पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Dvesha to Narmadaa ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Nakshatra, Nakha / nail, Nagara / city, Nagna / bare, Nagnajit, Nachiketa etc. are given here. नक्षत्रकल्प नारद १.५१.२(५ कल्पों में से एक नक्षत्र कल्प का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.३५.६१(सैन्धव द्वारा विभक्त अथर्ववेद के कल्पों में से एक), भागवत १२.७.४(अथर्ववेद के कल्पों में से एक), वायु ६१.५४(सैन्धव द्वारा विभक्त अथर्ववेद के कल्पों में से एक), विष्णु ३.६.१३(शौनक - शिष्य सैन्धव द्वारा विभक्त अथर्ववेद के कल्पों में से एक )
नख गरुड २.२२.६० (नख में पुष्कर द्वीप की स्थिति), देवीभागवत ३.४ (त्रिदेवों द्वारा भुवनेश्वरी देवी के चरण नख में ब्रह्माण्ड के दर्शन), १२.४.९(नखों में मुहूर्तों का न्यास), पद्म ६.६.२९ (बल असुर के नखों से कनक की उत्पत्ति का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.४७ (नखों के सौन्दर्य हेतु मुनीन्द्रनाथ को मणीन्द्रसार दान का कथन), ब्रह्माण्ड २.३.७४.१८१(नखवान् : वैदिश के नागकुल के राजाओं में से एक), ३.४.२४.१२६(नरकासुर आदि के वध हेतु विष्णु के देवी के नख से प्राकट्य का कथन), भागवत २.१.३५(भगवान् के विराट् रूप में अश्व, उष्ट्र आदि के नख रूप होने का उल्लेख), वायु ९९.३६७/२.३७.३६१(वैदिश के नागकुल के राजाओं में से एक), विष्णुधर्मोत्तर १.२३८.२८ (नृसिंह द्वारा कर के नखों द्वारा हिरण्यकशिपु के विदारण का उल्लेख), १.२३९.४ (रावण द्वारा दृष्ट विराट् पुरुष के नखों में पिशाचों की स्थिति का उल्लेख), स्कन्द १.२.६०.४० (घटोत्कच द्वारा कामकटंकटा के समक्ष अङ्गुष्ठ व कनिष्ठिका अङ्गुलि के नखों के वादन से राक्षसों को उत्पन्न करना), ४.२.७२.६० (नखों की विरजा देवी द्वारा रक्षा), ५.१.४.९० (शिव द्वारा दक्षिण अङ्गुलि के नख में अग्नि को धारण करना), ५.३.४२.५४ (पिप्पलाद द्वारा छोडी गई कृत्या के कोप से बचने के लिए याज्ञवल्क्य के शिव के नख मांसान्तर में छिपने का उल्लेख), ५.३.१५९.१३ (स्वर्ण हरण से जन्मान्तर में कुनखी होने का उल्लेख), योगवासिष्ठ १.१८.२९ (नख की ऊर्णनाभि से उपमा), लक्ष्मीनारायण १.१५५.५४ (अलक्ष्मी के कूर्मपृष्ठ सदृश नखों का उल्लेख), १.३७०.७३ (नरक में नख कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख), २.७९.३८(कृष्ण के नख पूर्णिमा के चन्द्र की भांति होने का उल्लेख), ३.११५.८२ (देवी के नख यम - नियम के प्रतीक होने का उल्लेख), ३.१६३.७९ (बल असुर के नखों का वायु के बल से समिद्ध होकर कर्केतन मणि के बीज रूपों में परिवर्तित होने का कथन), महाभारत सभा ३८ दाक्षिणात्य पृष्ठ ७८४(यज्ञवराह के प्रायश्चित्त नख होने का उल्लेख), स्त्री १५.३०(क्रोध युक्त गान्धारी द्वारा दर्शन से युधिष्ठिर के कुनखी होने का उल्लेख ); द्र. शूर्पणखा nakha
नग ब्रह्माण्ड ३.४.१.७९(तृतीय सावर्णि मनु के समय के सप्तर्षियों में से एक), वायु ६.३७(तम से आवृत्त बुद्धि आदि करणों की नग संज्ञा?), १०४.२८/२.४६.२८(नग की निरुक्ति ) naga
नगर अग्नि १०६ (नगर वास्तु का वर्णन, नगर निवासियों के वर्ण व उनके कर्म अनुसार नगर में उनका दिक् - विन्यास), भागवत ४.२५+ (पुरञ्जन के नगर का वर्णन व तात्पर्य), वायु ८१.१४ (प्रशस्त व अप्रशस्त नगर के लक्षण), स्कन्द ६.११४.७७ (सर्पों से रक्षा हेतु नगर मन्त्र का कथन), ६.१४४.७७ (नगर की उत्पत्ति, निरुत्ति, सर्प भय से मुक्ति), योगवासिष्ठ ६.२.१३.२१ ((अन्तर्मुखी होने पर शक्र द्वारा दिव्य नगर व जनपदों का दर्शन), लक्ष्मीनारायण १.४९८.८८५(त्रिजात विप्र द्वारा क्रूर स्पर्श का निष्कासन कर शिव से नगर मन्त्र प्राप्त करना), कथासरित् १८.३.२० (नगरस्वामी नामक चित्रकार द्वारा प्रस्तुत कन्या के चित्र पर राजा के मुग्ध होने व सदृश कन्या के अन्वेषण करने का वृत्तान्त ) nagara
नगरङ्गम कथासरित् ८.५.९३ (श्रुतशर्मा विद्याधर - सेनानी, प्रभास से युद्ध में मृत्यु )
नगाश्रय विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१ (गीत लक्षणों में २० मध्यम ग्रामिकों में से एक )
नगृहू ब्रह्माण्ड १.२.३२.१०१(सत्य से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषिकों में से एक), मत्स्य १४५.९५(नग्नहू : सत्य से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषिकों में से एक), वायु ५९.९२(नग्रहू : सत्य से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषिकों में से एक )
नग्न पद्म २.८.३१ (दुःख से पीडित आत्मा द्वारा नग्न वैराग्य का दर्शन, वैराग्य से संवाद), ब्रह्माण्ड १.२.२७.१०५ (इन्द्रियों के अजित होने पर वस्त्र होते हुए भी नग्न संज्ञा होने का कथन), २.३.१४.३५(वेद त्रयी से रहित होकर तप करने वालों की नग्न संज्ञा का कथन), भागवत १०.१०.६(विवस्त्र यक्ष कुमारों नलकूबर व मणिग्रीव द्वारा नारद को देखकर भी वस्त्र धारण न करने पर शाप से अर्जुन वृक्ष बनना), १०.६३.२०(बाणासुर की माता कोटरा द्वारा पुत्र प्राणों के रक्षार्थ कृष्ण के समक्ष नग्न प्राकट्य का उल्लेख),मत्स्य १४५.९५ (नग्नहू : सत्य प्रभाव से ऋषिता प्राप्त करने वालों में से एक), वायु ७८.२६ (नग्नता निरूपण व नग्नता की निन्दा), विष्णु ३.१७.५ (वेदत्रयी आवरण से रहित व्यक्ति, शतधनु - शैब्या दृष्टान्त), ३.१८.४८(स्वधर्म से विमुख ब्राह्मणादि वर्णों की नग्न संज्ञा का उल्लेख), स्कन्द ७.१.३१९.४७ (नग्नहर नगर का माहात्म्य : उन्नत लिङ्ग के स्थान पर विश्वकर्मा द्वारा नग्नहर नगर का निर्माण), हरिवंश २.१२६.२३(कार्तिकेय की रक्षा हेतु कोटवी देवी के कृष्ण व कार्तिकेय के मध्य नग्न प्राकट्य का उल्लेख), २.१२६.११२(बाणासुर की रक्षा हेतु कोटवी देवी के कृष्ण के समक्ष नग्न प्राकट्य का कथन), लक्ष्मीनारायण १.४२४.१९(नग्न के नाश हेतु योगिनी का उल्लेख), २.२६.९३ (वेद, कथा व व्रत से रहित पुरुषों की नग्न संज्ञा), २.११५.१५(नग्न नामक पर्वतों के बीच साम/आसाम देश का वर्णन), ४.१५.५३ (नागमुखी नामक चारणी द्वारा साधुसेवा से नाग्नकैसरी नाम से मोक्ष प्राप्ति का वृत्तान्त ) nagna
नग्नजित् गरुड २.२.१९.७२(राजा नाग्निजित् के पूर्व जन्म में कव्यवाह होने का उल्लेख), ३.१९.७१(नाग्निजित् : कव्यवाह का अवतरण, नीला-पिता, कृष्ण द्वारा नीला की प्राप्ति), गर्ग ७.१८.५ (कोसल - राजा नग्नजित् द्वारा प्रद्युम्न की पूजा), देवीभागवत ९.४३.३१( स्वाहा का तप से नग्नजित् - कन्या / सत्या बनकर कृष्ण को प्राप्त करने का कथन), भागवत ३.३.४(कृष्ण द्वारा वृषों का दमन कर नाग्नजिती से विवाह का उल्लेख), १०.५८.५२(कृष्ण द्वारा राजा नग्नजित् के ७ गोवृषों का दमन कर कन्या सत्या से विवाह का वृत्तान्त), मत्स्य २५२.२(स्थापत्य कला के १८ प्रवर्त्तकों में से एक ) ; द्र. नाग्नजिती nagnajit
नग्रभङ्ग लक्ष्मीनारायण ३.११४.३७ (नग्रभङ्ग चोर द्वारा साधुसमागम से भागवतायन नामक भक्त बन कर मोक्ष प्राप्त करने का वृत्तान्त )
नचिकेता अग्नि ३८२ (नचिकेता द्वारा यम से यम गीता रूपी उपदेश की प्राप्ति), वराह १९३+ (उद्दालक - पुत्र, नचिकेता के यमपुरी गमन का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.३५७+ (उद्दालक - पौत्र व नचिकेता - पुत्र नाचिकेता द्वारा पितृशाप से यमलोक जाकर यम से आत्म ज्ञान की प्राप्ति, यम लोक दर्शन, दुष्कर्मों के फलस्वरूप यातना भोगियों के दर्शन, सत्कर्मों के फलस्वरूप यमलोक का लङ्घन करते हुए पुण्यात्माओं के दर्शन आदि ), द्र. त्रिणाचिकेत nachiketaa |