पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Dvesha to Narmadaa ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Dhenu, Dhenuka, Dhaumya, Dhyaana/meditation, Dhruva etc. are given here. Esoteric aspect of story of Dhruva धेनुक गर्ग २.११ (धेनुक असुर का तालवन में वास, गोपों द्वारा ताडन, बलराम द्वारा उद्धार), देवीभागवत ४.२२.४४ (खर का अंश), ब्रह्म १.७८.२ (कृष्ण व बलराम द्वारा तालवन में खर रूप धारी धेनुकासुर के वध का वृत्तान्त), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२२ (धेनुक गर्दभ का कृष्ण द्वारा वध, पूर्व जन्म में साहसिक नामक बलि - पुत्र का धेनुक गर्दभ बनना, कृष्ण की स्तुति), भागवत १०.१५.२२ (धेनुक द्वारा तालवन में फलों पर अधिकार , बलराम द्वारा उद्धार), वायु ६८.१५/२.७.१५(दनु व कश्यप के मनुष्यधर्मा पुत्रों में से एक), ११२.५६/२.५०.६८(धेनुकारण्य : गया में पितरों को पिण्ड दान हेतु धेनुकारण्य का माहात्म्य), विष्णु ५.८ (तालवन में खराकृति धेनुकासुर के उपद्रव व कृष्ण द्वारा वध का वृत्तान्त), हरिवंश १.५४.७५ (खर दैत्य का रूप, तालवन में विचरण), २.१३ (तालवन में गर्दभ, बलराम द्वारा वध ) dhenuka
धेनुका ब्रह्माण्ड १.२.११.२०(कीर्तिमान - पत्नी, चरिष्णु व धृतिमान् की माता), वायु २८.१७(कीर्तिमान - पत्नी, वरिष्ठ व धृतिमान् की माता), ४९.९४(शाक द्वीप की ७ नदियों में से एक, अन्य नाम मृता), विष्णु २.४.६५(वही)
धैर्य ब्रह्मवैवर्त्त १.९.१०(चन्द्रमा व धृति - पुत्र), हरिवंश ३.७१.५२ (वामन के विराट रूप में धैर्य के महार्णव होने का उल्लेख), महाभारत वन ३१३.९५ (यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में धैर्य के इन्द्रिय निग्रह होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.३०.४५ (धैर्य के ३ साधनों उद्यम, पुत्र, आरोग्य का उल्लेख), कथासरित् १२.५.२७८ (धैर्य पारमिता का दृष्टान्त : ब्राह्मण कुमार द्वारा तृण के पक्षों से उडने का प्रयत्न करते रहने पर स्कन्द का अनुचर बनना ) dhairya
धौम्य गर्ग ७.२०.३२ (कौरव - यादव युद्ध के प्रसंग में धौम्य का प्रद्युम्न - सेनानी अरुण से युद्ध), देवीभागवत ३.१६.२९(जयद्रथ द्वारा द्रौपदी के विषय में धौम्य ऋषि से पृच्छा), ब्रह्माण्ड १.२.३३.१५(मध्यमाध्वर्युओं में से एक), शिव ७.२.१.१० (धौम्य - अग्रज उपमन्यु का संदर्भ ) dhaumya
ध्यान अग्नि १६५ (ध्यान योग का वर्णन), ३७४ (ध्यान योग का वर्णन), गरुड १.१४ (ध्यान योग का वर्णन), १.१६ (विष्णु का ध्यान), १.४४ (ब्रह्म ध्यान का वर्णन), १.९१+ (हरि के ध्यान का स्वरूप), १.२२७ (ध्यान योग का कथन), नारद १.४४.८३ (ध्यान योग का वर्णन, भरद्वाज - भृगु संवाद प्रसंग), पद्म २.७.३६+ (ध्यान द्वारा आत्मा को पञ्च तत्त्वों से मैत्री न करने का सत्परामर्श), ५.८४.५८ (श्रीहरि को प्रिय ८ पुष्पों में से एक), ५.१०९.५४ (ध्यान के शिव का द्रविणाध्यक्ष व सत्य के सेनापति होने आदि का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.३४.६५ (याज्ञवल्क्य - शाकल्य वाद- विवाद में अध्यात्म की मुख्य गति के रूप में सांख्य, योग अथवा ध्यान मार्ग का प्रश्न), भविष्य ३.४.७.२६ (ध्यान से सारूप्य मोक्ष प्राप्ति), भागवत २.१.१५ (मृत्युकालीन ध्यान, धारणा आदि की विधि), ११.११.४४(ह्रदय के खे में ध्यान द्वारा ईश्वर की उपासना का निर्देश), ११.१४.३२ (ह्रदय कमल पर ध्यान : कृष्ण द्वारा उद्धव हेतु स्वस्वरूप के ध्यान का कथन ), लिङ्ग १.८.९० (शरीर में ध्यान के स्थान व शिव नाम), विष्णुधर्मोत्तर ३.२८३ (ध्यान की विधि का वर्णन), शिव ७.२.२२.४४ (कर्म, तप आदि ५ यज्ञों में ध्यान व ज्ञान यज्ञ की श्रेष्ठता का कथन), ७.२.३९.१४(ध्यान शब्द की निरुक्ति, ध्यान की प्रशंसा), स्कन्द २.५.१६ (कृष्ण के बाल स्वरूप का ध्यान), ४.१.४१.११९(ध्यान के सगुण व निर्गुण प्रकार तथा ध्यान की प्रशंसा), ५.३.५१.३५(८ आध्यात्मिक पुष्पों में ध्यान पुष्प का उल्लेख), ६.५१.६४( त्रेतायुग में ध्यान की श्रेष्ठता का उल्लेख), ७.१.१०५.४७ (एकादश कल्प का नाम), योगवासिष्ठ ५.५६(ध्यान विचार नामक सर्ग में अन्तर्मुखी साधक के व्यवहार का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.४२५.१२(ध्यान के ज्ञान से श्रेष्ठ व भावना से हीन होने का उल्लेख), १.४८९.७१ (त्रेता युग में ध्यान की श्रेष्ठता, सत्ययुग में तप की श्रेष्ठता आदि का उल्लेख), २.२४५.८० (ध्यान द्वारा तेज का और भक्ति द्वारा ध्यान का प्रवर्धन होने का उल्लेख), ३.९.६३ (यम, नियम आदि वत्सरों में से प्रध्यान नामक वत्सर में तुङ्गभद्रा योगिनी द्वारा राक्षसों से मुक्ति हेतु सूर्य की गति के रोधन का वर्णन), ३.१८९.२ (भगवान् की चिन्तामणि मूर्ति के ध्यान के महत्त्व का वर्णन), कथासरित् १२.५.२८४ (ध्यान पारमिता के दृष्टान्त के अन्तर्गत वणिक् - पुत्र द्वारा राजकन्या के चित्र से सजीव जैसा व्यवहार, प्रबोधित किए जाने पर वणिक् - पुत्र द्वारा अर्हता प्राप्ति ) dhyaana
ध्यानकाष्ठ स्कन्द २.१.१३ (ऋक्ष रूप धारी ध्यानकाष्ठ मुनि को राजा द्वारा वृक्ष से गिराये जाने की चेष्टा पर ध्यानकाष्ठ द्वारा राजा को शाप, सिंह के पूर्व जन्म का वृत्तान्त), ३.१.३२ (धर्मगुप्त - ऋक्ष - सिंह की कथा ) dhyaanakaashtha
ध्रांधरा लक्ष्मीनारायण २.७३.३५(ध्रांधरा नदी तट पर चोरों का वास, श्रीहरि द्वारा सुधना भक्त के धन की चोरों से रक्षा का वृत्तान्त )
ध्रुव अग्नि १८.३५ (८ वसुओं में से एक, काल - पिता, इन्दु व नक्षत्र - पुत्र ?), गरुड १.६ (ध्रुव वंश का वर्णन), गर्ग १.५.२३ (ध्रुव नामक वसु के देवक रूप में अवतरण का उल्लेख), देवीभागवत ८.१७ (ध्रुव नक्षत्र की महिमा), पद्म १.४० (साध्य नामक देवगण में से एक), ३.३१.१८३ (शाकुनि ऋषि के ९ पुत्रों में से एक), ६.६.३२(श्रद्धाहीन होकर एकादशी व्रत करने पर शोभन को अध्रुव लोक की प्राप्ति, शोभन - पत्नी चन्द्रभागा द्वारा एकादशी व्रतों के पुण्यदान से लोक का ध्रुव होना), ब्रह्म १.२२.४(ध्रुव की शिशुमार की पुच्छ में स्थिति, तारा रूपी शिशुमार का आधार जनार्दन, ध्रुव का शिशुमार व भानु का ध्रुव होने का कथन), ब्रह्माण्ड १.२.१४.३९(प्लक्ष द्वीपाधिपति मेधातिथि के ७ पुत्रों में से एक), १.२.१९.१६ (वैभ्राज पर्वत के ध्रुव वर्ष का उल्लेख), १.२.२२.६ (शिशुमार की पुच्छ में स्थित ध्रुव के महत्त्व का वर्णन), १.२.३०.३९(यज्ञ की अपेक्षा तप द्वारा स्वर्ग जाने वाले राजर्षियों में से एक), १.२.३६.५७(स्वारोचिष मन्वन्तर में वैकुण्ठ देवताओं में से एक), १.२.३६.७५(लेख वर्ग के देवगण में से एक), २.३.३.२०(धर्म व वसु के ८ वसु पुत्रों में से एक, काल - पिता), २.३.७.२२०(अङ्गद - पुत्र), २.३.६६.६८ (विश्वामित्र के पुत्रों में से एक), ३.४.१.१९(२० संख्याओं वाले सुखदेव गण में से एक, मारीच कश्यप - पुत्र), भविष्य ३.४.१७ (ख मण्डल में स्थित होने पर ध्रुव का दिक्पति बनना, दिशाओं से ग्रहों, दिग्गजों की उत्पत्ति ; पूर्व जन्म में माधव ब्राह्मण, कलियुग में नरश्री रूप में अवतरण), ३.४.१७.४९(वासुदेवी व ध्रुव से केतु ग्रह के जन्म का उल्लेख), ३.४.१७.५१(ध्रुव व नभो दिशा से ८ दिग्गजों के जन्म का कथन), ३.४.१७.५७(ऊर्ध्व व अधो ध्रुव की सत् व तमोगुणी प्रकृतियों का कथन ; ध्रुव के जन्मान्तरों का वृत्तान्त), ३.४.२०.१८ (अपरा प्रकृति के देवताओं में से एक), ३.४.२५.३२ (ब्रह्माण्ड मन से ध्रुव तथा ध्रुव से उत्तम मन्वन्तर की उत्पत्ति का उल्लेख), ४.६९.६१(सुनीति/शुघ्नी व उत्तानपाद - पुत्र, सुरुचि द्वारा ध्रुव का वध , व्रत से ध्रुव का पुनर्जीवन), भागवत ४.८ (उत्तानपाद व सुनीति - पुत्र, वन गमन, नारद द्वारा ध्यान विधि की शिक्षा), ४.९ (ध्रुव द्वारा विष्णु से वर प्राप्ति, गृह आगमन), ४.१० (उत्तम की मृत्यु पर ध्रुव का यक्षों से युद्ध, स्वायम्भुव मनु द्वारा युद्ध की समाप्ति), ४.१२ (ध्रुव द्वारा कुबेर से वर की प्राप्ति, विष्णुलोक प्राप्ति, पुत्र उत्कल को राज्य प्रदान करना), ६.६.११(धर्म व वसु के ८ वसु पुत्रों में से एक, धरणी - पति, अनेक पुरों की उत्पत्ति), ९.२०.६(रन्तिभार के ३ पुत्रों में से एक, पूरु वंश), ९.२४.४६(वसुदेव व रोहिणी के पुत्रों में से एक), मत्स्य ४.३८ (उत्तानपाद व सूनृति - पुत्र, धन्या - पति, शिष्ट - पिता), १२२.२५(विभ्राज वर्ष का अपर नाम), १२७(सारे तारापिण्डों का शिशुमार की मेढ्र में स्थित ध्रुव के परित: गति करने का कथन ; केवल ध्रुव द्वारा ही ज्योतिष चक्र का अधोमुखी कर्षण करने का कथन), १५३.१९(११ रुद्रों में से एक), १७१.४३ (धर्म व साध्या के साध्य नामक पुत्रों में से एक), १७१.४६(धर्म व सुदेवी के ८ वसु पुत्रों में से एक), लिङ्ग १.५४.६७(ध्रुव द्वारा अधिष्ठित् वायु द्वारा वृष्टि का संहरण करने का कथन), १.५५.६(सूर्य के रथ में चक्र के अक्ष में तथा अक्ष के ध्रुव में निबद्ध होने का कथन ; ध्रुव द्वारा वातरश्मियों द्वारा ज्योतियों को प्रेरित करने का उल्लेख), १.६२ (पिता द्वारा तिरस्कार करने पर ध्रुव के तप की कथा), वराह १८०.१ (ध्रुव तीर्थ में श्राद्ध से प्रभावती की दासी के मशक वेष्टित पितरों की मुक्ति), वामन ९०.२१(त्रितय में विष्णु की ध्रुव नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख), वायु ४९.१४(वैभ्राज वर्ष का अपर नाम), ५१.६ (ध्रुव की महिमा : सम्पूर्ण जगत का नियन्ता), ६६.१९/२.५.२० (८ वसुओं में से एक, भव/काल के पिता), ८६.५६/२.२४.५६(उत्तरमन्द्र ध्वनि का अधिष्ठाता देवता), ९१.९६/२.२९.९२(विश्वामित्र के पुत्रों में से एक), ९९.१२९/२.३७.१२५(रन्तिनार व सरस्वती के ३ पुत्रों में से एक, पूरु वंश), १००.१९/२.३८.१९( २० संख्याओं वाले मुख्य देव गण में से एक, मारीच कश्यप - पुत्र), १०१.१४४/२.३९.१४४(ध्रुव से ऊपर ध्रुवाग्र का कथन), विष्णु १.११ (उत्तानपाद व सुनीति - पुत्र, ध्रुव के वन गमन की कथा), १.१२ (इन्द्रादि द्वारा ध्रुव का तप भङ्ग करने का यत्न, ध्रुव को विष्णु से ध्रुव पद प्राप्ति), १.१३.१ (ध्रुव वंश का वर्णन), १.१५.११०(ध्रुव वसु के पुत्र काल का उल्लेख), २.४.४ , ४.१९.४(अन्तिनार के ३ पुत्रों में से एक, पूरु वंश), विष्णुधर्मोत्तर १.१०६ (ध्रुव शरीर में देवों आदि का न्यास), ३.७३.६ (ध्रुव की मूर्ति का रूप), स्कन्द ४.१.१९ (माता - पिता से तिरस्कृत होकर ध्रुव का वन में तप, सप्तर्षियों से मन्त्र दीक्षा की प्राप्ति), ४.१.२० (इन्द्र द्वारा ध्रुव के तप में विघ्न, ध्रुव द्वारा विष्णु की स्तुति), ४.१.४२.१४ (ध्रुव का नासाग्र में स्थान), हरिवंश ३.५३.७ (ध्रुव वसु का बल असुर से युद्ध), ३.५४.५८(देवासुर सङ्ग्राम में वल असुर द्वारा ध्रुव वसु पर गदा द्वारा प्रहार), ३.५४.७२(ध्रुव वसु का बलाक असुर से युद्ध व पराजय), योगवासिष्ठ ६.१.८१.११५टीका (सोम की अवशिष्ट कला की ध्रुवा संज्ञा का कथन), लक्ष्मीनारायण १.३३१.२० (ध्रुव - पौत्र केदार नृप की कथा : वृन्दा कन्या की यज्ञ कुण्ड से उत्पत्ति), १.३५४.३७ (मथुरा में ध्रुव तीर्थ में पितरों के श्राद्ध का महत्त्व : राजा की दासी द्वारा श्राद्ध की कथा), २.४४.१८ (राजा रणङ्गम द्वारा दक्षिण ध्रुव व उसके विचित्र निवासियों के दर्शन का वर्णन), ३.७.३१(आसन नामक वत्सर में राजा चलदेव द्वारा अचला भक्ति तथा वंश की अचलता का वर मांगना, विष्णु का दृढध्रुवा नाम से राजा के पुत्र रूप में जन्म लेना), ३.१८४.२ (ध्रुवालय नामक नगर में नास्तिक भावशूर नृप व वृक्णदेव नामक भक्त भृत्य की कथा), ४.२.१० (राजा बदर के ध्रुव संज्ञक विमान का कथन), ४.९६.१(श्रीहरि के ध्रुव लोक में भ्रमण का वृत्तान्त ), द्र. निध्रुव, नैध्रुव dhruva |