पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Dvesha to Narmadaa ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Dhruvasandhi, Dhwaja / flag, Dhwani / sound, Nakula, Nakta / night, Nakra / crocodile, Nakshatra etc. are given here. ध्रुवक्षिति ब्रह्माण्ड १.२.३६.७५(चाक्षुष मन्वन्तर में लेखवर्ग के एक देवता )
ध्रुवसन्धि देवीभागवत ३.१४ (कोसल - राजा, पुष्य - पुत्र, मनोरमा व लीलावती - पति, सिंह से युद्ध व मृत्यु), ब्रह्माण्ड २.३.६३.२०९(पुष्य - पुत्र, सुदर्शन - पिता, कुश वंश), भागवत ९.१२.५(पुष्य - पुत्र, सुदर्शन - पिता, कुश वंश), वायु ८८.२०९/२.२०६.२०८(वही), विष्णु ४.४.१०८(वही), वा.रामायण १.७०.२६(सुसन्धि - पुत्र, भरत - पिता, प्रसेनजित् - भ्राता, इक्ष्वाकु वंश ) dhruvasandhi
ध्वज अग्नि ५६.१०
(तोरणों / द्वारों पर स्थित ध्वजों के प्रकारों का वर्णन),
६१.१७ (ध्वज
आरोपण विधि,
ध्वज अवयवों के प्रतीकार्थ),
९६.१० (८
ध्वज देवताओं के नाम),
१०२.२५
(कुण्डलिनी शक्ति का प्रतीक,
ध्वज
आरोपण विधि),
२६९.९ (ध्वज
प्रार्थना मन्त्र),
गणेश २.२७.७ (राज - मन्त्री,
दुष्ट
राजपुत्र साम्ब द्वारा बन्धन),
२.११४.१५ (सिन्धु असुर व गणेश के युद्ध में ध्वजासुर का
पुष्पदन्त से युद्ध),
नारद १.१९
(कार्तिक शुक्ल एकादशी को ध्वजारोपण व्रत विधि),
१.२०(ध्वजारोपण के महत्त्व के
संदर्भ में राजा सुमति तथा उसकी रानी सत्यमति के पूर्व जन्म का वृत्तान्त),
ब्रह्माण्ड २.३.७२.७५(नवम देवासुर सङ्ग्राम का नाम,
इन्द्र द्वारा अदृश्य ध्वज का वध),
भविष्य १.१३८
(विभिन्न देवताओं हेतु ध्वज दण्डों के प्रमाण तथा ध्वज चिह्नों का विस्तृत वर्णन),
४.६१.४६
(ध्वज नवमी व्रत,
दुर्गा आदि द्वारा असुर का हनन),
४.१३८.५१
(ध्वज मन्त्र),
४.१३९
(इन्द्रध्वज उत्सव,
ध्वज अपशकुन का वर्णन),
मत्स्य
१४८.४५ (तारकासुर संग्राम में
दैत्यों के केतुओं का कथन),
१४८.४६ (कुजम्भ दैत्य का ध्वज),
१४८.४६ (जम्भ दैत्य का ध्वज),
१४८.४७ (महिष दैत्य का ध्वज),
१४८.४७ (शुम्भ दैत्य का ध्वज),
१४८.८६ (देव
सेना में यक्षों,
राक्षसों,
किन्नरों,
यम,
इन्द्र आदि की ध्वजाओं का वर्णन),
वामन ६९.१२४(स्वस्तिक
जगद्रथ के वानर ध्वज से युक्त होने का उल्लेख),
वायु
५१.६३ (सूर्य रथ में घर्म रूपी
ध्वज),
९७.७५,
८५/२.३५.७५(नवम देवासुर सङ्ग्राम का नाम,
इन्द्र
द्वारा अदृश्य ध्वज का वध),
विष्णु १.८.३२
(पताका व ध्वज में स्त्री - पुरुष के सम्बन्ध का उल्लेख),
४.१२.१(ध्वजिनीवान् : क्रोष्टु - पुत्र,
स्वाति - पिता,
यदु वंश),
विष्णुधर्मोत्तर २.१५४ (असुरों पर विजय प्राप्ति हेतु विष्णु द्वारा शक्र को
शक्रध्वज प्रदान करना,
शक्र ध्वज के महत्त्व का वर्णन),
२.१५५ (शक्रध्वज उत्सव का वर्णन),
२.१६०.१२ (ध्वज मन्त्र),
३.९४
(विभिन्न देवताओं के ध्वज),
३.९८ (प्रासाद प्रतिष्ठा के अन्तर्गत स्थण्डिल परिकल्पना,
तोरण,
ध्वज आदि
की प्रतिष्ठा आदि का वर्णन),
३.९८ (तोरणों के ऊपर विभिन्न दिशाओं में ध्वजों व पताकाओं के
लक्षणांकों का कथन ) ३.११६ (मूर्ति प्रतिष्ठा से पूर्व तोरणोद्धार विधि का वर्णन),
३.१४६ (चतुर्व्यूह के देवताओं के ध्वजों के चिह्नों और उनके
व्रतों का वर्णन),
३.२३३.१६८ (ध्वजी के दशचक्र सम और वेश्या के दस ध्वज सम होने का पुराणों का
सार्वत्रिक श्लोक),
शिव २.५.८.१३
(शिव के रथ में स्वर्ग व मोक्ष का ध्वज बनना),
४.१३
(भोज में बटुक पूजा न होने से ध्वज पात),
स्कन्द १.२.१६.१७
(तारक संग्राम में ग्रसन,
जम्भ,
कुजम्भ,
महिष,
कुञ्जर,
मेष,
कालनेमि,
मथन,
जम्भक,
शुम्भ
असुरों के ध्वज),
१.२.१६.६५(देवों
के ध्वज),
२.२.२५.९(सुभद्रा
के रथ के पद्मध्वज होने का उल्लेख),
४.२.५८.१६१ (शिव रथ में कल्पतरु
ध्वज,
सुमेरु ध्वज - दण्ड),
५.३.२८.१८(त्रिपुर दाह हेतु शिव के
रथ में सत्य के ध्वज होने का उल्लेख), हरिवंश २.११०.७८ (यज्ञों की ध्वज यूप होने का उल्लेख),
लक्ष्मीनारायण १.२७०.२०(आषाढ पञ्चमी को वायु व्रत के
अन्तर्गत ध्वज फहराने की दिशा निरीक्षण का कथन),
१.२८२.२५(ध्वजारोपण व्रत विधि,
ध्वज के विभिन्न अवयवों का महत्त्व,
ध्वजारोपण के महत्त्व के संदर्भ में राजा सुमति व रानी
सत्यमति के पूर्व जन्म का वृत्तान्त),
१.३८२.२९(विष्णु के ध्वज व लक्ष्मी के पताका होने का उल्लेख),
२.१३९.४४
(प्रासाद के ध्वजाधार के मान का कथन),
२.१३९.६९
(ध्वजदण्ड के प्रमाण का विवेचन),
२.१४२.४२(मूर्ति प्रतिष्ठा उत्सव में मण्डप की आठ दिशाओं में
रोपणीय विभिन्न ध्वजों का वर्णन),
२.१५८.५९
(प्रासाद के ध्वज की नर के केशों से उपमा),
२.१६०.२६
(मूर्ति प्रतिष्ठा के संदर्भ में मण्डप में कलश स्थापना के साथ ध्वजारोपण का
निर्देश ;
ध्वजारोपण के महत्त्व का वर्णन),
२.१७६.१६ (ज्योतिष में एक योग),
४.४८३ (मिष्टासवध्वजी नामक मदिरा व्यवसायी द्वारा कथा सुनने
के संकल्प पर भगवान द्वारा सहायता आदि करने का वर्णन),
महाभारत उद्योग
५६.७ (अर्जुन के रथ के ध्वज की दिव्यता का वर्णन),
भीष्म
१७.२५ (कौरव सेना के महारथियों
द्रोण,
दुर्योधन,
कृप,
जयद्रथ आदि के ध्वजों के चिह्नों का कथन),
द्रोण २३.७२
(पाण्डव सेना के महारथियों पाण्ड्य,
घटोत्कच,
युधिष्ठिर,
नकुल आदि
के ध्वज चिह्नों का वर्णन),
१०५.८ (कौरव
महारथियों व अर्जुन के ध्वज चिह्नों का वर्णन),
कर्ण
८७.९३ (कर्ण की ध्वज में हस्तिकक्षा
/ हाथी की सांकल का चिह्न व अर्जुन की ध्वज में कपि चिह्न
,
युद्ध से पूर्व ध्वजों में युद्ध )
;
द्र. अमितध्वज,
ऋतध्वज,
कुम्भध्वज,
कुशध्वज,
कृतध्वज,
केशिध्वज,
क्रतुध्वज,
जयध्वज,
तालध्वज,
धर्मध्वज,
नीलध्वज,
बृहद्ध्वज,
मयूरध्वज,
मलयध्वज,
यज्ञध्वज,
रथध्वज,
विलापध्वज,
वृषध्वज,
वृषभध्वज,
शिखिध्वज
dhwaja
ध्वनि अग्नि ३४८.७ (ड व ढ अक्षरों का ध्वनि के अर्थ में प्रयोग का उल्लेख), देवीभागवत ७.३८ (देवी, शङ्कुकर्ण पर्वत पर वास), ब्रह्म १.३४.७१(मन्त्र ध्वनि से हर्षित मयूरी द्वारा केका रव करने का उल्लेख), मत्स्य १३.४८(शङ्खोद्धार में स्थापित सती देवी की मूर्ति), स्कन्द ४.१.४१.९७(पवन के व्योम में प्रवेश पर घण्टा आदि महान् ध्वनि के उत्पन्न होने का उल्लेख), ५.३.१९८.८६ (माण्डव्य - शूलेश्वरी देवी संवाद में उमा के शङ्खोद्धार तीर्थ में ध्वनि नाम से स्थित होने का उल्लेख ); द्र. वंश वसुगण dhwani
ध्वांक्ष मत्स्य १४८.४७ (शुम्भ दैत्य के ध्वज का चिह्न), लक्ष्मीनारायण २.१७६.१४ (ज्योतिष में एक योग )
ध्वान्त वायु ६७.१२६/२.६.१२६(४९ मरुतों के तृतीय गण में से एक ) नकुल कूर्म २.४२.१२/२.४४.१२ (नकुलीश्वर तीर्थ का माहात्म्य), गरुड १.२१७.२५ (घृत का हरण करने से नकुल योनि की प्राप्ति), देवीभागवत ७.३८ (नाकुल क्षेत्र में नकुलेश्वरी देवी का वास), पद्म ६.८८.१४ (इन्द्र के वज्र प्रहार के कारण गिरे गरुड के पक्ष से मयूर, नकुल व चाष / नीलकण्ठ की उत्पत्ति का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त १.१६.१७ (चिकित्सा शास्त्र की रचना करने वाले १६ चिकित्सकों में से एक), २.३१.४७ (मित्र द्रोही के नकुल बनने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१८.६८(नाकुली : निषध पर्वत पर स्थित विष्णुपद से निकली २ नदियों में से एक), ३.४.२३.५२ (नकुली देवी का ललिता देवी के तालु से प्राकट्य, सर्पिणी माया का नाश करना, करङ्क का वध), ३.४.२८.३९ (नकुली देवी का विष से युद्ध), भविष्य ३.३.१ (नकुल का कलियुग में लक्षण रूप में अवतरण), ३.३.५९ (कलियुग में नकुल का वीरवती व रत्नभानु - पुत्र लक्षण के रूप में जन्म का उल्लेख), मत्स्य १५.२१ (घृत हरण के फलस्वरूप प्राप्त योनि), १९५.२५(नाकुलि : भार्गव कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक ), वराह १२६ (नकुल का सर्पिणी से युद्ध, मरण, जन्मान्तर में राजपुत्र बनने की कथा), वामन ४६.१३ (स्थाणु लिङ्ग के पश्चिम् में नकुलीश गण की स्थिति का उल्लेख), वायु २३.२२१ (नकुली : २८वें द्वापर में शिव का अवतार), विष्णु ३.७ (नकुल द्वारा भीष्म से यमलोक अपवर्जक कर्मों के बारे में पृच्छा), विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.२०(घृत हरण से नकुल योनि प्राप्ति का उल्लेख), स्कन्द १.२.१३.६२ (यज्ञ में याज्ञवल्क्य द्वारा मुनि को नकुल कहकर पुकारने पर नकुल द्वारा याज्ञवल्क्य को नकुल होने का शाप, याज्ञवल्क्य का दुष्ट विप्र के पुत्र रूप में जन्म, नकुलेश्वर लिङ्ग के दर्शन से दुष्ट जन्मता से मुक्ति), ४.२.६९.११६ (नकुलीश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.१०९.१७ (कारोहण तीर्थ में नकुलीश लिङ्ग), लक्ष्मीनारायण १.२०२.७ (१६ चिकित्सकों में से एक), १.२७४.१९ (श्रावण शुक्ल नकुल नवमी व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य), १.५७१.२६ (माघ शुक्ल द्वादशी को कुब्जाम्रक तीर्थ के माहात्म्य के संदर्भ में नकुल व सर्पिणी की कुब्जाम्रक तीर्थ में मृत्यु पश्चात् राजपुत्र व राजकन्या बनने की कथा), ४.७१.१ (यज्ञ में उत्कर में प्रसाद मिश्रित उच्छिष्ट के भक्षण से नकुल का मुक्त होकर देव बनना, देव रूप नकुल द्वारा वैष्णव मन्त्र जप से नकुल का सकुल, कुलवान बनना), कथासरित् ६.७.१०७ (नकुल और उलूक के भय से मुक्ति के लिए मूषक द्वारा आपद~ग्रस्त मार्जार से क्षणिक मैत्री करने की कथा), १०.४.२३५ (बक द्वारा सर्प से मुक्ति पाने के लिए नकुल के बिल से लेकर सर्प के बिल तक मांस खण्ड बिखेरने की लघु कथा), १०.८.८ (बालक की सर्प से रक्षा करने वाले नकुल की ब्राह्मण द्वारा भ्रम से हत्या की लघु कथा), महाभारत शान्ति १३८.३१(मूषक द्वारा मार्जार से मित्रता करके हरिण नामक नकुल व उलूक के भय से स्वयं को मुक्त करने की कथा), आश्वमेधिक ९०.५(नकुल द्वारा राजा युधिष्ठिर के अश्वमेध की निन्दा करते हुए ब्राह्मण द्वारा अतिथि को दान किए गए सक्तू के महत्त्व का वर्णन करना), ९०.११०(सक्तु कणों आदि से नकुल के शिर के स्वर्णिम होने का कथन), ९२.४०(नकुल के पूर्व जन्म का वृत्तान्त : धर्म का क्रोध रूप धारण कर पितरों के तर्पण हेतु पय: में प्रवेश करना, पितरों के शाप से नकुल बनना ) nakula Comments on Braahmani - nakula - vatsa story नक्त अग्नि १०७.१५ (पृथु - पुत्र, गय - पिता), ब्रह्माण्ड १.२.१४.६८(पृथु - पुत्र, गय - पिता), भविष्य १.८२.१५ (नक्षत्र दर्शन से नक्त होने का उल्लेख ; आदित्य वार को नक्त व्रत का महत्त्व), ४.९६ (नक्त व्रत की विधि), ४.११५ (आदित्य वार को नक्त व्रत की विधि व माहात्म्य), भागवत ५.१५.६ (पृथुषेण व आकूति - पुत्र, द्रुति - पति, गय - पिता, भरत वंश), स्कन्द २.५.१२.२३ (दिन के अष्टम भाग में दिवाकर के मन्द होने का समय ), द्र. वंश भरत nakta
नक्र गणेश २.८.२१ (महोत्कट गणेश द्वारा नक्र का वध, नक्र के पूर्व जन्म का वृत्तान्त), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.८१ (नक्र की हत्या पर नरक में नक्रकुण्ड प्राप्ति का कथन), २.३०.१३५ (सामान्य द्रव्य चोरी से नक्रमुख नरक की प्राप्ति का उल्लेख), स्कन्द ३.१.४९.४२(व्याधि की नक्र रूप में कल्पना), लक्ष्मीनारायण १.३७०.९९ (नरक में नक्र कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ) nakra
नक्षत्र अग्नि
१२५.२०(विभिन्न तिथियों में ग्रहों व नक्षत्रों के योग के शुभाशुभ फल का कथन
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कृत्तिका प्रतिपद्भौम आत्मनो लाभदः स्मृतः ॥ षष्ठी भौमो मघा पीडा आर्द्रा चैकादशी
कुजः ।),
१२६.१ (नक्षत्र पिण्ड से शुभाशुभ का ज्ञान),
१२६.१३ (नक्षत्रों की स्थिर,
क्षिप्र आदि प्रकृति एवं करणीय कृत्यों का वर्णन
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रोहिणी चोत्तरास्तिस्रो मृगः पञ्च स्थिराणि हि । अश्विनी रेवती स्वाती धनिष्ठा
शततारका ॥),
१२६.३३ (गण्डान्त का निरूपण),
१३० (नक्षत्रों का आग्नेय आदि मण्डलों में विभाजन,
मण्डल प्रकोप का देश व निवासियों पर प्रभाव),
१३६ (त्रिनाडी
नक्षत्र चक्र से फल का विचार),
१७५.३५ (सूर्यास्त वाले नक्षत्र में उपवास का निर्देश
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उपोषितव्यं नक्षत्रं येनास्तं याति भास्करः ।
),
१९६
(नक्षत्र व्रत : हरि का नक्षत्र - न्यास),
२९३.३२ (मन्त्रों के संदर्भ में २७ नक्षत्रों के देवताओं के नाम
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दस्रो यमोऽनलो धाता शशी रुद्रो गुरुर्दितिः।..),
कूर्म
२.२०.९ (कामना अनुसार विभिन्न नक्षत्रों में श्राद्ध
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स्वर्गं च लभते कृत्वा कृत्तिकासु द्विजोत्तमः । अपत्यमथ रोहिण्यां सौम्ये तु
ब्रह्मवर्चसम् ।।),
गरुड
१.५९.२ (नक्षत्र स्वामी
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कृत्तिकास्त्वग्निदेवत्या रोहिण्यो ब्रह्मणः स्मृताः ॥ इल्वलाः सोमदेवत्या रौद्रं
चार्द्रमुदाहृतम् ॥ ),
१.५९.१५(
नक्षत्र का स्वरूप,
नक्षत्रों में करणीय कृत्य
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अश्विनीमैत्ररेवत्यो मृगमूलपुनर्वसु ॥ पुष्या हस्ता तथा ज्येष्ठा प्रस्थाने
श्रेष्ठमुच्यते ॥),
१.५९.३५(वार
अनुसार नक्षत्र की श्रेष्ठता
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विशाखात्रयमादित्ये पूर्वाषाढात्रये शशी ॥धनिष्ठात्रितयं भौमे बुधे वै रेवतीत्रयम्
॥),
१.६० (नक्षत्र / रवि चक्र से फल का कथन),
१.१२८.१० (नक्षत्र दर्शन से नक्त होने का उल्लेख
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नक्षत्रदर्शनान्नक्तमनक्तं निशि भोजनम् ।),
गरुड
२.४.१७५(नक्षत्र
पञ्चक में मृत्यु पर दाह विधि),
२.३५.१७(मृतक के संस्कार के अयोग्य ५ नक्षत्र),
देवीभागवत
८.१७.१७
(शिशुमार चक्र में नक्षत्रों का न्यास-
पुनर्वसुश्च पुष्यश्च श्रोण्यौ दक्षिणवामयोः ॥
आर्द्राश्लेषे पश्चिमयोः पादयोर्दक्षवामयोः ।),
८.२४.३९ (मास
अनुसार देवी को नैवेद्य अर्पण
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वैशाखमासे नैवेद्यं गुडयुक्तं च नारद ॥ ज्येष्ठमासे मधु प्रोक्तं देवीप्रीत्यर्थमेव
तु ।),
नारद
१.१३.४६ (विष्णु के स्नान हेतु ग्रहों व नक्षत्रों के विशिष्ट योगों के नाम
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अर्द्धोदये च सूर्यस्य पुष्यार्के रोहिणीबुधे। This page was last updated on 01/19/22. |