पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Dvesha to Narmadaa ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Dwesha, Dvaipaayana, Dhana/wealth, Dhananjaya, Dhanada etc. are given here. द्वेष लिङ्ग २.९.३३(द्वेष की तामिस्र संज्ञा का उल्लेख), महाभारत आश्वमेधिक २६.५(सर्पों के द्वेष भाव का कथन), लक्ष्मीनारायण २.३१.८५(दीर्घतमा - पत्नी प्रद्वेषी द्वारा पति के त्याग आदि का कथन), २.२२३.४५ (पिशाच का रूप), ४.४४.६६ (द्वेष के नैर्ऋत बन्धन होने का उल्लेख ) । dwesha/dvesha
द्वैत योगवासिष्ठ ६.१.३३ (द्वैतेक्य प्रतिपादन नामक सर्ग : वासना व संकल्प को त्यागने से एकत्व की प्राप्ति व दुःखों का नाश ) । dwaita/dvaita
द्वैपायन ब्रह्माण्ड १.१.१.११(द्वैपायन द्वारा जातूकर्ण्य से ब्रह्माण्ड पुराण सुनकर जैमिनी आदि ५ शिष्यों को देना), १. २.३४.११(पराशर - पुत्र व विष्णु के अंश द्वैपायन द्वारा जैमिनि, सुमन्तु आदि को वेदों व पुराणों की शिक्षा देने का कथन), १.२.३५.१२४(२८वें द्वापर में वेदव्यास का नाम), ३.४.४.६६(ब्रह्माण्ड पुराण के श्रोताओं के संदर्भ में द्वैपायन द्वारा जातुकर्ण्य से पुराण सुनकर सूत को सुनाने का उल्लेख), भागवत ६.८.१९ (द्वैपायन व्यास से अज्ञान से रक्षा की प्रार्थना), १०.७९.२० (बलराम द्वारा द्वैपायनी आर्या देवी के दर्शन का उल्लेख), ११.१६.२८ (भगवान के व्यासों में द्वैपायन होने का उल्लेख), मत्स्य ४७.२४७ (२८वें द्वापर में पराशर - पुत्र द्वैपायन के रूप में विष्णु के ८वें अवतार का कथन), ६९.८(विष्णु के द्वैपायन, रोहिणी - पुत्र व केशव के रूप में त्रिधा अवतार लेने का उल्लेख), वायु ६०.११(पराशर - पुत्र, विष्णु के अंश द्वैपायन द्वारा जैमिनि आदि ५ शिष्यों को वेदादि सिखाने का कथन), स्कन्द ५.३.२.३(द्वैपायन - शिष्य वैशम्पायन का उल्लेख ) । dwaipaayana/ dvaipaayana Remarks by Dr. Fatah Singh द्वैपायन अर्थात् द्वीप में रहने वाला । हर मनुष्य की देह एक द्वीप है । अलगाव की प्रवृत्ति , आत्म केन्द्रित व्यक्तित्व द्वैपायन है । जब द्वैपायन व्यक्तित्व अपना विस्तार कर लेता है जिससे सारा समाज, राष्ट्र लाभान्वित होने लगता है तो वह द्वैपायन व्यास कहलाता है ।
द्वैपी लक्ष्मीनारायण ३.२२०.१३ (द्वैपी नामक रानी द्वारा दान दिए जाने पर राजा की रुष्टता की कथा ) ; द्र. द्वीपी । धट स्कन्द ६.२०४.६(नष्ट वंश नागर की शुद्धि हेतु धट? देने का कथन )
धत्तूर नारद १.६७.६०(धत्तूर पुष्प को विष्णु को अर्पण का निषेध), वामन १७ (धत्तूर की शिव से उत्पत्ति), लक्ष्मीनारायण २.२७.१०१ (धत्तूर की शिव ह्रदय से उत्पत्ति )
धन अग्नि २१४.१६(कास के ऋण व नि:श्वास के धन होने का उल्लेख), २५६ (पैतृक धन पर पुत्रों, पौत्रों आदि के अधिकार का विवेचन), गरुड २.३९.१५(क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र् द्वारा ब्राह्मण को द्विगुण, त्रिगुण व चतुर्गुण धन देने का कथन), नारद १.११०.३८ (मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा को धन व्रत विधि), २.२८.४९ (धन द्वारा धर्म साधित होने का उल्लेख), पद्म १.२० (धनप्रद व्रत माहात्म्य व विधि), ५.९८ (धनशर्मा का कृतघ्न आदि प्रेतों से संवाद व उनका उद्धार), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.६४(स्वामी के धन की वृद्धि हेतु रत्नेन्द्रसार दान का निर्देश), भविष्य १.३.४० (धनवर्धन वैश्य द्वारा पुन: भोजन करने से मृत्यु होने का कथन), ३.४.१०.३९(ब्राह्मण आदि चार वर्णों के धनों के गुण), भागवत १०.६४ (ब्राह्मण धन अपहरण में दोष, नृग का दृष्टान्त), ११.१९.३९ (धर्म के मनुष्यों का इष्ट धन होने का उल्लेख), मार्कण्डेय १००.३६/९७.३६(औत्तम मन्वन्तर को सुनने से धन प्राप्ति का उल्लेख), वामन १४.१९ (धन के सदाचार वृक्ष की शाखाएं होने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर ३.१८४ (धन व्रत), ३.२१० (धन प्राप्ति व्रत), ३.२९९ (धन की शुक्लता), ३.३३० (धन दाय विभाग), स्कन्द ५.२.२५.४० (मत्सर के कारण धन के क्षय को रोकने का निर्देश), ५.३.७८.२९ (धन से नरों में नष्ट यौवन की पुन: प्राप्ति का उल्लेख), ५.३.१५५.११५ (जातवेदस अग्नि से धन की इच्छा करने का निर्देश), ५.३.१८२.२४ (विद्या के त्रिपौरुषा होते हुए भी धन के त्रिपुरुष न होने का उल्लेख), ७.१.१४८ ( धन नामक वणिक् की पत्नी के कर्ण का कुण्डल नामक चोर द्वारा कर्तन), महाभारत उद्योग ११४.३(प्रोष्ठपद में धन प्राप्ति का कथन), लक्ष्मीनारायण १.३३.२३ (धन त्रयोदशी को लक्ष्मी की उत्पत्ति), १.२८३.३७ (कीर्ति के धनों में अनन्यतम होने का उल्लेख), १.३८८.५४ (राजा नन्दसावर्णि द्वारा वाराह की दन्तास्थि की सहायता से अबाधित गति प्राप्त करके धन एकत्र करना, धन का सदुपयोग न करके समुद्र तल में सुरक्षित करना, दन्तास्थि के नष्ट होने पर धन का समुद्र तल में ही रहना), १.५४३.७४ (धना : दक्ष द्वारा कुबेर को अर्पित ५ कन्याओं में से एक), २.७१.२ (ज्यामघ द्वारा स्वभार्या धनालसा को इन्द्रद्युति विप्र भक्त द्वारा भगवान की परम माया को देखने का वृत्तान्त सुनाना), २.७३.८ (चोरों द्वारा सुधना भक्त के धन का अपहरण कर लेने पर कृष्ण द्वारा राजभट रूप धारण कर सुधना को धन वापस दिलाने की कथा), २.१२१.१०० (धनायन : मेषादि राशियों के ऋषियों के संदर्भ में ब्रह्मा द्वारा धनायन ऋषि को भ, म,फ, ढ वर्ण देने का उल्लेख), २.१६१.१३ (धनमेद धीवर द्वारा तुरी नामक कुल देवी की अर्चना व तुर्या लक्ष्मी के दर्शन, जाल द्वारा मत्स्य पकडने पर मत्स्य में विराट मत्स्यावतार रूप धारी कृष्ण के दर्शन करना व वैष्णव बनना), २.२३६ (बालकृष्ण द्वारा धन त्रयोदशी को धनलक्ष्मी की पूजा, बर्बुर / बबूल वृक्ष रूप धारी नृप का उद्धार आदि), २.२७०.९८ (रायधनेश्वर हस्ती के काष्ठहार से वैर के संदर्भ में हस्ती के पूर्व जन्म में रायधनेश्वर नामक नृप होने का कथन), ३.१८.९ (धन दान के वस्त्र दान से श्रेष्ठतर व गोदान से निकृष्टतर होने का उल्लेख), ३.१५६.१ (राजा धनवर्मा द्वारा तप करके दक्षसावर्णि मनु बनने का वृत्तान्त), ४.२४.२७ (भक्ति के अव्यय धन होने का उल्लेख), ४.३४.१ (धनधृक् नगर में शिबिका - वाहक विष्टि नारियों की कृष्ण भक्ति से मुक्ति का वृत्तान्त), ४.६२.१२ (राज्य प्रधान द्वारा अन्याय से उपार्जित धन के वृश्चिक बनने का कथन), कथासरित् ६.७.१४१ (राजा द्वारा ब्राह्मण के अपहृत धन की पुन: प्राप्ति के लिए अपनाई गई युक्ति का वर्णन), ७.७.५७ (राजा चिरायु की रानी धनपरा द्वारा पुत्र जीवहर को दीर्घकाल तक राज्य प्राप्ति का उपाय बताना), १०.८.९१ (धनदेव वणिक् व उसके मित्रों द्वारा स्वभार्याओं के अनाचार देखकर वैराग्य की ओर अग्रसर होना), महाभारत वन ९९.११ (इल्वल के धन का स्वामी होने का उल्लेख), शान्ति २६ (युधिष्ठिर द्वारा धनञ्जय / अर्जुन हेतु धन की अपेक्षा धर्म की श्रेष्ठता का प्रतिपादन ; प्राप्त धन का उपयोग यज्ञार्थ करने का निर्देश), २७१.३ (ब्राह्मण द्वारा धन प्राप्ति हेतु कुण्डधार जलधर को प्रसन्न करना, कुण्डधार द्वारा मणिभद्र के माध्यम से ब्राह्मण को धन के बदले धर्म की प्राप्ति कराना, धन की अपेक्षा धर्म की श्रेष्ठता का प्रतिपादन), २९२.४ (न्याय से अर्जित धन को धर्म हेतु न्याय द्वारा वर्धित करने व संरक्षण करने का निर्देश), अनुशासन ७० (ब्राह्मण के स्व की रक्षा न कर पाने के कारण राजा नृग के कृकलास बनने की कथा ) ; द्र. जन्तुधना, तपोधना, शीलधना, सुधना, सधना, ब्रह्मधना dhana
धनक भागवत ९.२३.२३(दुर्मद - पुत्र, कृतवीर्य आदि ४ पुत्रों के पिता, यदु वंश), विष्णु ३.१.१८(तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), ४.११.१०(दुर्दम - पुत्र, ४ पुत्रों के पिता, यदु वंश ) dhanaka
धनञ्जय अग्नि ८८.४(शान्त्यतीत/तुर्यातीत कला के २ प्राणों में से एक, शङ्खिनी नाडी में स्थित धनञ्जय वायु की प्रकृति का कथन), २१४.१४(धनञ्जय वायु के घोष का हेतु होने का उल्लेख), गणेश २.१०.३२ (अग्नि द्वारा महोत्कट गणेश का धनञ्जय नामकरण), देवीभागवत १.३.३० (१६वें द्वापर में व्यास), पद्म ५.१०५.१५२ (सौ भार्याओं वाले धनञ्जय विप्र के पुत्र करुण का वृत्तान्त), ७.१२ (विष्णु भक्त धनञ्जय, अश्वत्थ महिमा, धनञ्जय द्वारा विष्णु के दर्शन), ब्रह्माण्ड १.२.२३.१४ (धनञ्जय नाग की सूर्य रथ में स्थिति), १.२.३२.११८(१३ कुशिक श्रेष्ठों में से एक), १.२.३५.१२०(१६वें द्वापर में धनञ्जय के वेदव्यास होने का उल्लेख), भविष्य २.१.१७.१२ (समावर्तन में अग्नि का नाम), भागवत ५.२४.३१(रसातल के नीचे पाताल में धनञ्जय आदि नागों की स्थिति का उल्लेख), १२.११.३९(धनञ्जय नाग की तप/माघ मास में सूर्य रथ पर स्थिति का उल्लेख), मत्स्य १४५.११३(१३ श्रेष्ठ कौशिकों में से एक), १९८.१०(कुशिक कुल के एक त्र्यार्षेय प्रवर), वायु ५२.१४(धनञ्जय की इष/आश्विन मास में सूर्य रथ पर स्थिति का उल्लेख), ६९.७०/२.८.६७(कद्रू के प्रधान नाग पुत्रों में से एक), १०३.६३/२.४२.६२(धनञ्जय द्वारा त्रय्यारुणि से वायु पुराण सुनकर कृतञ्जय को सुनाने का उल्लेख), विष्णु १.२१.२२(कद्रू के प्रधान नाग पुत्रों में से एक), २.१०.११(धनञ्जय की इष/आश्विन मास में सूर्य रथ पर स्थिति की उल्लेख), ३.३.१५(१६वें द्वापर में धनञ्जय के वेदव्यास होने का उल्लेख), ४.७.३८(विश्वामित्र के देवरात आदि ७ पुत्रों में से एक), स्कन्द ४.१.३०.२४ (धनञ्जय वणिक् द्वारा काशी में माता की अस्थियों के गङ्गा में क्षेपण के प्रयास के विफल होने का वृत्तान्त), महाभारत शल्य ४६.४७(शिव द्वारा रुद्र को प्रदत्त सेना का विशेषण), लक्ष्मीनारायण १.५३३.१२२(शरीर की धनञ्जय वायु के दिव्य रूप में कुबेर बनने का उल्लेख ), द्र. व्यास, रथ सूर्य dhananjaya
धनद अग्नि १८४.१३ (धीर विप्र के धनद वृष की चोरी व पुन: प्राप्ति का वर्णन), देवीभागवत ५.८.६७ (धनद के तेज से देवी की नासिका की उत्पत्ति), नारद १.१२२.७५ (धनद त्रयोदशी व्रत), पद्म ६.६.९१ (धनद का जालन्धर - सेनानी निर्ह्राद से युद्ध), ब्रह्माण्ड २.३.५.९४(तृतीय गण के सात मरुतों में से एक), भागवत ९.२.३२(विश्रवा व इडविडा - पुत्र), मत्स्य १७१.५६(१२ आदित्यों में से एक), लिङ्ग २.१.५८ (पद्माक्ष विप्र द्वारा कौशिक विप्र को अन्न दान से धनद बनना), वराह ३०.७ (वायु द्वारा मूर्त्त रूप धारण कर धनद बनने का कथन), वामन ९ (धनद का शकटचक्राक्ष वाहन), विष्णु ३.२.११(त्वष्टा द्वारा सूर्य के तेज से धनद की शिबिका के निर्माण का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर ३.२२२+ (धनद का अष्टावक्र से धर्म फल संबंधी संवाद), स्कन्द १.२.१३.१५० (धनद द्वारा हेम लिङ्ग पूजा, शतरुद्रिय प्रसंग), ५.३.६८ (धनद तीर्थ का माहात्म्य), ६.२५२.२५(चातुर्मास में धनद की अक्षोट वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), ७.१.५६ (धनदेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : अलका का आधिपत्य प्राप्त करने हेतु धनद द्वारा स्थापना), ७.३.२६ (धनद यक्ष : सुमति राजा द्वारा कनखल तीर्थ में सुवर्ण क्षेपण से धनद यक्ष बनना), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८६ (वृक्ष रूप धारी श्रीहरि के दर्शन के लिए धनद के अक्षोट वृक्ष होने का उल्लेख ) dhanada
धनदत्त कथासरित् २.५.५४ (पुत्रहीन धनदत्त वणिक् द्वारा कठिनता से गुहसेन पुत्र की प्राप्ति, गुहसेन का वृत्तान्त), १२.१०.१६ (सारिका द्वारा पुरुषों की नृशंसता के वर्णन के संदर्भ में अर्थदत्त - पुत्र धनदत्त द्वारा स्वपत्नी रत्नावली के साथ की गई नृशंसता का वर्णन), १८.४.९८, १४५ (धनदत्त वणिक् की भार्या के हस्ती द्वारा अपहरण व पुन: प्राप्ति की कथा ) dhanadatta
धनपाल पद्म ६.४९.१३ (धनपाल वैश्य के पांच पुत्रों में से धृष्टबुद्धि नामक दुष्ट प्रकृति वाले पुत्र का वृत्तान्त), भविष्य १.९४ (अयोध्या में वैश्य, सूर्य आराधना से सूर्य लोक प्राप्ति), ३.२.७.९ (कुबेर द्वारा जीवों की भाषा के ज्ञाता धनपाल का रूप धारण कर त्रिलोसुन्दरी कन्या की याचना करना ) dhanapaala
धनयक्ष पद्म ६.११४.२८ (पापी धनेश्वर विप्र द्वारा कार्तिक व्रतियों के दर्शन के पुण्य से धनद - अनुचर धनयक्ष बनना), स्कन्द २.४.२९.२७ (कुबेर - अनुचर, पूर्व जन्म में धनेश्वर ब्राह्मण), २.८.७.३२ (धनयक्ष तीर्थ की उत्पत्ति तथा माहात्म्य का वर्णन ; धनयक्ष तीर्थ में निधि लक्ष्मी व धनयक्ष के पूजन का महत्त्व ) dhanayaksha
धनवती भविष्य ३.२.१८.३ (धनाध्यक्ष वैश्य - पुत्री, गौरीदत्त - पत्नी, मोहिनी - माता, मोहिनी के मरणासन्न चोर की पत्नी बनने का वृत्तान्त), कथासरित् १२.२६.८ (धनपाल - पुत्री धनवती के चोर की दत्तक - पुत्री बनने व विप्र से उत्पन्न पुत्र के राजा बनने की कथा), १४.२.३७ (देवसिंह नामक विद्याधर की पत्नी धनवती द्वारा स्व - पुत्री अजिनावती को उसके भावी पति नरवाहनदत्त को सौंपना ) dhanavatee/ dhanavati |