पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Dvesha to Narmadaa ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
|
|
Puraanic contexts of words like Dharmadhwaja, Dharmaraaja, Dharmasaavarni, Dharmaangada, Dharmaaranya, Dhaataki, Dhaataa, Dhaaataa - Vidhaataa etc. are given here. धर्मध्वज देवीभागवत ९.६.४७ (सपत्ना कलह के कारण लक्ष्मी के धर्मध्वज की कन्या तुलसी के रूप में जन्म लेकर शङ्खचूड असुर की पत्नी बनने की कथा), ९.१५.४८ (रथध्वज - पुत्र, कुशध्वज - भ्राता), ९.१७.२ (धर्मध्वज - पत्नी माधवी द्वारा कन्या तुलसी को जन्म देना, तुलसी - शंखचूड की कथा), नारद १.४६.३७ (धर्मध्वज जनक के पौत्रों केशिध्वज व खाण्डिक्य के योग सम्बन्धी संवाद का वृत्तान्त), ब्रह्मवैवर्त्त २.६.४५ (सपत्ना कलह के कारण लक्ष्मी का धर्मध्वज की कन्या के रूप में जन्म लेकर शङ्खचूड असुर की पत्नी तुलसी बनने का उल्लेख), २.१५.१ (माधवी - पति, पद्मा के अंश तुलसी नामक कन्या को जन्म देना, तुलसी व शङ्खचूड की कथा), भविष्य ३.२.१३.२(धर्मध्वज वैश्य की कन्या का शूलारोपण के लिए उन्मुख चोर पर आसक्त होना, धर्मध्वज द्वारा राजा से धन के बदले चोर का जीवन दान मांगना आदि), भागवत ९.१३.१९(कुशध्वज - पुत्र, कृतध्वज व मितध्वज - पिता, जनक वंश), विष्णु ६.६.७(कुशध्वज - पुत्र, कृतध्वज व मितध्वज - पिता, जनक उपाधि), कथासरित् १२.१८.३ (राजा धर्मध्वज की तीन रानियों के अभिजात्य / सुकुमारिता की कथा ) dharmadhwaja
धर्मनेत्र ब्रह्माण्ड २.३.६९.४(हैहय - पुत्र, कुन्ति - पिता, यदु वंश), २.३.७४.११७(सुव्रत - पुत्र, बृहद्रथ वंश), मत्स्य ४३.३(हैहय - पुत्र, कुन्ति - पिता, यदु वंश), वायु ९९.३०३/२.३७.२९७(बृहद्रथ वंश के कलियुगी राजाओं में से एक, भुव?- पुत्र), विष्णु ४.११.८(धर्म - पुत्र, कुन्ति - पिता, यदु वंश )
धर्ममूर्ति पद्म १.२१.१ (लीलावती वेश्या के भृत्य स्वर्णकार व उसकी पत्नी के जन्मान्तर में राजा धर्ममूर्ति व उसकी पत्नी भानुमती बनने की कथा), भविष्य ४.२०४ (भानुमती - पति धर्ममूर्ति के पूर्व जन्म का वृत्तान्त, पूर्व जन्म में स्वर्णकार, लवणाचल दान से राजा बनना), मत्स्य ९२ (राजा, भानुमती - पति, पूर्व जन्म में शौण्ड स्वर्णकार, स्वर्णमयी देव प्रतिमा निर्माण से राजा), स्कन्द ५.२.२२ (भानुमती - पति, पूर्व जन्म में शूद्र नृप, पुन: मर्कट योनि में अनायास शिव पूजा से मुक्ति ) dharmamoorti/ dharmamurti
धर्मरथ पद्म ६.२०.४० (सगर के अवशिष्ट ४ पुत्रों में से एक), ब्रह्माण्ड २.३.६३.१४७ (सगर के नष्ट होने से बचे ४ पुत्रों में से एक), २.३.७४.१०३ (दिविरथ - पुत्र, चित्ररथ - पिता, बलि/मरुत्त वंश), भागवत ९.२३.७(दिविरथ - पुत्र, चित्ररथ - पिता, अनु वंश), मत्स्य ४८.९२(दिविरथ - पुत्र, चित्ररथ - पिता, इन्द्र के साथ सोमपान का उल्लेख), वायु ९८.१०१/२.३७.१०१ (दिविरथ - पुत्र, चित्ररथ - पिता , बलि वंश, धर्मरथ द्वारा इन्द्र के साथ सोमपान करने का उल्लेख), विष्णु ४.१८.१५(दिविरथ - पुत्र, चित्ररथ - पिता, अनु वंश ) dharmaratha
धर्मराज देवीभागवत ९.३०(धर्मराज द्वारा सावित्री को विभिन्न दानों के फलों का वर्णन), ९.३१(सावित्री द्वारा यम अष्टक द्वारा धर्मराज की स्तुति), ९.३२(धर्मराज द्वारा सावित्री को नरक के ८६ कुण्डों के नामों का कथन), ९.३३(धर्मराज द्वारा विभिन्न नरक कुण्डों की प्राप्ति के हेतु कर्मों का वर्णन), ९.३४.१(यम धर्म द्वारा विभिन्न दुष्कर्मों के फलस्वरूप प्राप्त योनियों का वर्णन), ९.३४.२९(धर्मराज द्वारा ब्रह्महत्या, गोहत्या आदि पापों के प्रापक कर्मों का वर्णन), ९.३५(धर्मराज द्वारा विभिन्न नरकों व क्षुद्र योनियों की प्राप्ति के हेतु कर्मों का वर्णन), ९.३६(सावित्री द्वारा धर्मराज से नरक कुण्डों के दर्शन से बचाने वाले कर्मों के विषय में पृच्छा), ९.३७(धर्मराज द्वारा नरक के कुण्डों के दैर्घ्य परिमाण व स्वरूपों का वर्णन), ९.३८(सावित्री द्वारा धर्मराज से देवभक्ति दान की मांग), नारद १.१२.३६ - १.१३ (धर्मराज द्वारा भगीरथ को पुण्य कर्मों के विपाक का वर्णन), १.१४ - १.१५ (धर्मराज द्वारा जीव के दुष्कर्मों के विपाक और उनके प्रायश्चित्तों का वर्णन), १.११९.२ (धर्मराज की दशमी को पूजा), १.१२३.४३ (धर्मराज की आश्विन शुक्ल चतुर्दशी को पूजा), १.१२४.४ (धर्मराज पूर्णिमा व्रत विधि), ब्रह्म २.९३.३० (धर्मराज से पृष्ठ की रक्षा की प्रार्थना), भविष्य ३.२.१० (गुणेश्वर राजा का पुत्र, तीन सुकुमारी पत्नियों की कथा), मत्स्य १०८.२७(यमुना के दक्षिण तट पर धर्मराज के पश्चिम् में नरक तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), स्कन्द ६.१३८+ (धर्मराजेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : यम द्वारा माण्डव्य के शाप से मुक्ति हेतु स्थापना, उपाध्याय द्वारा पुत्र मरण पर अपूज्यत्व का शाप), वा.रामायण ७.१८.२६ (मरुत्त के यज्ञ में रावण के आगमन पर धर्मराज का वायस के शरीर में अदृश्य होना, धर्मराज द्वारा वायस को रोगरहित होने आदि का वरदान ), महाभारत अनुशासन १५०.३४ (धर्मराज के दक्षिण दिशा में स्थित सात ऋत्विजों उन्मुच आदि के नाम ) dharmaraaja
धर्मव्रता अग्नि ११४.१० (मरीचि - पत्नी, शिला बनने की कथा), वायु १०७+ (धर्म व विश्वरूपा - कन्या, धर्मव्रता द्वारा तप, मरीचि से विवाह, ब्रह्मा की सेवा, मरीचि के शाप से शिला बनना, शिला का गयासुर के ऊपर स्थित होना )
धर्मशर्मा पद्म २.२ (शिवशर्मा - पुत्र, पिता द्वारा पितृभक्ति की परीक्षा), २.१२२.१४ (विद्याधर - पुत्र, द्विज योगी से ज्ञान प्राप्त करना , शुक पक्षी के शोक में मृत्यु पर कुञ्जल शुक बनना )
धर्मसावर्णि भविष्य ३.४.२५.४०(ब्रह्माण्ड पद से उत्पन्न मन्द द्वारा धर्मसावर्णि मन्वन्तर की सृष्टि का उल्लेख), भागवत ८.१३.२४(११वें मनु का नाम, सत्य, धर्म आदि १० पुत्रों का उल्लेख), विष्णु ३.२.२९(११वें मनु का नाम, सत्य, धर्म आदि १० पुत्रों का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.१५६.४७ (आनन्दवर्णी/ देवानीक कृषक के धर्मसावर्णि मनु बनने का वर्णन ) dharmasaavarni
धर्महरि स्कन्द २.८.४.१ (अयोध्या में धर्महरि स्थान का माहात्म्य : धर्म द्वारा श्रीहरि का साक्षात्कार, पापों का प्रायश्चित्त आदि )
धर्माङ्गद नारद २.७.६९ (ब्रह्मा द्वारा मोहिनी को शिक्षा के संदर्भ में धर्माङ्गद - पिता रुक्माङ्गद से पुत्र का शिर काट कर मोहिनी को देने की मांग करने का निर्देश), २.९ (रुक्माङ्गद द्वारा पुत्र धर्माङ्गद को राज्य सौंपकर वनगमन), २.१०.५७ (रुक्माङ्गद व सन्ध्यावली - पुत्र, जन्मान्तर में सुव्रत), २.१६.३४ (धर्माङ्गद / वृषाङ्गद द्वारा सपत्ना माता मोहिनी को दैत्यों से रण में जीते गए रत्न भेंट करना), २.२० (धर्माङ्गद द्वारा दिग्विजय में प्राप्त उपहारों को माता मोहिनी को भेंट करना , धर्माङ्गद द्वारा नागकन्या की प्राप्ति), २.३२.३ (राजा रुक्माङ्गद द्वारा एकादशी को भोजन न करने के बदले मोहिनी द्वारा धर्माङ्गद के शिर की मांग), २.३४.१६ (धर्माङ्गद / वृषाङ्गद का सिर काटने को उद्धत रुक्माङ्गद का विष्णु द्वारा वर्जन ) पद्म २.२२ (रुक्माङ्गद व सन्ध्यावली - पुत्र, जन्मान्तर में सुव्रत बनना), लक्ष्मीनारायण १.२८७ (रुक्माङ्गद द्वारा स्वपुत्र को राज्य देकर अरण्य में तप के लिए प्रस्थान), १.२९०.६७ (मोहिनी द्वारा राजा रुक्माङ्गद से धर्माङ्गद के शिर को मांगना ), १.२९१.१२ (रुक्माङ्गद द्वारा धर्माङ्गद के शिर: छेदन का वृत्तान्त ) dharmaangada
धर्मारण्य स्कन्द ३.२.१+ (धर्मारण्य का माहात्म्य), ३.२.४(धर्मारण्य में क्षेत्र स्थापन नामक अध्याय), ३.२.३०+ (राम द्वारा धर्मारण्य का जीर्णोद्धार), ५.३.४४.१८ (नर्मदा के दक्षिण तटवर्ती शूलभेद तीर्थ के महत्त्व की धर्मारण्य के कूप तीर्थ से तुलना), लक्ष्मीनारायण १.४३९ (धर्मारण्य में तपोरत धर्म के तप में विघ्न हेतु वर्धिनी अप्सरा का आगमन, धर्म द्वारा वर्धिनी को पातिव्रत्य धर्म का उपदेश), १.४४० (धर्मारण्य में विप्रों का वास, जृम्भक, विद्युज्जिह्व आदि राक्षसों का उपद्रव, मातृकाओं द्वारा प्रतिरोध आदि ; धर्म द्वारा धर्मारण्य में यज्ञ का अनुष्ठान), २.२६४ (मृग व मृगघाती शूद्र की गोदावरी तट पर मृत्यु से धर्मारण्य में क्रमश: शृङ्गधर व शार्ङ्गधर नाम से जन्म आदि का वृत्तान्त), कथासरित् १२.२६.८७ (राजा चन्द्रप्रभ द्वारा धर्मारण्य में गयाकूप में पितर श्राद्ध करने पर उत्पन्न आश्चर्य का वर्णन ) dharmaaranya
धर्मिष्ठा वामन ९०.२४/९१.२४ (कोशकार - पत्नी धर्मिष्ठा के जडबुद्धि पुत्र निशाकर का वृत्तान्त, निशाकर द्वारा धर्मिष्ठा को अपने पूर्व जन्मों का वर्णन )
धवल पद्म ६.१५१(धवलेश्वर लिङ्ग की इन्द्र ग्राम में स्थिति, युगान्तरों में धवलेश्वर के नाम, नन्दी वैश्य व किरात द्वारा धवलेश्वर की पूजा से द्वारपाल बनने की कथा), लक्ष्मीनारायण १.४४१.९६ (वृक्ष रूपी कृष्ण के दर्शन के लिए नन्दी के धवल द्रुम बनने का उल्लेख), ३.१८७.१ (धवलपुर में मृतादन चर्मकार भक्त की कथा), कथासरित् ८.५.६४ (भूमितुण्डक - शासक, श्रुतशर्मा - सेनानी, सूर्यप्रभ - सेनानी प्रभास से युद्ध व मृत्यु), ९.६.१४० (धवलपुर के वणिक् - पुत्र चक्र का वृत्तान्त), १०.५.२२० (धवलमुख नामक राजसेवक द्वारा अपने दो मित्रों की परीक्षा का वृत्तान्त), १२.१३.७ (धवल नामक रजक व उसके साले द्वारा अपने सिर देवी को अर्पित करना, पत्नी द्वारा सिरों को विपरीत कबन्धों से जोडकर जीवित करने पर पति व भ्राता का प्रश्न), १८.१.१०३(सिंहल के नृप द्वारा स्वकन्या को धवलसेन दूत के साथ राजा विक्रमादित्य को भेजना ) dhawala/dhavala
धातकी कूर्म १.४०.१५ (सवन - पुत्र, धातकि खण्ड का अधिपति), देवीभागवत ८.१३.३४ (वीतिहोत्र - पुत्र, पुष्कर द्वीप का शासक), ब्रह्माण्ड १.२.१९.११७ (मानसोत्तर पर्वत के २ वर्षों में से एक), भागवत ५.२०.३१(प्रियव्रत - पुत्र वीतिहोत्र द्वारा स्वपुत्रों रमणक व धातकि को वर्षपति नियुक्त करने का उल्लेख), मत्स्य १२३.५ (हव्य - पुत्र, कुमुद - भ्राता, गोमेदक द्वीप में सौमन वर्ष का धातकी खण्ड नाम), वायु ४९.११३ (धातकी खण्ड की पुष्कर द्वीप में स्थिति व महिमा ) dhaatakee/ dhaataki/ dhataki
धाता गर्ग १.५.२९ (धाता का बाह्लीक रूप में अवतरण), ब्रह्माण्ड २.३.३.६७ (वैवस्वत मन्वन्तर के १२ आदित्यों में से एक), २.३.५.९४(धातु : मरुतों के तीसरे गण का एक मरुत्), भविष्य २.१.१७.७(तुलापुरुष दान में अग्नि का नाम), ३.४.७.५ (चैत्र मास के सूर्य के माहात्म्य के संदर्भ में धातृशर्मा द्विज का वृत्तान्त : परिवार की समृद्धि हेतु सूर्य की आराधना, मोक्ष, कलियुग में सूर्य - अवतार ईश्वर नाम से जन्म ), ३.४.१८.१६ (संज्ञा विवाह प्रकरण में धाता का पाञ्चजन्य से युद्ध), भागवत ६.१८.३(धाता की कुहू आदि ४ पत्नियों से सायं आदि ४ पुत्रों के नाम), १०.१.५०(धाता की गति/विधान के दुरत्यय/जटिल होने का उल्लेख), १२.११.३३(मधु मास में धाता सूर्य के साथ स्थित गणों के नाम), मत्स्य २३.२४(धाता की पत्नी तुष्टि का पति को त्याग कर सोम के पास जाने का उल्लेख), ४७.४५(धात्र : १०वें देवासुर सङ्ग्राम का नाम), वामन ५७.६५ (धाता द्वारा स्कन्द को ३ गणों की भेंट), ५७.७२ (धाता द्वारा स्कन्द को २ गण प्रदान करना), वायु ५२.२(मधु/वसन्त मास में तपने वाले धाता नामक सूर्य के साथ रहने वाले गणों के नाम), विष्णु २.१०.४(मधु/चैत्र मास में तपने वाले सूर्य का नाम), स्कन्द २.३.६.५ (ब्रह्मा की संज्ञा), ५.३.१९१.१३ (प्रलय काल के १२ आदित्यों के संदर्भ में धाता आदित्य द्वारा आग्नेयी दिशा का तापन करने का उल्लेख), महाभारत शान्ति १५.१९ (मध्य, दान्त, शम परायण होने के कारण ब्रह्मा, धाता व पूषा की प्राय: पूजा न होने का उल्लेख), ३४२.४१(धाता द्वारा दधीचि की अस्थियों से वज्र के निर्माण का उल्लेख ; इन्द्र द्वारा वज्र से विश्वरूप के ३ शिरों का छेदन), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१३२ (श्रीकृष्ण - पत्नी दुग्धा की धारिणी पुत्री व धाता पुत्र का उल्लेख ) ; द्र. ब्रह्मधाता, वंश भृगु, विधाता dhaataa/ dhata
धाता - विधाता अग्नि २०.९ (भृगु व ख्याति - पुत्र, प्राण व मृकण्डु - पिता), कूर्म १.१३ (धाता व विधाता : मेरु के जामाता, आयति व नियति के पति, प्राण व मृकण्डु के पिता), गरुड १.५.८ (भृगु व ख्याति - पुत्र, मनु - जामाता, आयति व नियति - पति, प्राण व मृकण्डु - पिता इत्यादि), पद्म ६.२२८.१४ (धाता व विधाता की अयोध्या में उत्तर द्वार पर स्थिति), ब्रह्माण्ड १.२.११.१(भृगु व ख्याति से उत्पन्न धाता - विधाता के महत्त्व का कथन), भागवत ४.१.४३ (भृगु व ख्याति से धाता - विधाता का जन्म, आयति व नियति - पति, मृकण्ड व प्राण - पिता), ५.२३.५(धाता - विधाता की शिशुमार की पुच्छमूल में स्थिति का उल्लेख), ६.६.३९(अदिति के १२ आदित्य पुत्रों में से दो), वायु ३०.३४ (धाता व विधाता का क्रमश: मन्दर - कन्याओं आयति व नियति के पति होने का उल्लेख), विष्णु १.१०.२ (भृगु व ख्याति - पुत्र, मेरु - कन्याओं आयति व नियति के पति, प्राण व मृकण्डु के पिता, आगे वंश का कथन), शिव ५.१०.४० (भोजन - पूर्व बलि के संदर्भ में धाता - विधाता के लिए द्वार देश पर बलि देने का निर्देश), स्कन्द ५.३.२८.१४ (त्रिपुर दाह के संदर्भ में शिव द्वारा धाता को अग्र में व विधाता को पृष्ठ में करने का उल्लेख), ५.३.३९.२८ (धाता व विधाता की कपिला गौ के ओष्ठों में स्थिति ) dhaataa-vidhaataa/ dhata - vidhata |