुद पर्वत पर पङ्गु तीर्थ का माहात्म्य : पङ्गु विप्र द्वारा पङ्गु तीर्थ की स्थापना, चित्राङ्गद राजा को मोक्ष की प्राप्ति ), pangu
पञ्चक पद्म ४.२३( कार्तिक के अन्तिम पांच दिनों में विष्णु पञ्चक व्रत का माहात्म्य : दण्डकर नामक दुष्ट विप्र का उद्धार ), लक्ष्मीनारायण १.५३९.७३( पञ्च माहिष की अशुभता का उल्लेख ), कथासरित् ८.५.६३( पञ्चकाद्रि के महारथी दिण्डिमाली का संदर्भ ) panchaka
पञ्चकूट वायु ३९.५३( पञ्चकूट पर्वत पर दानवों के वास का उल्लेख ), ४२.३२( गङ्गा के पिशाचक पर्वत से पञ्चकूट पर्वत पर आने तथा पञ्चकूट से कैलास पर्वत को जाने का उल्लेख ) panchakoota/ panchakuuta/ panchakuta
पञ्चक्रोशी वराह १४७.४५( गोनिष्क्रमण क्षेत्र में वायव्य दिशा में पञ्चक्रोशी क्षेत्र का माहात्म्य ), शिव ४.२२.९( शिव द्वारा सृष्ट पञ्चक्रोशात्मक काशी नगरी की महिमा का वर्णन ),
पञ्चगव्य अग्नि ३४.९( पञ्चगव्य निर्माण हेतु चतुर्व्यूह मन्त्रों का प्रयोग ),
पञ्चान्तक नारद १.६६.१११( पञ्चान्तक की शक्ति सिद्धगौरी का उल्लेख ),
पञ्चचूडा ब्रह्माण्ड २.३.७.१०१( क्रतुस्थला अप्सरा का अपर नाम?, क्रतुस्थला व गन्धर्व रूप धारी यक्ष से रजतनाभ पुत्र की उत्पत्ति का वृत्तान्त ), वायु ९१.३२/२.२९.३२( पुरूरवा द्वारा कुरुक्षेत्र में ५ पञ्चचूडा अप्सराओं के साथ क्रीडा करती हुई उर्वशी के दर्शन आदि का कथन ), शिव ५.२३.५९, ५.२४.१( पञ्चचूडा द्वारा नारद को स्त्री स्वभाव का वर्णन ),स्कन्द ४.२.९७.१४६( पञ्चचूडा अप्सरा सर का संक्षिप्त माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.३७९.५०( पञ्चचूडा द्वारा नारद को स्त्री स्वभाव का वर्णन ), panchachoodaa/ panchachuudaa/ panchachuda
पञ्चजन गर्ग ५.९.२०( कृष्ण द्वारा मुष्टि से पञ्चजन दैत्य का वध, पञ्चजन के शरीर से उत्पन्न शङ्ख का कृष्ण द्वारा ग्रहण ), ५.१२.२२( अहंकार होने पर लक्ष्मी द्वारा पञ्चजन शङ्ख को दैत्य होने का शाप, कृष्ण द्वारा उद्धार ), पद्म ६.२०.४०( सगर के कपिल की क्रोधाग्नि से सुरक्षित बचे ४ पुत्रों में से एक ), ६.२१.६( सगर की एक पत्नी से उत्पन्न एकमात्र पुत्र पञ्चजन के राजा बनने का उल्लेख ; पञ्चजन के अंशुमान् , दिलीप आदि पुत्र - पौत्रों का उल्लेख ), ब्रह्म १.८६.२७( कृष्ण व बलराम द्वारा पञ्चजन दैत्य का वध करके गुरु - पुत्र की रक्षा तथा दैत्य की अस्थियों से पाञ्चजन्य शङ्ख बनाने का कथन ), ब्रह्माण्ड २.३.६३.१४७( कपिल की क्रोधाग्नि से सुरक्षित बचे सगर के ४ पुत्रों में से एक ), भागवत ३.३.२(कृष्ण द्वारा पञ्चजन के उदर से सान्दीपनी के पुत्र को लाने का उल्लेख), ६.४.५१( दक्ष द्वारा पञ्चजन प्रजापति की कन्या असिक्नी को पत्नी रूप में प्राप्त करना ), ६.१८.१४( संह्राद व कृति - पुत्र ), १०.४५.४०( शङ्खरूपधारी पञ्चजन दैत्य द्वारा सान्दीपनी मुनि के पुत्र का हरण, कृष्ण द्वारा वध ), विष्णु ५.२१.२८( कृष्ण द्वारा गुरु सान्दीपनी के पुत्र का हरण करने वाले पञ्चजन दैत्य को मारकर उसकी अस्थियों से शङ्ख बनाने का वृत्तान्त ), शिव २.२.१३.७( दक्ष द्वारा पञ्चजन - पुत्री असिक्नी का पत्नी रूप में ग्रहण ), २.२.१३.२५( दक्ष द्वारा पञ्चजनी से सबलाश्व पुत्रों की उत्पत्ति का उल्लेख ), ५.३८.५४( सगर के दग्ध होने से बचे ४/५? पुत्रों में से एक ), स्कन्द ७.४.१७.२८( दैत्य, द्वारका की पश्चिम दिशा की रक्षा करने वालों में से एक ), हरिवंश १.१५.१२( कपिल द्वारा भस्म सगर - पुत्रों में से अवशिष्ट एक, अंशुमान् – पिता, उपनाम असमञ्ज? ), २.३३( तिमि या मत्स्य रूपी दैत्य, सान्दीपनी के पुत्र का हरण, कृष्ण द्वारा वध ), panchajana पञ्चजनी भागवत ५.७.१( विश्वरूप - कन्या, भरत - पत्नी, तन्मात्रा रूपी पांच पुत्रों की प्राप्ति का कथन ), मत्स्य ५.४( दक्ष द्वारा पञ्चजनी /पाञ्चजनी पत्नी में हर्यश्व संज्ञक पुत्रों की उत्पत्ति का उल्लेख ) panchajanee
पञ्चतीर्थ ब्रह्माण्ड ३.४.४०.६०( शिव द्वारा ब्रह्महत्या से मुक्ति हेतु काञ्ची में पञ्चतीर्थ में स्नान आदि का कथन ), वायु १११.१/२.४९.१( गया में उत्तरमानस आदि ५ तीर्थों का माहात्म्य )
पञ्चदशी स्कन्द ५.३.५१.६( ज्येष्ठी पञ्चदशी : मन्वन्तरादि तिथियों में से एक ), लक्ष्मीनारायण ३.६४.१६( पञ्दशी तिथि के वेधा /ब्रह्मा की तिथि होने का उल्लेख ),
पञ्चनख वा.रामायण ४.१७.३९( वाली वानर के संदर्भ में पञ्चनख जीवों में भक्ष्य - अभक्ष्य का कथन )
पञ्चनद पद्म ३.२४.३३( पञ्चनद तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : पांच यज्ञों की प्राप्ति ), ३.२६.१४( कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत पञ्चनद तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ब्रह्माण्ड २.३.१३.५७( श्राद्ध के संदर्भ में पञ्चनद तीर्थ का उल्लेख ), वराह २१५.१०१( पञ्चनद तीर्थ में स्नान का संक्षिप्त माहात्म्य : अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), वायु ७७.५६( श्राद्ध के संदर्भ में पञ्चनद तीर्थ का उल्लेख ), विष्णु ५.३८.१२( द्वारका से इन्द्रप्रस्थ को जाते समय अर्जुन का पञ्चनद स्थान में वास और दस्युओं द्वारा अर्जुन को लूटने का वृत्तान्त ),स्कन्द २.४.४.४४( कार्तिक में काशी में पञ्चनद तीर्थ में स्नान व पिण्डदान के महत्त्व का कथन ), ४.१.३३.१५१( पञ्चनद तीर्थ : पञ्चब्रह्म का प्रतीक, पञ्चब्रह्मात्म संज्ञा ), ४.२.७९.१०२( पञ्चनद तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.८४.५०( पञ्चनद तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ७.४.१४.४६( द्वारका में पांच नदियों के आगमन से निर्मित पञ्चनद तीर्थ के माहात्म्य का कथन ), panchanada
पञ्चपट्टिक कथासरित् ९.२.९९( पञ्चपट्टिक आदि ४ वीरों द्वारा अनङ्गरति कन्या की प्राप्ति का वृत्तान्त ), ९.२.२४६( देवी के गण पञ्चमूल के शापवश पञ्चपट्टिक शूद्र बनने का कथन ), १२.१६.२२( कन्या अनङ्गरति हेतु पञ्चपट्टिक शूद्र, भाषाज्ञ वैश्य, खड्गधर क्षत्रिय व जीवदत्त विप्र में से पति वरण का प्रश्न ),
पञ्चपद भागवत ५.२०.२६( शाकद्वीप की ७ मुख्य नदियों में से एक ), वराह १४७.३६( गोनिष्क्रमण क्षेत्र में पञ्चपद तीर्थ का माहात्म्य )
पञ्चपिण्ड वराह १४९.३७( द्वारका में पञ्चपिण्ड ह्रद का माहात्म्य )
पञ्चभूत गरुड २.३२.३५(देह का ५ भूतों में विभाजन, ५ भूतों का ५-५ में विभाजन), मत्स्य १२३.४९(भूमि, आपः, अग्नि आदि के आपेक्षिक परिमाणों का कथन), महाभारत भीष्म ५.३( पृथिवी आदि ५ महाभूतों के गुणों का कथन ), द्र. महाभूतpanchabhoota/ panchabhuta
पञ्चम ब्रह्माण्ड १.२.३५.५१( कृत के २४ शिष्यों में से एक ), २.३.१५.३७( पञ्चम संकरात्मक आश्रम के चतुराश्रम से बाह्य तथा श्राद्ध के अयोग्य होने का कथन ), वायु २१.४७/१.२१.४३( २१वें पञ्चम नामक कल्प में ब्रह्मा के प्राण, अपान आदि पुत्रों का कथन, पञ्चम नाम का कारण ), ६१.४५( कृत के २४ शिष्यों में से एक ), ८६.३७/२.२४.३७( ७ स्वरों में से एक ) panchama
पञ्चमी अग्नि १८०( नाग पञ्चमी पूजा व्रत ), २९१( पञ्चमी को गज शान्ति कर्म ), गरुड १.११६.५( पञ्चमी को श्रीहरि की पूजा - चतुर्थ्यां च चतुर्व्यूहः पञ्चम्यामर्चितो हरिः ।कार्तिकेयो रविः षष्ठ्यां सप्तम्यां भास्करोऽर्थदः ॥ ), १.१२९.२७( नाग पञ्चमी व्रत ), २.४४.२४(पञ्चमी तिथियों को नाग पूजा विधि - प्रमादादिच्छया मर्त्यो न गच्छेत्सर्पसंमुखः । पक्षयोरुभयोर्नागं पञ्चमीषु प्रपूजयेत् ॥), गर्ग २.१९( वैशाख कृष्ण पञ्चमी : कृष्ण व गोपियों का रास - वैशाखमासि पंचम्यां जाते चन्द्रोदये शुभे । यमुनोपवने रेमे रासेश्वर्या मनोहरः ॥), ४.११.६( माघ शुक्ल पञ्चमी : कृष्ण द्वारा वृषभानु - कन्याओं के प्रेम की परीक्षा ), देवीभागवत ९.४.२२( माघ शुक्ल पञ्चमी : सरस्वती पूजा विधि ), नारद १.११४( पञ्चमी तिथि के व्रतों का वर्णन : मत्स्य जयन्ती, लक्ष्मी पूजा, पृथिवी व्रत, हयग्रीव व्रत, चान्द्र व्रत, शेषनाग पूजा, वायु परीक्षा, दिक्पाल पूजा, अन्न व्रत, ऋषि पूजा, ललिता व्रत, जया व्रत आदि ), २.५४.१०४( आषाढ शुक्ल पञ्चमी : पुरुषोत्तम क्षेत्र में प्रतिमाओं की रथ यात्रा ), पद्म ५.३६.३९( पौष शुक्ल पञ्चमी : राम द्वारा समुद्र तरण हेतु प्रायोपवेशन का उद्योग - समुद्रतरणार्थाय पंचम्यां मंत्र उद्यतः। प्रायोपवेशनं चक्रे रामो दिनचतुष्टयम् ॥ ), ५.३६.७४( वैशाख शुक्ल पञ्चमी : अयोध्या आगमन के समय राम का भरद्वाज से मिलन - पूर्णे चतुर्दशे वर्षे पंचम्यां माधवस्य तु। भरद्वाजाश्रमे रामः सगणः समुपाविशत्॥), ६.७७.४८( भाद्रपद शुक्ल पञ्चमी : ऋषि पञ्चमी नाम, विधि, देवशर्मा द्वारा माता - पिता का उद्धार - मासे भाद्रपदे शुक्ले जायते ऋषिपंचमी। रजसा विकृतं पापं नश्यते करणाद्यतः ॥), ब्रह्मवैवर्त २.४.२३( माघ शुक्ल पञ्चमी को सरस्वती पूजा, विद्यारम्भ आदि ), २.२७.१०१( माघ शुक्ल पञ्चमी को सरस्वती पूजा का संक्षिप्त माहात्म्य ), ब्रह्माण्ड ३.४.३६.२५( चिन्तामणि गृह के वायव्य में स्थित ४ देवियों में से एक ), भविष्य १.३२( नाग पञ्चमी : कद्रू द्वारा नागों को शाप की कथा ), ३.२.१.२८( ज्येष्ठ शुक्ल पञ्चमी को पद्मावती द्वारा वज्रमुकुट राजकुमार के दर्शन ), वराह २४.३२( नागों द्वारा पञ्चमी को ब्रह्मा से शाप व प्रसाद की प्राप्ति का वृत्तान्त ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२२१.३४( पञ्चमी तिथि को पूजनीय देवी - देवताओं के नाम तथा पूजा का फल ), स्कन्द २.२.२९.३१( माघ पञ्चमी को गुण्डिचा यात्रा - माघमासस्य पंचम्यामष्टम्यां चैत्रशुक्लके । एते कालाः प्रशस्ता हि गुंडिचाख्यमहोत्सवे ।।), ५.१.१०.६( चैत्र शुक्ल पञ्चमी को कुटुम्बेश्वर लिङ्ग की अर्चना का माहात्म्य : रुद्र लोक की प्राप्ति ), ५.१.५९.३३( ऋषि पञ्चमी व्रत का माहात्म्य : सप्तर्षि - पत्नियों द्वारा गया में अनुष्ठान से पतियों की पुन: प्राप्ति ), ५.३.२६.१०९( पञ्चमी को तिल दान से तिलोत्तमा समान रूप सम्पन्न होने का उल्लेख - पञ्चमीं तु ततः प्राप्य ब्राह्मणे तिलदा तु या ॥ सा भवेद्रूपसम्पन्ना यथा चैव तिलोत्तमा । ), ५.३.१६३.१( आश्विन् शुक्ल पञ्चमी को नाग तीर्थ में व्रत आदि के फल का कथन ), ५.३.१८२.७( माघ पञ्चमी को भृगु द्वारा भृगुकच्छ नगर की रचना कराने का उल्लेख ), ६.१३६.२४( आश्विन् पञ्चमी : दीर्घिका स्नान का माहात्म्य - कन्याराशिगते सूर्ये संप्राप्ते पंचमीदिने ॥ येऽत्र स्नानं करिष्यंति श्रद्धया सहिता नराः ॥ अपुत्रास्ते भविष्यंति सपुत्रा वंशवर्धनाः ॥ ), ६.१८३.२६( श्रावण कृष्ण पञ्चमी : नाग तीर्थ में स्नान, पूजा आदि ), ७.१.८३.३९( आश्विन् शुक्ल पञ्चमी : महिषासुर मर्दिनी दुर्गा की पूजा का आरम्भ ), ७.१.१०१.७०( माघ शुक्ल पञ्चमी : साम्बादित्य की पूजा - माघस्य शुक्लपक्षे तु पञ्चम्यां यादवोत्तम ॥ एकभक्तं सदा ख्यातं षष्ठ्यां नक्तमुदाहृतम् ॥ ), ७.१.१२९.५१( भाद्रपद ऋषि पञ्चमी : अक्षमालेश्वर लिङ्ग की पूजा - तत्रैव ऋषिपञ्चम्यां प्राप्ते भाद्रपदे शुभे ॥ अक्षमालेश्वरं पूज्य मुच्यते नारकाद्भयात् ॥ ), ७.१.१३२.८( श्री पञ्चमी को सिद्ध लक्ष्मी की पूजा - श्रीपञ्चम्यां नरो यस्तु पूजयेत्तां विधानतः ॥ गन्धपुष्पादिभिर्भक्त्या तस्यालक्ष्मीभयं कुतः ॥), ७.१.१३७.२(श्रावण शुक्ल पञ्चमी को कङ्काल भैरव की पूजा का माहात्म्य - श्रावणे शुक्लपञ्चम्यामष्टम्यामाश्विनस्य च ॥ यस्तं पूजयते भक्त्या बलिपुष्पादिभिः क्रमात् ॥ ), ७.३.३७.२१( श्रावण पञ्चमी को नाग उद्भव तीर्थ में स्नान आदि का माहात्म्य - नागह्रदं तु तत्तीर्थमेतद्भावि धरातले ॥ अत्र यः श्रावणे मासि पञ्चम्यां भक्तितत्परः ॥ करिष्यति नरः स्नानं तस्य नाहिकृतं भयम् ॥ ), लक्ष्मीनारायण १.३६.७८( रजस्वला दोष से मुक्ति हेतु भाद्रपद शुक्ल पञ्चमी को ऋषि पञ्चमी व्रत ), १.२७०( वर्ष भर की पञ्चमी तिथियों में करणीय व्रतों का वर्णन ), १.३१२( वसुदान नृप व राध्यासा राज्ञी द्वारा तुलसीसेवनव्रत व पुरुषोत्तम मास पञ्चमी व्रत से हिरण्याधिपति बनने का वर्णन ), २.१८४.९९( भाद्रपद कृष्ण पञ्चमी को श्रीकृष्ण द्वारा राजा अल्पकेतु की जीवनी नगरी में आगमन ), ३.६४.६( पञ्चमी तिथि को चन्द्रमा की अर्चना का निर्देश - चन्द्रस्य पञ्चमी प्रोक्ता पूजनीयः शशी ह्यहम् ।। गोवृषवाटिकादाता भवामि चामृतान्नदः ।। ), ३.१०३.४(पञ्चम्यां तु तथा दत्वा लभते सद्गुणान् सुतान् ।। ), ३.१२२.६८( फाल्गुन कृष्ण पञ्चमी को पुत्री व्रत की विधि व महत्त्व ), ४.७१.१( तिथियों में पञ्चमी को प्रसाद मिश्रित उच्छिष्ट के भक्षण से नकुल द्वारा देवत्व प्राप्ति का कथन ),panchamee/ panchami
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