पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Dvesha to Narmadaa ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Dhaataa - Vidhaataa, Dhaatu / metal, Dhaatri, Dhaanya / cereal, Dhaarnaa, Dhaarni, Dhaaraa, Dhishanaa etc. are given here. धातु गरुड २.३०.५१/२.४०.५१(मृतक की धातु में गन्धक देने का उल्लेख), २.३२.५३(देह में धातुओं का परिमाण), देवीभागवत १२.१०.३४(ऋतुओं के अनुसार कांस्य, ताम्र, सीस, आरकूट, पञ्चलौह, रौप्य, स्वर्ण शालाओं का वर्णन), ब्रह्म १.७०.४८ (शरीर में स्थित कफादि धातुएं), ब्रह्माण्ड ३.४.२०.१९(धातुनाथा : ललिता की सहचरी देवी धातुनाथा द्वारा असुरों की सेना के मज्जा, शुक्र आदि के पान का कथन), भविष्य ३.४.२३.५६ (अयोध्या के राजा राक्षसारि द्वारा स्वर्ण, ताम्र आदि धातुओं का मूल्य आर धातु के सापेक्ष निश्चित करने का कथन), स्कन्द ४.१.२१.३१ (धातुओं में हाटक की श्रेष्ठता), लक्ष्मीनारायण १.३०.१८(रसों द्वारा धातु प्राप्ति का उल्लेख ) dhaatu/dhatu
धातृशर्मा भविष्य ३.४.७.५ (चैत्र मास के सूर्य के माहात्म्य के संदर्भ में धातृशर्मा द्विज का वृत्तान्त : परिवार की समृद्धि हेतु सूर्य की आराधना, मोक्ष, कलियुग में सूर्य - अवतार ईश्वर नाम से जन्म )
धात्री पद्म १.६० (धात्री वृक्ष की महिमा ; चाण्डाल का धात्री फल भक्षण से उद्धार ; प्रेतों का उद्धार), ४.२२ (कार्तिक में धात्री का माहात्म्य), ६.१०५ (तमोगुणी?), ६.१२१ (धात्री का माहात्म्य ), ७.२४ (धात्री वृक्ष का माहात्म्य), ब्रह्माण्ड १.२.१०.७७ (भव - पत्नी, उशना - माता), ३.४.४४.८९(नाभि चक्र? की डंकारी आदि १० शक्तियों में से एक), स्कन्द २.४.१२ (धात्री की ब्रह्मा के अश्रुओं से उत्पत्ति, महिमा, मूषक की मुक्ति की कथा, धात्री वृक्ष में देवों का वास), २.४.२२.२५ (स्वरा देवी द्वारा देवों को प्रदत्त बीजों से धात्री वृक्ष की उत्पत्ति), २.४.२३.२ (धात्री वृक्ष की धात्री देवी से उत्पत्ति, तमोगुणी, धात्री व तुलसी का विष्णु के प्रति सदा रागयुक्त होने का कथन), ४.१.२९.९२ (गङ्गा सहस्रनामों में से एक), योगवासिष्ठ ३.१०१ (बालक - धात्री आख्यान), लक्ष्मीनारायण १.४४१.९४(वृक्ष रूपी कृष्ण के दर्शन के लिए सरस्वती के धात्री वृक्ष बनने का उल्लेख ) ; द्र. आमलक dhaatree/ dhaatri/ dhatri
धान लक्ष्मीनारायण २.२४८.५ (सोमयाग में निर्वाप के ५ द्रव्यों में धान की व्याख्या : भ्रष्ट यव, देवता हरित्वान इन्द्र )
धान्य अग्नि १२१.५० (धान्य छेदन हेतु नक्षत्र विचार), पद्म १.२१ (धान्य शैल निर्माण व दान), ब्रह्म २.५० (धान्य तीर्थ का माहात्म्य), भविष्य २.२.५.१४ (धान्य सूक्त का कलश स्थापना में विनियोग), २.२.५.२६ (तिल, माष आदि ५ धान्य गणों के नाम), ४.१९५ (धान्य शैल दान की विधि व माहात्म्य), मत्स्य ८३.४(धान्यशैल दान की विधि), १९६.२७(धान्यायनि : आंगिरस कुल के ऋषि, त्र्यार्षेय प्रवर), २७६.७(१८ प्रकार के धान्य होने का उल्लेख मात्र), मार्कण्डेय १५.७ , विष्णुधर्मोत्तर ३.३१४ (धान्य दान), शिव १.१५.४९ (धान्य दान से समृद्धि प्राप्ति का कथन), स्कन्द १.२.१३.१८३(शतरुद्रिय प्रसंग में अश्वतर नाग द्वारा धान्यमय लिङ्ग की मध्यम नाम से पूजा का उल्लेख), ५.३.५६.१२१(धान्य दान से शाश्वत सौख्य की प्राप्ति का उल्लेख), ५.३.१५९.२० (धान्यहर्त्ता के मूषक होने का उल्लेख), वा.रामायण ६.७१.३० (धान्यमालिनी व रावण - पुत्र अतिकाय के बल का वर्णन ) dhaanya
धान्यपाल भविष्य ३.३.३२.५३ (युयुत्सु का अंश), ३.३.३२.२१४ (पृथ्वीराज द्वारा धान्यपाल का वध), ३.४.१७.३७ (धान्यपाल वैश्य द्वारा मूलगण्डान्त में उत्पन्न त्यक्त पुत्र के कबीर बनने की कथा ) dhaanyapaala/dhanyapal
धाम पद्म १.२० (धाम व्रत माहात्म्य व विधि), मत्स्य १०१.७९ (धाम व्रत की संक्षिप्त विधि), वायु ६२.४१/२.१.४१(ज्योतिर्धामा : तामस युग के सप्तर्षियों में से एक), विष्णु ३.१.१८(ज्योतिर्धामा : तामस युग के सप्तर्षियों में से एक), लक्ष्मीनारायण १.२६४ (पुरुषोत्तम मास में धामदा एकादशी व्रत का माहात्म्य), ३.१७०.३ (श्रीकृष्ण के ३४ धामों के नाम ); द्र. त्रिधामा, सुधामा dhaama
धारणा अग्नि ३४८.१२ (ह अक्षर के धारण तथा रुद्र कार्य में प्रयोग का उल्लेख), ३७५ (धारणा योग का वर्णन), गणेश २.१४१.३४ (१२ उत्तम प्राणायामों द्वारा एक धारणा बनने का कथन), गर्ग १.१६.२६(विराट् की शक्ति धारणा का उल्लेख), नारद १.४७.५५ (धारणा योग हेतु विष्णु का चिन्त्य स्वरूप), ब्रह्माण्ड १.१.२.४२(प्राणादि पांच वृत्तियों की धारणा द्वारा शरीर का पूरण करने का कथन?), ३.४.२२.७५(परशुराम द्वारा अष्टाङ्ग योग युक्त तप के संदर्भ में धारणा द्वारा चञ्चल मन को स्थिर करने का उल्लेख), भागवत २.१.२२ (शुक द्वारा परीक्षित् को भगवान् के विराट् स्वरूप की धारणा का वर्णन), २.२.८ (भगवान् के विभिन्न शोभाओं वाले विग्रहों की धारणाओं का वर्णन), ३.२८.११ (अष्टाङ्ग योग विधि वर्णन के अन्तर्गत भगवान् के सुशोभित रूपों की धारणाओं का वर्णन), ४.१८.२०(मायावियों द्वारा मय को वत्स बनाकर धारणामयी पृथिवी से पय: रूप में धारणामयी माया दोहन का उल्लेख), ११.१५२ (मन की विभिन्न धारणाओं से विभिन्न सिद्धियां प्राप्त करने का वर्णन), वायु ११.२२(धारणा के द्वादशायाम का उल्लेख), ११.२९(मन से धारणा योग होने का उल्लेख), ३०.५४(सती द्वारा आग्नेयी धारणा द्वारा स्वयं को भस्म करने का उल्लेख), विष्णु ६.७.७९ (शुद्ध धारणा हेतु भगवत् स्वरूप का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर ३.२८२ (धारणा योग का वर्णन), स्कन्द ४.१.४१.१११(पांच भूतों की धारणा का कथन), ४.१.४१.१६१(धारणा के लाभों का कथन : परकाय प्रवेश आदि), ५.२.१३.३१ (काम द्वारा शिव की देह में प्रवेश करने पर शिव द्वारा प्रत्याहार और बाह्याग्नि में धारणा द्वारा देहस्थित काम को जलाने का संकल्प), ५.३.४२.३८ (पिप्पलाद द्वारा कृत्या उत्पन्न करने हेतु आग्नेयी धारणा द्वारा अग्नि उत्पन्न करने का उल्लेख, अग्नि से कृत्या की उत्पत्ति), योगवासिष्ठ ६.२.८७.५७ (धरा धारणा का वर्णन), ६.२.९०.१० (जल धारणा द्वारा जगत की अनुभूति का वर्णन), ६.२.९१ (तेज: धारणा का वर्णन), ६.२.९२ (वातमयी धारणा का वर्णन), महाभारत शान्ति २३६.१४ (सात धारणाओं व इनकी पार्श्ववर्ती व पृष्ठवर्ती सात प्रधारणाओं का उल्लेख ; पृथिवी, जल आदि की धारणाओं में विशिष्ट अनुभवों का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.५८ (हरि मूर्ति धारणा की विधि), ३.९.१(प्रधारणा नामक १२वें वत्सर में भक्त शोणभद्र के यज्ञ में अग्नि के उपद्रव से दग्ध जनों के मोक्षार्थ अनादि भद्र नारायण का प्राकट्य ) dhaaranaa/dharna
धारणी कूर्म १.१३ (धारिणी : मेरु - पत्नी, आयति व नियति कन्याओं की माता), नारद १.६५.२७(धारिणी : रवि की १२ कलाओं में से एक), ब्रह्माण्ड १.२.१३.३६ (स्वधा व पितर - कन्या, मेरु - पत्नी, मन्दर व तीन कन्याओं की माता), भागवत ४.१.६४ (धारिणी : पितर व स्वधा - कन्या), वायु ३०.३३ (बर्हिषद् पितरों की कन्या, मेरु - पत्नी, मन्दर आदि पुत्र व पुत्रियां), विष्णु १.१०.१९(धारिणी : अग्निष्वात्त व बर्हिषद् पितरों की स्वधा पत्नी से उत्पन्न २ योगिनी कन्याओं में से एक), स्कन्द ३.२.९.४९ (धारीण गोत्र के ऋषियों के ३ प्रवर व गुण), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१३२ (श्रीकृष्ण - पत्नी दुग्धा की धारिणी पुत्री व धाता पुत्र का उल्लेख ) ; द्र. वंश पितर dhaaranee/ dhaaarinee/ dhaarini
धारा नारद १.६६.९८(विमल विष्णु की शक्ति धारा का उल्लेख), पद्म ६.१४३ (पाण्डु पुत्रों द्वारा स्थापित सप्त धारा तीर्थ का माहात्म्य, मङ्कि द्वारा पुत्र प्राप्ति), वराह १४८.६५ (मणिपूर गिरि पर धूतपाप होने तक धारा पतन न होने का कथन), १५४.९ ( मथुरा में यमुना में धारापतन तीर्थ का माहात्म्य : नाक लोक की प्राप्ति आदि), वायु ६६.२३/२.५.२३(धार : चन्द्रमा के ३ पुत्रों में से एक), स्कन्द २.३.६.४३ (मानसोद्भेद तीर्थ के दक्षिण में द्रव धारा तीर्थ का माहात्म्य), २.३.६.६० (मानसोद्भेद तीर्थ के पश्चिम में वसुधारा तीर्थ का माहात्म्य), २.३.७.१ (मानसोद्भेद तीर्थ की नैर्ऋत्य दिशा में पांच तीर्थों की द्रव रूप पञ्च धारा तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.९७.१७८ (व्यास तीर्थ में सिद्धेश्वर लिङ्ग की पूजा से धारासर्प के सिद्ध बनने का उल्लेख), ६.१६८+ (देवशर्मा - पुत्री, बाल विधवा, शङ्ख तीर्थ में आराधना, अरुन्धती से मिलन, देवी का प्रकट होकर धारा नाम ग्रहण करना, विश्वामित्र द्वारा इस शक्ति का उपयोग वसिष्ठ के मारणार्थ करना, धारा नदी की उत्पति), लक्ष्मीनारायण ३.८१.७७ (धारा ग्राम में विप्र शतानन्द व उसकी भक्त पत्नी विनोदिनी का वृत्तान्त), ४.८०.१५ (राजा नागविक्रम के सर्वमेध यज्ञ में धारायण के होता ऋत्विज होने का उल्लेख), कथासरित् ९.५.१५३(पुत्र प्राप्ति हेतु कुमार धारा के विघ्नों का कथन ), द्र. मधुधारा, रत्नधारा, वसुधारा, सप्तधारा, वेदधारा dhaaraa/ dhara
धार्ष्ट देवीभागवत ७.२.२३ (धृष्ट - पुत्र, ब्रह्म व क्षत्र कर्मों में रुचि का उल्लेख), वायु ८४.४(धृष्ट के पुत्रों के गणों में से एक )
धावक कथासरित् १२.५.२११ (धावक / धोबी के खर द्वारा ब्राह्मण की शाकवाटिका के शाक का भक्षण, ब्राह्मणी द्वारा खर के ताडन पर पुर अधिकारी का विचित्र निर्णय )
धिषणा अग्नि १८.२० (हविर्धान व आग्नेयी धिषणा से उत्पन्न ६ पुत्रों प्राचीनबर्हि, शुक्र आदि के नाम? - हविर्धानात्षडाग्नेयी धिषणाजनयत्सुतान् । प्राचीनबर्हिषं शुक्रं गयं कृष्णं व्रजाजिनौ ॥), पद्म ६.७.४१ (धिषणा/बृहस्पति द्वारा असुरों से युद्ध में मृत देवों का संजीवन - धिषणस्तु जगन्नाथमुवाच त्वरितं तदा। ओषधीभिरहं स्वामिन्जीवयिष्यामि निर्जरान् ।।), ब्रह्माण्ड १.२.१२.१८ (धिष्ण्य अग्नियां : शंस्य/आहवनीय अग्नि द्वारा १६ नदियों रूपी धिष्णियों से १६ धिष्ण्य पुत्र उत्पन्न करने का कथन - आत्मानं व्यदधात्तासु धिष्णीष्वथ बभूव सः। कृत्तिकाचारिणी धिष्णी जज्ञिरे ताश्च धिष्णयः ), १.२.१२.२७(आग्नीध्र, होता आदि की ८ धिष्ण्य अग्नियों का कथन, तु. शुक्ल यजुर्वेद - विभुः प्रवाहणोऽग्नीध्रस्तेषां धिष्ण्यस्तथा परे । विधीयंते यथास्थानं सौत्येऽह्नि सवने क्रमात्), १.२.३६.३०(धिष्ण्य : १२ संख्या वाले प्रतर्दन देवगण में से एक - अवध्योऽवरतिर्देवो वसुर्धिष्ण्यो विभावसुः ।।), १.२.३७.२३(हविर्धान की पत्नी, प्राचीनबर्हि आदि ६ पुत्रों की माता - हविर्धानात्षडाग्नेयी धिषणाजनयत्सुतान् ।। प्राचीनबर्हिषं शुक्लं गयं कृष्णं प्रजाजिनौ ।।), भागवत २.१.३० (विष्णु के भ्रू विलास के परमेष्ठी धिष्ण्य /ब्रह्मलोक होने का उल्लेख - तद्भ्रूविजृम्भः परमेष्ठिधिष्ण्यं), ४.८.११ (सुरुचि द्वारा ध्रुव को नृपति के धिष्ण्य/पद पर बैठने से रोकने का उल्लेख - न वत्स नृपतेर्धिष्ण्यं भवान् आरोढुमर्हति । न गृहीतो मया यत्त्वं कुक्षौ अपि नृपात्मजः ॥ ), ६.६.२० (कृशाश्व? - पत्नी धिषणा के वेदशिरा आदि चार पुत्रों के नाम - धिषणायां वेदशिरो देवलं वयुनं मनुम्।), ८.५.३९(पुरुष/परमात्मा की धिषणा से विरिञ्च/ब्रह्मा की उत्पत्ति का उल्लेख - मन्योर्गिरीशो धिषणाद्विरिञ्चः ।), ११.१६.२१(भगवान के धिष्ण्यों में मेरु होने का उल्लेख - धिष्ण्यानामस्म्यहं मेरुर्गहनानां हिमालयः।), १२.८.४३(ब्रह्मा की आयु के संदर्भ में धिष्ण्य शब्द का प्रयोग - ब्रह्मा बिभेत्यलमतो द्विपरार्धधिष्ण्यः ), मत्स्य ४.४५ (अग्नि - कन्या, हविर्धान - पत्नी, प्राचीनबर्हि आदि ६ पुत्र - हविर्धानात् ष़डाग्नेयी धिषणाऽजनयत् सुतान्।। प्राचीनबर्हिषं साङ्गं यमं शुक्रं बलं शुभम्।। ), ५१.१७ (धिष्ण्य अग्नि के १६ नदियों से उत्पन्न पुत्र, स्वरूप का कथन - विभुः प्रवाहणोऽग्नीध्रस्तत्रस्था धिष्णवोऽपरे ।), वामन ९०.१३ / ८९.१३ (अवन्ति देश में विष्णु के धिष्ण्य नाम से वास का उल्लेख - अवन्तिविषये धिष्ण्यं निषधेष्वमरेश्वरम्।), वायु २९.२७(८ धिष्ण्य अग्नियों के नाम तथा उनके दूसरे नाम - पौत्रेयस्तु ततो ह्यग्निः स्मृतो यो हव्यवाहनः। शान्तिस्वाग्निः प्रचेतास्तु द्वितीयः सत्य उच्यते ।।), ६५.१०१/२.४.१०१ (धिष्णु : बृहस्पति व पथ्या - पुत्र, सुधन्वा – पिता - धिष्णुः पुत्रस्तु पथ्यायां संवर्तश्चैव मानसः। विचित्तश्च तथायस्यः शरद्वांश्चाप्युतथ्यजः ।।), ६९.४६/२.८.४६(स्वर्गीय संगीत में दक्ष ७ गन्धर्वों में से एक - चतुर्थो धिषणश्चैव ततो वासिरुचिस्तथा ॥ ), विष्णु १.१४.२(आग्नेयी धिषणा व हविर्धान के ६ पुत्रों के नाम - शिखण्डिनी हविर्द्धानमन्तर्द्धानाद् व्यजायत ।। हविर्द्धानात् षडाग्नेयी धिषणाजनयत् सुतान् ।), स्कन्द ५.३.२२.११ (गार्हपत्य अग्नि के पुत्रद्वय द्वारा नर्मदा व अन्य १६ नदियों से धिष्ण्यप संज्ञक पुत्र उत्पन्न करना - व्यभिचारात्तु भर्तुर्वै नर्मदाद्यासु धिष्णिषु । उत्पन्नाः शुचयः पुत्राः सर्वे ते धिष्ण्यपाः स्मृताः ॥), लक्ष्मीनारायण ३.५.५६ (यम नामक वत्सर में देवों में धिष्ण्य पद हेतु विवाद, अनादि आदित्य नारायण द्वारा प्रकट होकर देवों के धिष्ण्यों का निर्णय - यमाख्ये वत्सरे चाद्ये कल्पे चाद्ये मनौ तथा । देवतानां विवादोऽभूद् धिष्ण्यार्थं स्वर्गवासिनाम् ।।), ३.३२.१३ (धिष्णि : शंस्य अग्नि के नदियों से उत्पन्न पुत्रों के नाम? - तथा शंस्यसुतानन्यान् नदीषु जातसंभवान् । धिष्णिसंज्ञानपि पुत्रानभक्षयन्महासुरः ।।), ४.२५.६३ (श्रीकृष्ण के राजाओं के धिष्ण्य में वास का उल्लेख - धनिनां दानभावेऽस्मि राज्ञां धिष्ण्ये वसाम्यहम् ।।), ४.४४.६३ (धिष्ण्य के वैधस / ब्राह्म बन्धन होने तथा उसे त्यागने का निर्देश - वैधसं बन्धनं धिष्ण्यं तत्त्यागे तुष्यति प्रभुः ।। ) ; द्र. वंश पृथु dhishanaa
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