पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Dvesha to Narmadaa ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Dhee/intellect, Dheeman, Dheera, Dheevara, Dhundhu, Dhundhumaara, Dhuupa etc. are given here. धी भागवत ११.११.४४(वायु में मुख्य धी द्वारा ईश्वर की उपासना का निर्देश), वायु ९६.१४०/२.३४.१४०(धियान्त : हृदीक के १० पुत्रों में से एक), लक्ष्मीनारायण २.१४.८४ (कम्भरा लक्ष्मी द्वारा धी भक्षिणी राक्षसी का वध), २.९४.७५ (प्रद्युम्न - पत्नी ) ; द्र. धीरधी
धीमान् अग्नि १०७.१६ (नर - पुत्र, महान्त - पिता, ऋषभ वंश), ब्रह्माण्ड १.२.१४.६९(महावीर्य - पुत्र, महान् - पिता, नाभि वंश), १.२.३५.४(वैण रथीतर के ४ शिष्यों में से एक), १.२.३५.६(बाष्कलि भरद्वाज के ३ शिष्यों में से एक), २.३.६६.२२(पुरूरवा व उर्वशी के ६ पुत्रों में से एक), मत्स्य ९.१६(तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), वायु ३३.५८ (विराट्/महावीर्य? - पुत्र, नर - पौत्र, महान् - पिता), ९१.५१/२.२९.४८(पुरूरवा व उर्वशी के ६ पुत्रों में से एक), विष्णु २.१.३९(महावीर्य - पुत्र, महान् - पिता, नाभि वंश ) dheemaan/ dhiman
धीर अग्नि १८४.१३ (ब्राह्मण, रम्भा - पति, कौशिक - पिता, पुत्र द्वारा बुधाष्टमी व्रत के पुण्य दान से मुक्ति), पद्म ६.१८४ (शिव द्वारा भृङ्गिरिटि के पूर्व जन्म का कथन : पूर्व जन्म में ब्रह्मा का वाहन हंस, गीता के दशम अध्याय श्रवण से जन्मान्तर में धीरधी ब्राह्मण बनना), भागवत ११.१६.२८ (भगवान के धीरों में देवल असित होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.६०.६ (राजा उदय द्वारा धीरवीर सरोवर तट पर कृष्ण के विराट रूप के दर्शन), ३.२३०.३ (धीरपर्वा नामक धीवर द्वारा मत्स्य हिंसा से नरक यातनाओं की प्राप्ति, जल प्लावन में मानवों की रक्षा के पुण्य से वैष्णव नौपति के गृह में जन्म ) dheera
धीवर ब्रह्माण्ड १.२.१८.५४(ह्रादिनी नदी द्वारा प्लावित प्राची जनपदों के निवासियों में से एक), मत्स्य १२१.५३(वही), वायु ४७.५१(वही), ६२.१२३/२.१.१२३(राजा वेन की बाहु के मन्थन से उत्पन्न निषाद से धीवरों की उत्पत्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.५४७.५० (आख्यान के रूप में भवाब्धि में द्वीप - द्वीप में धीवरों के बसने, काम, क्रोध, धर्म, अधर्म आदि वृक्ष होने का वर्णन), २.१६१.१३ (धनमेद नामक धीवर द्वारा तुरी देवी से दास्य भक्ति की प्राप्ति, जाल द्वारा पकडे गए मत्स्य का कृष्ण रूपी महामत्स्य के रूप में दर्शन आदि), २.१९२.१९ (श्रीहरि का वल्लीजीवन मुनि के साथ बृहच्छर नृपति की धीवरा नगरी में आने का कथन), कथासरित् ६.१.१२५ (धीवरों को मत्स्य भक्षण करते देखकर विप्र व चाण्डाल तपस्वियों के मन के भावों और परिणामस्वरूप जन्मान्तर में जन्म की कथा ) dheevara
धुनि वायु ६६.३१/२.५.३१(धर्म व विश्वा के १० विश्वेदेव पुत्रों में से एक), ६७.१२६/२.६.१२६(तीसरे मरुद्गण में से एक मरुत), ६९.१३२/२.८.१२७ (ब्रह्मधना के १० पुत्रों में से एक )
धुन्धली पद्म ६.१९६ (आत्मदेव - पत्नी, धुन्धुकारी - माता), भागवत ०.४ (आत्मदेव - पत्नी, धुन्धुकारी व गोकर्ण पुत्रों की कथा )
धुन्धु गणेश २.८.१ (महोत्कट गणेश द्वारा शुक रूप धारी उद्धत व धुन्धु राक्षस - द्वय का वध), ब्रह्म १.५.६३ (मधु राक्षस का पुत्र, उत्तङ्क ऋषि के आग्रह पर कुवलाश्व द्वारा धुन्धु के वध का वृत्तान्त), ब्रह्माण्ड २.३.६.३१(अररु - पुत्र, कुवलाश्व द्वारा वध का उल्लेख), २.३.६३.३० (मधु राक्षस - पुत्र, बृहदश्व - पुत्र कुवलाश्व द्वारा धुन्धुमार नाम प्राप्ति का वृत्तान्त : उत्तङ्क व धुन्धु की कथा), भागवत ९.६.२२(धुन्धु असुर की मुखाग्नि से भस्म होने से बचे कुवलाश्व के ३ पुत्रों के नाम), मत्स्य ४९.२(मनस्यु - पुत्र, बहुविध - पिता), लिङ्ग २.८ (धुन्धुमूक द्विज : विशल्या - पति, दुष्ट पुत्र को जन्म देना, पूर्व जन्म में मेघवाहन?), वामन ७८ (दनु व कश्यप - पुत्र, धुन्धु द्वारा जन, तपो, सत्य आदि लोकों को जीतने की इच्छा पूर्ति हेतु अश्वमेध यज्ञ की दीक्षा, वामन विष्णु द्वारा पराभव, बलि की कथा से साम्य), वायु ६८.३१/२.७.३१(अररु - पुत्र, कुवलाश्व द्वारा वध का उल्लेख), ८८.२९/२.२६.२९(उत्तङ्क के अनुरोध पर कुबलाश्व द्वारा धुन्धु असुर के निग्रह का वृत्तान्त), ८८.३७/२.२६.३७(मनु? - पुत्र, कुबलाश्व - उत्तङ्क द्वारा निग्रह की कथा), ९९.१२२/२.३७.११८(जयद - पुत्र, बहुगवी - पिता, पूरु वंश), विष्णुधर्मोत्तर १.१६ (धुन्धु का उज्जानक समुद्र में वास, कुवलाश्व द्वारा वध), हरिवंश १.११ (मधु - पुत्र, कुवलाश्व द्वारा वध), लक्ष्मीनारायण २.५७.१०० (रक्तबीज दैत्य का अंश), २.५८.२७ (भविष्य में रक्तबीज का दनु के गर्भ से धुन्धु नाम से उत्पन्न होने का कथन, धुन्धु द्वारा मह, जन, तपो लोकों को जीतने हेतु यज्ञ, विष्णु का वामन रूप में प्रकट होकर विराट रूप धारण करना व धुन्धु को पाताल में भेजना, पुन: भविष्य में धुन्धु द्वारा अन्धकासुर की सहायता, श्रीहरि द्वारा सुदर्शन से धुन्धु का वध ), द्र. सुद्यु(भागवत ९.२०.३, विष्णु ४.१९.१) dhundhu
धुन्धुकार भविष्य ३.३.५.१० (कीर्तिमालिनी - पुत्र, पृथ्वीराज - भ्राता, मथुरा का राजा), ३.३.६.५४ (जयचन्द्र - अनुज रत्नभानु से युद्ध में धुन्धुकार की मृत्यु), ३.३.३२.१५६ (पृथ्वीराज - सेनानी, लक्षण द्वारा वध )
धुन्धुकारी पद्म ६.१९६+ (धुन्धली व आत्मदेव - पुत्र, मृत्यु पर प्रेत बनना, भ्राता गोकर्ण द्वारा धुन्धुकारी की मुक्ति का उद्योग), भागवत ०.५ (आत्मदेव व धुन्धली - पुत्र, व्यसनी, गोकर्ण द्वारा प्रेत योनि से उद्धार ) dhundhukaaree/ dhundhukari
धुन्धुमार ब्रह्म १.५.७२ (बृहदश्व - पुत्र, दृढाश्व आदि का पिता, कुवलाश्व द्वारा धुन्धु को मारने से धुन्धुमार नाम की प्राप्ति का वृत्तान्त), मत्स्य १२.३१(धुन्धुमार / कुवलाश्व के पूर्वापर वंश का वर्णन), वायु ८८.३० (कुवलाश्व द्वारा धुन्धुमार नाम प्राप्ति की कथा), स्कन्द ४.२.६६.२६ (धुन्धुमारेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.९०.४६ (तालमेघ दैत्य का सैनिक, तालमेघ की आज्ञा से गरुडारूढ कृष्ण को पकडने के लिए जाना, कृष्ण द्वारा वध), ६.३८ (धुन्धुमारेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), हरिवंश १.११४६ (कुवलाश्व द्वारा धुन्धु असुर को मारने से धुन्धुमार नाम की प्राप्ति), १.१२.१ (धुन्धुमार के दृढाश्व आदि ३ पुत्रों के वंश का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.५६४.८४ (राजा धुन्धुमार द्वारा वराह का वेधन करने पर वराह का अङ्गद नामक शम्भुगण के रूप में प्राकट्य, राजा के अश्व द्वारा नर्मदा में स्नान करने पर अश्व द्वारा दिव्य रूप धारण करना व अपना पूर्व वृत्तात सुनाना, राजा के समक्ष त्रिनेत्रा युवती कपिला नदी का प्रकट होना आदि), ३.९४.६५ (उत्तङ्क ऋषि के अनुरोध पर धुन्धु राक्षस को मारने हेतु कुवलाश्व - पुत्रों द्वारा भूमि का खनन व धुन्धु की ज्वाला से भस्म होना, कुवलाश्व द्वारा धुन्धु का वध, वंश वर्णन ) dhundhumaara
धुरन्धर शिव २.५.३६.१२ (शङ्खचूड - सेनानी, धर्म से युद्ध), कथासरित् ८.५.२६ (श्रुतशर्मा विद्याधर - सेनानी धुरन्धर के सूर्यप्रभ - सेनानी विकटाक्ष से युद्ध का उल्लेख), ८.७.२६ (कुञ्जरकुमार द्वारा धुरन्धर को रथविहीन करने का उल्लेख )
धुरि वायु ९९.१३०/२.३७.१२६(धुर्य : प्रतिरथ - पुत्र, कण्ठ - पिता, पूरु वंश), स्कन्द ५.३.२८.११ (त्रिपुर नाशार्थ शिव के रथ में अश्विनी - द्वय को रथ की धुरि बनाने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.२०३.१ (धुरिल नामक पुर में तूलवायि नामक सूत्रवायक भक्त का वृत्तान्त ) dhuri
धूतपाप ब्रह्माण्ड २.३.१३.२०(गोकर्ण का निकटवर्ती तीर्थ, शङ्कर के तप का स्थान), मत्स्य २२.३९(पितृ श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थों में से एक), वराह १४८.५८ (स्तुतस्वामि क्षेत्र में स्थित धूतपाप नामक स्थान के माहात्म्य का वर्णन), स्कन्द ५.१.३७.९ (धूतपाप तीर्थ का माहात्म्य : शिव के त्रिशूल द्वारा अन्धक वध के पश्चात् भोगवती में पाप प्रक्षालन का स्थान),५.३.११० (धौतपाप तीर्थ का माहात्म्य :जनार्दन की दैत्य हत्या पाप से निवृत्ति), ५.३.१८४ (धौतपाप तीर्थ के नाम का कारण व माहात्म्य : ब्रह्मा के शिर छेदन से उत्पन्न ब्रह्महत्या से शिव की मुक्ति , धौतेश्वरी देवी का दर्शन), ५.३.२३१.१९ (२ धौतपाप तीर्थ होने का उल्लेख ) dhuutapaapa/dhootapaapa
धूतपापा मत्स्य ११४.२२(हिमालय से निकली नदियों में से एक), १२२.७१ (कुश द्वीप की सात नदियों में से एक, अन्य नाम योनि), वामन ५७.८० (धूतपापा नदी द्वारा स्कन्द को गण प्रदान करना), स्कन्द ४.२.५९.४२ (वेदशिरा मुनि व शुचि अप्सरा की कन्या, धूतपापा द्वारा तप व धर्म की आसक्ति का तिरस्कार, धर्म के शाप से शिला बनना), लक्ष्मीनारायण १.४६६.१३ (वेदशिरा मुनि व शुचि अप्सरा से धूतपापा कन्या के जन्म का वृत्तान्त, धर्म को पति रूप में प्राप्त करने के लिए धूतपापा द्वारा तप, जन्मान्तर में दक्ष - कन्या व धर्म - पत्नी मूर्ति होना ) dhuutapaapaa/dhootapaapaa
धूनी लक्ष्मीनारायण ४.२२.९८ (बालयोगिनी के श्रीकृष्ण से विवाह के संदर्भ में करुणा नदी के तट पर धूनी ग्राम में विश्राम का उल्लेख )
धूप अग्नि २२४.२०(शौच, आचमन आदि कर्माष्टक में से एक), २२४.२५(धूप हेतु २१ द्रव्यों नख, कुष्ठ आदि का कथन), भविष्य १.१४३.२० (दण्डनायक वेला आदि ५ धूप वेलाओं का कथन), १.१९६.१६ (चन्दन, अगुरु, गुग्गुल आदि द्रव्यों से निर्मित धूपों के दान से प्राप्त विशिष्ट फलों का कथन), लिङ्ग १.८१.३४ (विभिन्न प्रकार की धूपों का उल्लेख), वराह ११५.१८ (विष्णु को धूपदान का मन्त्र), विष्णुधर्मोत्तर १.९८ (ग्रहों, नक्षत्रों के लिए दातव्य धूप का कथन), शिव ७.१.३३.४१(सद्योजात, वामदेव आदि शिवों के लिए देय धूपों के विधान का कथन ) स्कन्द २.५.८.२० (विभिन्न द्रव्यों से बनी धूपों के दान का फल), ५.३.२६.११७ (नवमी को गन्धधूप दान के फल का कथन : पिता, पुत्र, पति आदि की रण में रक्षा ), ५.३.५१.३३ (धूप दीपादि के आग्नेय तथा आठ पुष्पों में से एक होने का कथन), ६.२३९.४५(चातुर्मास में धूप दान के महत्त्व का कथन), लक्ष्मीनारायण ३.७९.२२ (विभिन्न द्रव्यों से निर्मित धूपों द्वारा देवों, यक्ष - राक्षस, भूतादि की तृप्ति का कथन ) dhoopa/dhuupa |