पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Dvesha to Narmadaa ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
|
|
Puraanic contexts of words like Dharani, Dharaa, Dharma etc. are given here. धरणि/धरणी गणेश १.९०.५४ (शेष द्वारा धरणीधर नाम से गणेश की आराधना का उल्लेख, प्रवाल नगर में धरणीधर नाम), भविष्य ४.८३.६ (धरणी / पृथिवी द्वारा रसातल से उद्धार हेतु विभिन्न मासों के द्वादशी व्रतों का वर्णन व माहात्म्य), ४.१०५.३ (फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा व्रत में धरणी देवी से शोक रहित करने की प्रार्थना), भागवत ६.६.१२(ध्रुव - पत्नी, पुरों की माता), वराह ५० (कार्तिक द्वादशी को धरणी व्रत की विधि व माहात्म्य), ११३.५ (धरणी - सनत्कुमार संवाद के अन्तर्गत धरणी द्वारा यज्ञवराह से हुए धर्म सम्बन्धी वार्तालाप का वर्णन), स्कन्द २.१.३ (आकाशराज - भार्या, वसुदान व पद्मिनी - माता), ३.१.२२.१८(परशुराम की पत्नी के रूप में धरणी का उल्लेख), ४.२.८१.४६ (धरणीश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.३८२.१८६(मेरु-भामिनी धरणी का उल्लेख), १.३९८.११ (धरणी देवी का वराह के पास इला व पिङ्गला सखियों सहित आने का उल्लेख, धरणी सुषुम्ना का रूप? ) dharanee/ dharani वेद में धरणी व वियतराज (आकाश ) का साम्य द्यावापृथिवी से है ।
धरा गणेश २.८५.२४ (धराधर गणेश से पार्श्व की रक्षा की प्रार्थना), गर्ग १.३.४१ (द्रोण वसु - पत्नी, यशोदा रूप में अवतरण), देवीभागवत ७.३० (शङ्खोद्धार तीर्थ में देवी का धरा नाम), ब्रह्मवैवर्त्त ४.९.१७(द्रोण वसु का पत्नी धरा सहित श्रीकृष्ण दर्शनार्थ तप, जन्मान्तर में नन्द - यशोदा रूप में कृष्ण की पुत्र रूप में प्राप्ति का कथन), पद्म ३.२८.२६ (धरा नदी का संक्षिप्त माहात्म्य : पाप से मुक्ति), ६.२८.१७ (धरापाल राजा द्वारा विष्णु आयतन निर्माण व पुराण श्रवण के पुण्य से उत्तम लोक की प्राप्ति), भागवत १०.८.५०(द्रोण वसु की पत्नी, यशोदा रूप में अवतरण), मत्स्य १०१.५२ (धरा व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य), २८४(हेम धरा दान विधि), वराह ३९.२३+ (रसातल में गिरी धरा द्वारा व्रत - उपवासों के चीर्णन से नारायण द्वारा पृथिवी का उद्धार ; धरा द्वारा चीर्णित व्रतों का वर्णन), वामन ९०.३८ (धरातल में विष्णु का कोकनद नाम), शिव ७.१.१७.४९(स्वधा व बर्हिषद् पितरों की पुत्री, मेरु - पत्नी, मन्दर व ३० कन्याओं की माता), स्कन्द ३.२.२०.३८ (धरा क्षेत्र का वर्णन : शिव द्वारा मन्त्रों के कूटों व बीजों का उद्घाटन, धर्मारण्य में शिव के पास पार्वती के पहुंचने पर शिव की जटा आदि का भूमि पर पतन आदि), ४.२.७२.६० (धरित्री देवी द्वारा ह्रदय की रक्षा), हरिवंश १.३.११७ (स्थल व जल के पक्षियों की माता), योगवासिष्ठ ६.२.८७.५७ (धरा धारणा का वर्णन), लक्ष्मीनारायण ३.१८३.७८ (हस्तिपालक धरोधर द्वारा हस्ती के पाद भङ्ग करने से अगले जन्म में राजा बने हस्ती द्वारा सागर रूपी धरोधर के पादों को भङ्ग करने का वृत्तान्त ), कृष्णोपनिषद १५(सत्यभामा धरा का रूप), द्र. वसुन्धरा dharaa
धर्त्ता वायु ६७.१२६/२.६.१२६(मरुद्गणों के तीसरे गण का एक मरुत् )
धर्म अग्नि १६७.१३(धर्म की कीर्त्ति आदि १४ पत्नियों के नाम), २२३ (राजधर्माः), २२५ (राजधर्म), २३९ (राजधर्म), गणेश २.११९.५ (धर्म - अधर्म : सिन्धु असुर - पुत्र, युद्ध में कार्तिकेय द्वारा वध ) गरुड १.८७.३७ (धर्मसावर्णि मनु के पुत्रों के नाम), १.९३+ (याज्ञवल्क्य द्वारा ब्रह्मचारी, गृहस्थ आदि के आचार/धर्म के लक्षणों का कथन), १.२१३ (श्रुति, स्मृति, सदाचार, अष्टविधधर्म का वर्णन), १.२१५.५/१.२२३.५(कृतयुग आदि में धर्म के ४ पादों सत्य, दान, तप, दया की प्रतिष्ठा तथा हरि के श्वेतादि वर्ण का कथन), २.३४.२(कृत में तप, त्रेता में ज्ञान, द्वापर में यज्ञदान व कलि में दान की प्रशंसा, गृहस्थधर्म का वर्णन), देवीभागवत ४.४.१४ (सत्य, शौच, दया, दान आदि धर्म के ४ पाद, धर्म के संदर्भ में छल का औचित्य - अनौचित्य), ९.२२.८ (धर्म का शङ्खचूड - सेनानी धुरन्धर से युद्ध), नारद १.२३.५४ (धर्मकीर्ति : विधर्मी राजा, एकादशी व्रत प्रभाव से नरक से मुक्ति, गालव - पुत्र भद्रशील बनना), २.२८.२७ (राक्षसी द्वारा ब्राह्मण को धर्म की सूक्ष्म गति के उदाहरण देना), २.२८.७१ (धर्म के कामदुघा धेनु होने का श्लोक), पद्म १.३४.१७ (ब्रह्मा के यज्ञ में सदस्य), २.१२.४८ (दुर्वासा द्वारा तीन शापों के कारण धर्म की युधिष्ठिर, विदुर व चाण्डाल रूप में उत्पत्ति), २.५५.२ (सुकला सती के संदर्भ में धर्म चाप व ज्ञान बाण का उल्लेख), २.५६.१ (सत्य द्वारा धर्म से अपनी महिमा तथा काम द्वारा गृहों से सत्य के निष्कासन का वर्णन), २.५६.३० (धर्म द्वारा प्रज्ञा शकुनी की सहायता से काम के मनोरथ को निष्फल करना), २.५९.८ (धर्म द्वारा पतिव्रता भार्या सुकला को छोड तीर्थ यात्रा करने वाले पति कृकल का प्रबोधन), ५.९९.१८ (सत्य व धर्म की कुण्डल - द्वय से उपमा), ५.१०९.५५ (धर्म के पशुओं का पालक व अधर्म के तस्कर होने का उल्लेख), ६.७४.२ (धर्म से अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति का उल्लेख), ६.१४१ (माण्डव्य – धर्म संवाद, विदुर द्वारा धर्मावती नदी में स्नान द्वारा शूद्रत्व से मुक्ति), ७.६.२० (धर्मबुद्धि : भीमनाद गण्डक का पूर्व जन्म में नाम), ७.७.१४ (धर्मस्व ब्राह्मण द्वारा कालकल्प का गङ्गाजल से सिंचन, गङ्गा की स्तुति, वर प्राप्ति), ब्रह्म १.१०७ (धर्मराजपुरी जाने के लिए अपेक्षित कर्म, धर्म की महिमा), ब्रह्मवैवर्त्त १.३.४१ (धर्म का श्रीकृष्ण वक्ष से जन्म), १.१० (वेश्या धर्म के सम्बन्ध में घृताची - विश्वकर्मा संवाद), २.१०.१५२(धर्म द्वारा सरस्वती को धर्मबुद्धि व यश देने का उल्लेख), ३.७.४१(सनत्कुमार द्वारा पार्वती से शिव को दक्षिणा में मांगने के संदर्भ में भर्त्ता के १०० पुत्रों के समान और धर्म से अवर होने का कथन), ४.४२.२ ( धर्म द्वारा नृप रूप धारण कर पिप्पलाद - पत्नी पद्मा के सतीत्व की परीक्षा, सती द्वारा धर्म को क्षय होने का शाप, धर्म की चार युगों में क्षय - वृद्धि), ४.८३ (चतुर्वर्ण का धर्म), ४.८६.३३ (धर्म द्वारा द्विज रूप धारण कर तपोरत वृन्दा की परीक्षा, वृन्दा द्वारा धर्म को भस्म करना व पुनरुज्जीवित करना, धर्म का चार युगों में कलाओं से युक्त होना), ब्रह्माण्ड १.२.७.१७८(प्रजापति द्वारा ब्राह्मण आदि चार वर्णों व ब्रह्मचर्य आदि चार आश्रमों के धर्मों का वर्णन), १.२.९.१(सृष्टि के आदि में ब्रह्मा द्वारा रुद्र, धर्म आदि ५ की मानसी सृष्टि का उल्लेख), १.२.९.४९(धर्म द्वारा दक्ष की श्रद्धा, लक्ष्मी आदि १३ पुत्रियों को पत्नियों के रूप में स्वीकार करना), १.२.३२.४९ (क्षमा, तप, शम आदि के लक्षण), २.३.७४.१०(गान्धार - पुत्र, धृत - पिता, द्रुह्यु वंश), ३.४.१.१४ (सुतपा देवगण के २० देवों में से एक), ३.४.१.१०४(१३वें मन्वन्तर में रौच्य मनु के १० पुत्रों में से एक), ३.४.१३.१३(ललिता देवी की बाहुओं के धर्म का स्वरूप होने का उल्लेख), भविष्य १.१.४३(धर्मशास्त्रों के रचयिता ऋषियों के नाम), १.१३८.३७(रवि की धर्म ध्वज का उल्लेख), १.१५१ (सौर धर्म), १.१७१ (मग धर्म), १.१७३ (सौर धर्म-- अरुण-गरुड संवाद), १.१८१.१(सूर्य द्वारा अरुण को पंच प्रकार धर्म का वर्णन), १.१८४ (ब्राह्मण धर्म), २.१.१ (चतुर्वर्ण को धर्म फल की प्राप्ति), ३.२.११ (राजा धर्मवल्लभ द्वारा मन्त्री बुद्धिप्रकाश की सहायता से पाताल में विद्याधर - कन्या को पत्नी रूप में प्राप्त करना, मन्त्री की मृत्यु), ३.२.११.६ (वानप्रस्थ से प्राप्त धर्मानन्द के अधम, कर्मकाण्ड से सत्य धर्म व संन्यास से सर्वोत्तम आनन्द की प्राप्ति का कथन), ३.२.२९.३(धर्म की परिभाषा : विप्रों व अतिथियों के लिए दान), ३.४.९ (राजा धर्मपाल द्वारा जयदेव ब्राह्मण से दीक्षा की प्राप्ति), ३.४.२५.२६(ब्रह्मा की पूर्व भुजा से धर्म व पश्चिम् भुजा से यज्ञ की उत्पत्ति का कथन), ४.८९ (धर्म आराधना व्रत, मुद्गल मुनि व मुद्गल राजा का यमदूतों द्वारा बन्धन, यम त्रयोदशी व्रत के कारण मुक्ति), भागवत १.१६.१८+ (परीक्षित् द्वारा एक पाद वृषभ रूपी धर्म व गौ रूपी पृथिवी के बीच वार्तालाप का श्रवण कर कलियुग का दमन करना), १.१७.२४(धर्म के चार पादों तप, शौच, दया व सत्य में से कलियुग में केवल सत्य के ही शेष रहने का कथन, अधर्मांश स्मय, सङ्ग व मद से तीन पादों के नष्ट होने का कथन),४.१.४९ (धर्म की १३ पत्नियों व उनके पुत्रों के नाम), ६.३.२१(भागवत धर्म को जानने वाले १२ पुरुषों के नाम), ६.४.४६(धर्म के भगवान् की आत्मा होने का उल्लेख), ७.११.१२ (धर्म के तीस लक्षण), ८.१३.२६ (धर्मसेतु : अवतार, आर्यक व वैधृता - पुत्र), ९.२३.१५(गान्धार - पुत्र, धृत - पिता, द्रुह्यु वंश), ९.२३.२२(हैहय - पुत्र, नेत्र - पिता, यदु वंश), ९.२३.३४(पृथुश्रवा - पुत्र, उशना - पिता, यदु वंश), ११.१९.३९(धर्म के मनुष्यों का इष्ट धन होने का उल्लेख), ११.२९ (कृष्ण द्वारा उद्धव हेतु प्रोक्त भागवत धर्म), मत्स्य ४८.८(गन्धार - पुत्र, घृत - पिता, द्रुह्यु वंश), १४५.४१ (धर्म के अङ्गों क्षमा आदि के लक्षण), १६५(कृतादि ४ युगों में धर्म व अधर्म की पाद संख्याओं का कथन), २०३ (धर्म के वंश का वर्णन), २१५ (राजा व राज्य कर्मचारी का धर्म), मार्कण्डेय ५० (दक्ष पुत्रियों का धर्म की पत्नियां बनना), वराह ३२ (धर्म की उत्पत्ति, चन्द्रमा के दोष से अदृश्य होना, देवों द्वारा स्तुति), ११५ (विविध धर्मोत्पत्ति : चतुर्वर्ण द्वारा श्रीहरि की प्राप्ति के लिए अपेक्षित कर्मों का वर्णन), १४०.४४ (कोकामुख क्षेत्र में धर्मोद्भव तीर्थ का माहात्म्य : शूद्र से वैश्य होना आदि), वामन २.१२ (दक्ष यज्ञ में धर्म व उसकी भार्या अहिंसा के द्वारपाल बनने का उल्लेख), ११.१४ (ऋषियों द्वारा सुकेशि राक्षस को देवों, दैत्यों, सिद्धों, गन्धर्वों, गुह्यकों आदि के धर्मों का कथन), १४.१ (धर्म के अहिंसा, सत्य आदि १० अङ्गों का कथन), १४.४ (ब्रह्मचारी के धर्म का कथन), १४.१८ (धर्म के सदाचार वृक्ष का मूल व धन के शाखा होने का उल्लेख ; गृहस्थ, वानप्रस्थ आदि के धर्मों का वर्णन), वायु ८.१८६/ १.८.१७७(धर्म के १० लक्षणों का कथन), १०.२६(धर्म द्वारा दक्ष की श्रद्धा, लक्ष्मी आदि १३ कन्याओं को पत्नी रूप में स्वीकार करने का उल्लेख), १०.३३(धर्म व दक्ष - पुत्रियों से उत्पन्न पुत्रों का वृत्तान्त), ५७.११७(यज्ञ के धर्म मन्त्रात्मक तथा तप के अनशनात्मक होने का उल्लेख, यज्ञ की अपेक्षा तप की प्रशंसा), ५९.२१(धर्म की निरुक्ति : श्रौत व स्मार्त धर्म का ज्ञान), ५९.२७(कुशलाकुशल कर्म के धर्म होने का कथन), ५९.४३ (दया, दम, त्याग आदि के लक्षण), ६३.४१/२.२.४१(दक्ष द्वारा १० कन्याएं धर्म को देने का उल्लेख), ६६.२/२.५.२(धर्म की १० भार्याओं से उत्पन्न पुत्रों का वर्णन), ७६.३/ २.१४.३(धर्म की पत्नी विश्वा से उत्पन्न विश्वेदेवों का वर्णन), ९२.७(दीर्घतपा - पुत्र, धनवन्तरि - पिता), १००.१५/२.३८.१५(२० सुतपा देवगण में से एक देव), विष्णु १.१५.११०(८ वसुओं में से एक, मनोहरा पत्नी से उत्पन्न द्रविण आदि पुत्रों के नाम), ४.११.८(हैहय - पुत्र, धर्मनेत्र - पिता, यदु वंश), ४.१७.४(गान्धार - पुत्र, घृत - पिता, द्रुह्यु वंश), ४.२३.६(सुव्रत - पुत्र, सुश्रवा - पिता, मागध बार्हद्रथ वंश), विष्णुधर्मोत्तर १.१०७.९३ (१४ दक्ष पुत्रियों से धर्म का परिणय, पुत्रों के नाम), १.११९ (अरुन्धती - पुत्र धर्म के वंश का वर्णन), १.१४६.३२ (धर्मसूत्रों के रचयिता ऋषियों के नाम), १.१४६.४१ (युधिष्ठिर के प्रश्न के उत्तर में कृष्ण द्वारा धर्मवृद्धि कारक वृषभ के लक्षणों तथा वृषोत्सर्ग विधि का वर्णन), २.८२ (चतुर्वर्णों का आपद धर्म), ३.७७ (धर्म की मूर्ति का रूप), ३.१२१.४(नैमिष में धर्म की पूजा का निर्देश), ३.१७८ (धर्म व्रत), ३.२०९ (धर्म प्राप्ति व्रत), ३.२५५ (धर्म की प्रशंसा), ३.३२२ (स्त्री धर्म), ३.३२३ (राजा का धर्म), शिव १.१७.८४(महिषारूढ धर्म को तरने पर वृषभारूढ धर्म को प्राप्त करने का कथन), २.१.१६.६ (ब्रह्मा द्वारा संकल्प से धर्म के सृजन का उल्लेख), २.१.१६.१९ (दक्ष द्वारा धर्म को प्रदत्त श्रद्धादि १३ पुत्रियों के नाम ; कल्प भेद से दक्ष द्वारा धर्म को १० कन्याएं देने का उल्लेख), २.३.३५ (धर्म का पिप्पलाद - पत्नी पद्मा से संवाद), २.५.३६.१२ (शङ्खचूड - सेनानी, धुरन्धर से युद्ध), ७.१.३२ (क्रियातपजप आदि पंचविध शैव धर्म), ७.२.१०.३०(ज्ञान, क्रिया, चर्या व योग नामक चतुष्पाद धर्म का उल्लेख), स्कन्द १.२.४ (धर्मवर्म राजा द्वारा दान के विषय में आकाशवाणी प्रोक्त श्लोक का श्रवण, नारद द्वारा श्लोक का अर्थ बताकर राजा से दान प्राप्त करना), १.२.५८.३३ (महीसागर सङ्गम तीर्थ द्वारा स्वयं को सर्वश्रेष्ठ घोषित करने पर धर्म द्वारा शाप), १.३.१.९.८५ (धर्मकेतु राजा व उसके अश्व द्वारा अरुणाचलेश की प्रदक्षिणा से शिवगण बनने का कथन), २.४.२.५५ टीका (शालग्राम शिला के दान के अभाव में धर्मचार वैश्य द्वारा जन्मान्तरों में कष्ट प्राप्ति की कथा), २.७.२०.५२ (भागवत धर्म का विवेचन), २.७.२२.१६ ( धर्मवर्ण मुनि द्वारा कलियुग की अवस्था का दर्शन, पितरों के कल्याणार्थ तर्पण, विवाह आदि), २.८.४ (अयोध्या में धर्म हरि स्थान का माहात्म्य : धर्म द्वारा विष्णु की स्तुति), ३.१.३.६३ (धर्म द्वारा शिव का वाहन होने की कामना से आराधना, वृषभ वाहनत्व की प्राप्ति), ३.१.१५ (धर्मसखा : राजा, पुत्रेष्टि यज्ञ द्वारा सौ पुत्रों की प्राप्ति),३.१.२५ ( वत्सनाभ की रक्षा हेतु धर्म द्वारा महिष का रूप ग्रहण करना), ३.२.३ (धर्म के तप में वर्धिनी अप्सरा का विघ्न, धर्म द्वारा वरदान, शिव द्वारा धर्म को वर, धर्मेश्वर लिङ्ग की स्थापना), ३.२.४(धर्मारण्य में क्षेत्र स्थापन नामक अध्याय), ३.२.५.२२(धर्म के संचिनुयन की शृङ्गवान् द्वारा वल्मीक निर्माण से उपमा), ४.१.२९.९३ (धर्मधारा : गङ्गा सहस्रनाम), ४.१.३३.१६९ (धर्मेश-मणिकर्णेश : शिव शक्ति के दक्षिण-वाम कर का रूप), ४.२.५९.८७ (धर्म की धूतपापा कन्या पर आसक्ति, परस्पर शाप - प्रतिशाप से नद व शिला बनना), ४.२.७८ (धर्म पीठ में यम का तप, शिव की स्तुति, शुक शावकों का कल्याण, पार्वती की विश्वभुजा रूप में धर्म पीठ में उपस्थिति), ४.२.७९.६ (धर्म द्वारा अपने तप के साक्षी शुकों के लिए शिव से वर की याचना), ४.२.८०.६ (धर्म पीठ में पार्वती की विश्वभुजा नाम से स्थिति), ४.२.८१.५१ (धर्मेश लिङ्ग का माहात्म्य : इन्द्र द्वारा धर्म रूप में स्नान से ब्रह्महत्या से मुक्ति, दुष्ट प्रकृति वाले दुर्दम राजा द्वारा आराधना से निर्वाण प्राप्ति), ४.२.८३.१०१ (धर्म तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.२.६९.२९ (शूद्र द्वारा अन्त समय में धर्म की प्रशंसा करने से शिप्रा में मत्स्य बनना), ५.२.८१.५३ (ब्राह्मण रूप धारी धर्म द्वारा पिङ्गला कन्या को उसके पूर्व जन्म का वृत्तान्त सुनाना), ५.३.२६.१२६ (चतुर्दशी को श्राद्ध में धर्म हेतु पात्र व उपानह - द्वय ब्राह्मण को देने का निर्देश), ५.३.१९२.७ (नारायण के स्तनों से धर्म का प्रादुर्भाव, दक्ष की १० कन्याओं से धर्म का विवाह, साध्य गण व नर, नारायण आदि पुत्रों की प्राप्ति), ५.३.१९४.५५ (नारायण व श्री के विवाह यज्ञ में ऋत्विजों के वर्णन के संदर्भ में धर्म व वसिष्ठ के होता बनने का उल्लेख), ६.२५९.४७ (धर्म का नील वृषभ का रूप), ७.१.२१.६ (दक्ष द्वारा धर्म को प्रदत्त १० कन्याओं के नाम), हरिवंश ३.१७.३० (धर्म के ब्रह्मचर्य आदि ४ पादों के नाम), वा.रामायण ३.११.८ (धर्मभृत् मुनि द्वारा राम को पञ्चाप्सरस तीर्थ के माहात्म्य का कथन), महाभारत वन २.७५(अष्टविध धर्म का कथन—पितृयान+देवयान), ३१३.४६ (युधिष्ठिर व यक्ष के संवाद में धर्म द्वारा सूर्य को अस्त की ओर ले जाने का उल्लेख), ३१३.६५ (सनातन धर्म की प्रकृति का प्रश्न?), ३१३.६९ (एकपदधर्म्य का प्रश्न : दाक्ष्य के एकपदधर्म्य होने का उल्लेख), ३१३.७५ (पर लोक में तथा सदाफल धर्म का प्रश्न : आनृशंस्य / दया के परलोक में धर्म व त्रयी धर्म के सदाफल होने का उल्लेख), शान्ति १++ (राजधर्म अनुशासन पर्व का आरम्भ), १०९ (युधिष्ठिर - भीष्म संवाद में धर्म के सत्य - अनृत आदि व्यावहारिक स्वरूप का वर्णन), १३१+ (आपद्धर्म पर्व का आरम्भ), १७४+ (मोक्ष धर्म पर्व का आरम्भ), २३६.९ (जीव के योग रथ में धर्म के उपस्थ होने का उल्लेख), २३७.२(धर्म के प्रवृत्ति लक्षण या निवृत्ति लक्षण होने का प्रश्न व उत्तर, धर्मज्ञों के वेदज्ञ, आत्मज्ञ आदि क्रमिक स्तर), २५०.४ (मन और इन्द्रियों की एकाग्रता के परम तप व परम धर्म होने का कथन), २५९ (धर्म के इस लोक या उस लोक में अर्थयुक्त होने का प्रश्न - भीष्म द्वारा धर्माधर्म के स्वरूप के व्यावहारिक निर्णय का प्रतिपादन), २६० (कालप्रभाव से बलवानों के धर्म के अनाचार में परिवर्तित होने का प्रश्न), २६२+ (तुलाधार द्वारा जाजलि मुनि को धर्म विषयक उपदेश), २६४ (तुलाधार द्वारा जाजलि मुनि को धर्म के संदर्भ में श्रद्धा के महत्त्व का वर्णन), २७१ (कुण्डधार जलधर द्वारा ब्राह्मण को धन की अपेक्षा धर्म की प्राप्ति कराने के उद्योग का वृत्तान्त), २७२.१७(ब्राह्मण द्वारा यज्ञ में मृग की हिंसा अस्वीकार करने पर मृग का धर्म रूप में प्रकट होना), २७३ (पापात्मा के अकुशल धर्म तथा प्रज्ञायुक्त धर्मात्मा के कुशल धर्म के लक्षणों का वर्णन), ३४८ (धर्म की चार गतियों में एकान्तिक / सात्वत धर्म की उपदेश परम्परा का वर्णन), अनुशासन १++ (दानधर्म पर्व का आरम्भ), १२६+ (विष्णु, बलदेव, देवगण, धर्म आदि द्वारा धर्म के गूढ रहस्यों का वर्णन), १४१.२८ (शिव - पार्वती संवाद में चातुर्वर्ण्य धर्म का निरूपण), १४२ (वानप्रस्थ, यायावर, वैखानसों, वालखिल्यों आदि के धर्मों का वर्णन), आश्वमेधिक ३२ (ब्राह्मण रूप धारी धर्म व राजा जनक का संवाद), ९२.४२ (धर्म द्वारा क्रोध का रूप धारण कर पय: पात्र में प्रवेश, जमदग्नि के शाप से धर्म का नकुल / नेवला बनना, नकुल द्वारा युधिष्ठिर पर आक्षेप करके नकुलता से मुक्त होना), ९२.५३ दाक्षिणात्य (युधिष्ठिर - कृष्ण संवाद के रूप में वैष्णव धर्म पर्व का आरम्भ), लक्ष्मीनारायण १.३०३ (धर्म की ब्रह्मा के वक्ष से उत्पत्ति, धर्म की भावी पत्नी मूर्ति द्वारा अधिक मास की एकादशी को नारायण पूजा से दक्ष गृह में जन्म लेकर धर्म की पत्नी बनना और नर, नारायण, कृष्ण व हरि पुत्रों को जन्म देना), १.३७२.११७(धर्म के पूर्व, वर्त्तमान व भविष्य के चार - चार पादों के नाम), १.३८२.१९(विष्णु के धर्म व लक्ष्मी के सत्क्रिया होने का उल्लेख), १.४३९ (तपोरत धर्म द्वारा तपभङ्ग करने के लिए प्रेषित वर्धिनी अप्सरा को पतिव्रता के लक्षणों का वर्णन), १.४४०.९४ (धर्मारण्य में धर्म द्वारा किए गए यज्ञ के ऋत्विजों के नामादि), १.४६६ (शुचि अप्सरा व वेदशिरा मुनि - कन्या धूतपापा का धर्म की पत्नी बनने का वृत्तान्त, धर्म की पत्नियों में धूतपापा के सर्वाधिक प्रिय होने का कथन ; धर्म व धूतपापा - पुत्र बिन्दु माधव का माहात्म्य आदि), १.४७३ (सूर्य - पुत्र यम द्वारा तप करके धर्म बनना, यम के सहवासी शुकों द्वारा वर से सर्वज्ञत्व प्राप्त करना), १.५२६.१०० (राजा वसु के शरीर से पाप पुरुष का निकलकर राजा से वर मांगना, राजा द्वारा पाप पुरुष को धर्मव्याध होने का वरदान), १.५३३.६७(धर्म - अधर्म के शरीर में कर्मात्मक होने का उल्लेख), १.५४३ (चार युगों में धर्म के पादों की नवीन रूप में व्याख्या), २.१४०.७८(धर्म प्रासाद के लक्षण), २.२४५.४९ (जीव रथ में धर्म व वैराग्य को कूबर बनाने का निर्देश), २.२६६.८ (सर्प द्वारा धर्मसुमन्तु विप्र का दंशन, धर्मसुमन्तु का सर्प से वार्तालाप, धर्मसुमन्तु विप्र के क्रोध के कारण मृत राजा का सर्प बनना, सर्प द्वारा दिव्य देह प्राप्ति, धर्मसुमन्तु का पुन: जीवित होना), ३.१२.३ (धर्मव्रत विप्र व भक्तिव्रता पत्नी के ११० अल्पजीवी पुत्रों तथा एक दीर्घजीवी पुत्र का वर्णन), ३.१४.५६ (युद्ध में मकर जाति के दैत्यों द्वारा चक्रवर्ती राजा धर्मवाहन के हनन का उल्लेख), ३.२१.३५ (धर्म नामक २५वें ब्रह्म वत्सर में पितरों की प्रार्थना पर श्री अर्धपितृनारायण के प्राकट्य का वर्णन), ३.२१.७२ (तप व भक्ति में श्रेष्ठता के निर्णय के प्रश्न पर धर्मदेव विप्र द्वारा प्लक्ष द्रुम में स्थित देव से पूछने का सुझाव देना), ३.३५.५७ (स्वर्धूनी वत्सर में बृहद्धर्म नृप द्वारा अनुष्ठित राजसूय यज्ञ का वर्णन), ३.१०१.६७ (धूम्रा गौ दान से धर्म लोक की प्राप्ति का उल्लेख), ३.१५२.२ (धर्मदेव की पत्नियों व उनसे उत्पन्न पुत्रों काम, दर्प, नियम आदि का वर्णन), ३.१८७.६९ (धर्मशालायन साधु का चर्मकार के गृह में प्रवेश, साधु द्वारा चर्मकार शब्द की व्याख्या में सारे जगत को चर्मकार कहना), ४.२.११ (राजा बदर के विमानों में धर्म नामक विमान का उल्लेख), ४.६३.५२ (शीलयानी - पति धर्मभट द्वारा कथा श्रवण करने व व्यास का सम्मान आदि करने से अक्षर धाम की प्राप्ति), ४.८५.८ (नागविक्रम - सेनापति धर्मवज्र द्वारा नन्दिभिल्ल की सेना से युद्ध का वर्णन), कथासरित् १.७.८८ (शिबि, कपोत व श्येन की संक्षिप्त कथा), ९.१.१७ (अलङ्कारशील विद्याधर नृप व काञ्चनप्रभा - पुत्र, तप हेतु वन गमन), ९.३.९० (धर्मवती : स्वामिभक्त वीरवर की पत्नी, पति द्वारा पुत्र सत्त्ववर को देवी को अर्पित करने, धर्मवती द्वारा पुत्र व पुत्री की चिता में जलने व पुनर्जीवन का वृत्तान्त), १०.४.२११ (दुष्टबुद्धि द्वारा मित्र धर्मबुद्धि की स्वर्ण मुद्राओं की चोरी करने व राजाधिकारियों द्वारा न्याय करने की कथा), १२.२.४८ (राजा भद्रबाहु द्वारा राजा धर्मगोप के हस्ती भद्रबाहु को युक्तिपूर्वक मरवाकर राजा की कन्या अनङ्गलीला को प्राप्त करना), १२.२.१२५ (धर्मसेन : विद्युल्लेखा - पति, अन्तिम समय में हंस के ध्यान से हंस बनने का वृत्तान्त), १२.५.१४५ (धर्म द्वारा वराह की मुनीन्द्रता की परीक्षा हेतु मायामय सिंह का निर्माण, वराह द्वारा सिंह को स्वमांस प्रस्तुत करना), १२.३१.५ (राजा धर्म की पुत्री लावण्यवती को सब राजाओं द्वारा मांगने पर राजा द्वारा नगर से पलायन, वन में भिल्लों द्वारा राजा का वध, राजा की रानी व पुत्री का क्रमश: पुत्र व पिता द्वारा वरण करने का वृत्तान्त ) ; द्र. चारुधर्मा, बृहद्धर्म, सत्यधर्म, सुधर्मा dharma
|